सब अच्छा है

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1982

विश्व वैंक के ताजा आंकड़ो के अनुसार भारत का विकास दर पिछले तीन वर्ष में 7.2 प्रतिशत से कम होते होते मौजूदा वित्तीय वर्ष में 6.0 प्रतिशत तक आ पहुंचा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कह रहा है कि जिन देशों की अर्थव्यवस्था इस वक्त सबसे सुस्त है उनमें ब्राज़ील और भारत ऊपर के पायदान पर हैं। एनएसएसओ ने ताज़ा लेबर सर्वे में कहा है कि भारत में इस वक्त जितनी बेरोजग़ारी है वो पिछले 45 सालों में सबसे ज़्यादा है। हालांकि मैं भारतीय नागरिक नहीं हूं, फिर भी मेरा दिल इन आंकड़ों को नहीं मान रहा क्योंकि विश्व बैंक हो या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान, सभी कह रहे हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतनी नीचे चली गई है कि अगर इस वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान 2 प्रतिशत का विकास दर भी छू ले तो मानो भाला मार लिया। रोज़ाना ख़बरें आ रही हैं ऑटो इंडस्ट्री के उत्पादन में पिछले वर्ष के मुक़ाबले में 40 प्रतिशत की गिरावट आ गई है। औद्योगिक विकास का चक्का जाम है और रुपया डॉलर के पैरों से लटक रहा है।

मगर मोदी सरकार की तरह इमरान ख़ान सरकार भी यही कह रही है कि सब अच्छा है। जनता इन आंकड़ों के फेर में मत आए बल्कि ये देखे कि इस वर्ष टैक्स खाते में पिछले वर्ष के मुक़ाबले में दोगुने नाम दर्ज हुए। महंगाई मत देखिए ये देखिए कि किस तरह हम टैक्स चोरों को उल्टा लटका रहे हैं। अगले वर्ष और अच्छा हो जाएगा, बस घबराना नहीं है। जिस तरह मुझे अपनी सरकार पर यकीन है कि वो बहुत सच्चाई के साथ झूठ बोल रही है, इसी तरह मुझे भारत के कानून, संचार और आईटी विभाग के मंत्री रविशंकर प्रसाद पर भी यकीन है जिन्हों राष्ट्रीय सर्वेक्षण कार्यालय का नाम लिए बगैर कहा कि कुछ लोग अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी के ताल्लुक से बीजेपी सरकार को बदनाम करने को तुले बैठे हैं। अगर अर्थव्यवस्था खराब होती तो फिर एक ही दन में बॉलीवुड की तीन फिल्में 120 करोड़ रुपये कैसे कमा लेतीं? जहां रविशंकर प्रसाद जी खड़े हैं वहां से अगर देखें तो उनकी बात बिल्कुल सोलह आने सही है। वाकई अगर बेरोजग़ारी इतनी गंभीर समस्या होती तो लोग सिनेमा देखने क्यों जाते?

मधुशाला पर ताले न लग जाते, छोले-भटूरे के ठेले न उलट जाते और लोग घरों में रहने की बजाय बसों में क्यों सफर करते? मुझे याद है कि परवेज़ मुशर्रफ़ के ज़माने में जब भारत से टमाटर आना बंद हो गया तो मुशर्रफ़ साहब ने कहा क्या गऱीबों का टमाटर खाना बहुत ज़रूरी है, सालन में दही नहीं डाल सकते और कौन कहता है कि हमारी अर्थव्यवस्था क मज़ोर है, ऐसा होता तो इतनी मोटर साइकिलें कैसे बिकतीं? फ्रांस की रानी मेरी एंतुआ ने बस इतना ही तो क हा था कि लोगों को रोटी नहीं मिल रही तो केक क्यों नहीं खा लेते। उसके बाद फ्रांस उलट गया। मगर हमारे यहां तो मानो हर कुर्सी पर मेरी एंतुआ का भूत बैठा है। मुझे लगता है कि गड़बड़ आदमी के दिमाग़ में नहीं शासन की गद्दी में है। इस पर बैठते ही सब अच्छा महसूस होने लगता है क्यों – इस पर भी रिसर्च होनी चाहिए। यकीनन आए तो बीजेपी और तहरीक़े-इंसाफ़ को अगली बार ऑपोजि़शन में बैठने का मौक़ा दे दीजिए। चंद घंटों में ही सब अच्छा है, सब बुरा है में न बदल जाए तो जो चोर की सज़ा वो मेरी सज़ा।

वुसअतुल्लाह खान
(लेखक वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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