तलब का नतीजा कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, यह बीती 4 मई को देश के विभिन्न शहरों में शराब की दुकानें खुलने के दौरान देखने को मिला। दुकानों के सामने लम्बी कतारें लेकिन शारीरिक दूरी के नियम का उल्लंघन करती हुई भीड,
बीते एक महीने से ज्यादा चले लॉकडाउन के नतीजों को धता बता गई। कोरोना जैसी महामारी जिसका अभी तक एक ही उपाय समझ में आया है, जरूरी हो तो बाहर निकलिए पर चेहरे पर मास्क लगाकर और एक निश्चित दूरी के साथ ही हो खरीदारी का काम। पर शराब की लत ने सारी बंदिशें तोड़ खुद के लिए तो मुसीबत मोल ली ही, साथ ही सरकार, कोरोना वॉरियर्स की मेहनत पर पानी फेर दिया। यह भी सही है कि इस मामले में प्रशासनिक विफलता भी सामने आई है।हालांकि कई स्थानों पर पुलिस ने लाठियां भी भांजी पर कुल मिलाकर इसका यह मतलब भी निकलता है कि भविष्य में कोरोना के नये मामलों में कमी आती है तो अन्य मामलों में भी छूट दी जा सकती है। मॉल, सिनेमा हॉल और इसी तरह रेस्टोरेंट के बारे में भी उसके पुनस्र्थापन की पहल हो सकती है।
पर अभी सोमवार को देश ने जो नजारा देखा है, उससे इस पर यदि मंथन चल भी रहा होगा तो लबे समय तक इसके स्थगित होने की संभावना प्रबल लगती है। यह हम सबको भलीभांति समझने की जरूरत है कि इस महामारी से बरसों तक हमें अपनी चली आई जीवन शैली से धीरे-धीरे दूर जाना होगा। कोरोना पूरी तरह से जाने वाला नहीं, बस वैसीन आने पर यह नियंत्रित हो सकेगा। लेकिन इसकी जटिलताओं से निपटने के लिए जो आचार संहिता सामने आयी है, उसका अनुपालन तो करना ही होगा। बहरहाल इस नजारे से सरकार पर आगे के लिए और दबाव बढ़ गया है। यह भी सही है कि लॉकडाउन महीने भर से ज्यादा हो गया है, सारी गतिविधियां एहतियातन ठप पड़ी हुई हैं। इससे केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक आर्थिक दबाव बढ़ गया है। यह सही है कि शराब और पेट्रोल-डीजल से एक बड़ा राजस्व सरकारों को मिलता है। उसमें भी आबकारी का हिस्सा मायने रखता है। मार्च के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन के चलते शराब का स्टॉक बचा रह गया। इससे सरकारें राजस्व से वंचित हुईं तथा नये आवंटन का मौका भी धरा रह गया।
शायद यह आर्थिक दबाव का नतीजा ही है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शारीरिक दूरी के उड़ते माखौल को लेकर नाराजगी तो जताई लेकिन इसे और सख्ती के साथ जारी रहने की बात कही। यूपी का भी यही हाल है। अन्य राज्य सरकारें भी इस मामले में एकमत दिखाई देती हैं। उन्हें पता है कि स्टाक खत्म होते ही नये के लिए उन्हें अतिरिक्त राजस्व भी मिलेगा, जिससे आसन्न चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। योगी सरकार के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना तो पेट्रोल-डीजल पर चार-पांच रूपये प्रति लीटर बढ़ाने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। तो यह साफ है कि सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उडऩे के बाद भी दुकानें अभी खुलेंगी। इसलिए पियक्कड़ों को भी यह समझने की जरूरत है कि वे अपनी तलब और देश के सामने मौजूदा चुनौतियों के बीच संतुलन बनाकर रखें। इससे आगे अन्य सेटरों में यदि छूट की कोई रूपरेखा बनती है तो सरकार प्रोत्साहित होकर आगे बढ़ेंगी। पुलिस वाले भी आये दिन के असहयोग से परेशानहाल हैं। उनका यह समझना वाजिब है कि वे अपनी ड्यूटी करें क्या फिर सारा समय लाइन लगवाने में बर्बाद करें।