अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के लिए पुलिस के खुफिया तंत्र की नाकामी और उपद्रवियों से कड़ाई से निपटने में देरी को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। इस हिंसा में एक पुलिसकर्मी समेत सात लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। अरबों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। ऊपर से भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचा है। दिल्ली पुलिस में बड़ी जिम्मेदारी निभा चुके अधिकारियों का भी कहना है कि पुलिस अगर अपने अधिकारों का उपयोग करके दंगाइयों के खिलाफ एक्शन लेती तो हालात इस कदर खराब होने से बचाए जा सकते थे। पूर्व पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा तो साफ कहते हैं कि जिस आंदोलन की वजह से हिंसा हुई, वह सुनियोजित था। ऐसे में पुलिस को पहले ऐसे लोगों पर ही कंट्रोल करना चाहिए था, जो इस आंदोलन को उकसा रहे थे।
इससे हिंसा शुरू ही नहीं हो पाती। इस हिंसा ने पुलिस के खुफिया तंत्र पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। इतनी बड़ी तादाद में शनिवार रात से ही लोग एकत्र हो रहे थे, ऐसे में पुलिस के खुफिया तंत्र को पहले क्यों नहीं जानकारी मिली? अगर पहले से ही खुफिया जानकारी होती तो अतिरिक्त पुलिस फोर्स तैनात करके स्थिति को बिगडऩे से बचाया जा सकता था। शर्मा का मानना है कि पुलिस को सख्ती से काम लेना चाहिए अन्यथा हालात और खराब हो सकते हैं। एक अन्य पूर्व पूलिस कमिश्नर भी कहते हैं कि कमिश्नर सिस्टम में ही पुलिस के पास इतने अधिकार हैं कि उसे दंगाइयों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए किसी से आदेश के लिए इंतजार की जरूरत ही नहीं है। मौके पर मौजूद जिम्मेदार अधिकारी उपद्रवियों के खिलाफ एक्शन के लिए फैसला ले सकते हैं।
इस अधिकारी का यह भी कहना है कि पहले तो खुफिया विभाग के पास ही सारी जानकारियां होनी चाहिए और उसे पुलिस को बताना चाहिए कि इस तरह की भीड़ एकत्र हो सकती है। राजधानी में दिल्ली पुलिस ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों से भी इनपुट मिलते हैं। इसके बावजूद हजारों की तादाद में कैसे भीड़ एकत्र हो गई और उन्हें काबू पाने के लिए वक्त पर पर्याप्त पुलिस फोर्स भी नहीं पहुंची। वैसे भी पुलिस के पास धारा144 से लेकर कर्फ्यू लागू करने जैसे कई अधिकार होते हैं। अगर ऐसी हिंसा में पुलिस का जवान भी जान गंवाता है तो इससे पुलिस फोर्स का मनोबल भी प्रभावित होता है। हैरानी की बात है कि तीन दिन बाद अब खुफिया एजेंसियां ट्रंप के दौरे की वजह से और हिंसा की आशंका जता रही हैं। खुफिया इनपुट फिर शक के दायरे में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को रख रही है।
इस आर्गेनाइजेशन पर पहले से ही सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों को यूपी और दिल्ली में फंडिंग करने के आरोप में जांच चल रही है। अगर ऐसा है तो फिर उसके खिलाफ सख्त एक्शन क्यों नहीं लिया जा सकता? अब इंटेलिजेंस ब्रांच और स्पेशल सेल हर घटना पर नजर बनाए हुए हैं और लगातार इंटेलिजेंस ब्यूरो के साथ हर अपडेट शेयर कर रही हैं। इतना ही नहीं, ये सारी जानकारी आगे ट्रंप के सीक्रेट सर्विस ऑफिसर्स के साथ भी साझा की जा रही हैं। प्रदर्शनकारी हिंसा के लिए पहले से ही रणनीति बना चुके थे और इसी के तहत उन्होंने घरों, छतों, बालकनी और कॉलोनी के कई किनारों पर पहले से ही पत्थर और अगजनी की चीजें जमा कर रखी थीं।
पुलिस इसका अंदाजा तक नहीं लगा सकी या यूं कहें कि इसका पता लगाने में असफल रही। बहुत से पुलिसवालों ने भी माना है कि पिछले दिनों दिल्ली में हुए प्रदर्शनों को देखते हुए पुलिस व्यवस्था के इंतजाम नाकाफी थे। दिसंबर में जो प्रदर्शन हुआ था, उसमें तो दिल्ली पुलिस ने कई इलाकों में इंटरनेट तक बंद कर दिया था, लेकिन इस बार पुख्ता इंतजाम नहीं थे। पुलिस को तो तभी सजग हो जाना चाहिए था, जब रविवार शाम को मौजपुर में पत्थरबाजी हुई और करावल नगर में देर रात हिंसा की खबरें आईं, लेकिन पुलिस उदासीन रवैया अपनाए रही। पुलिस बैठी देखती रही है और स्थिति बद से बदतर होती चली गई और हालात धीरेधीरे काबू से बाहर होते चले गए।