शर्मसार हुई इंसानियत

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ईसाइयों के पवित्र त्योहार ईस्टर पर श्रीलंका में रविवार को सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ। कोलंबो सहित तीन शहरों में चर्च और होटलों को निशाना बनाते ईस मई को नतीजे जिसके भी पक्ष में हो, उसे पहले से ज्यादा लोगों के गुस्से और नफरत के मामलों हुए सीरियल ब्लास्ट हुआ, जिसमें अब तक तीन सौ के करीब लोग मारे गए हैं। इंसानियत को शर्मसार करने वाली आतंकी वारदात की अभी तक किसी भी चरमपंथी संगठन ने जिम्मेदारी नहीं ली है, इससे चुनौती और बढ़ गई है। वैसे शासन-प्रशासन अपनी तरफ से स्थितियों पर नजर रखते हुए उन लोगों तक पहुंचने की दिशा में काम कर रहा है जिनकी वजह से इतने बड़े पैमाने पर निर्दोष लोग मारे गये। वो लोग प्रार्थना सभा में थे। श्रीलंका में ईसाई अल्पसंगयक हैं। फौरी तौर पर इसकी कोई वजह नजर नहीं आती। इन ईसाइयों की श्रीलंका में किसी भी वर्ग से कोई दुश्मनी भी नहीं है।

स्थिति इसलिए चिंता बढ़ाने वाली है कि तकरीबन एक दशक से लिट्टे चरमपंथियों के शांत पडऩे के बाद देश के भीतर आतंकी घटनाएं लगभग बंद हो गई थीं लेकिन इधर कुछ महीनों से राजनीतिक अस्थिरता के चलते सुरक्षा के सवाल भी उठने लगे थे। अब इस तरह की ताबड़तोड़ आतंकी वारदात ने देश के मानस को हिला कर रख दिया है। इस आतंकी घटना की वैश्विक स्तर पर निंदा हुई है और खुद भारत की तरफ से इस संकट की घड़ी में श्रीलंका को हर संभव मदद देने का भरोसा दिया गया है। इस बीच जैसी खबरें आ रही हैं उस हिसाब से 10 दिन पहले ऐसे हमलों का इनपुट मिल गया था। खुद श्रीलंकाई पुलिस चीफ का कहना है कि चर्चों पर आत्मघाती हमलों की जानकारी संज्ञानमें थी। इसका मतलब उन जानक्रियों पर समय रहते गौर नहीं कि या गया। इस सबके बीच अहम सवाल यह है कि ईस्टर का दिन क्यों ऐसे आतंकी वारदात के लिए चुना गया?

सवाल इसी से यह भी जुड़ा है कि ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिसने चर्चो में प्रार्थनारत लोगों को निशाना बनाने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की? सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं यह देश के अन्य हिस्सों में हो रही आतंकी वारदातों से जुड़ा हुआ मामला तो नहीं है? हाल फिलहाल के आतंकी हमलों पर नजर डालें तो न्यूजीलैण्ड में मस्जिद के भीतर हुए शूट आउट का जिक्र कि या जा सकता है। इसमें इबादत के लिए जुटी जमात पर तड़ातड़ गोली चलाई गई थी और इसका वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल कि या गया था। उस मामले में जो बात निकलकर सामने आई थी, वो ये कि प्रवासियों के लिए वहां कोई जगह नहीं हो सकती। यह दुर्भाग्यपूर्ण और चिंतित करने वाली बात है कि दुनिया में चरमपंथ किसी ना किसी रूप में पनप रहा है।

कहीं धर्म के नाम पर तो क हीं नस्लभेद के नाम पर। इसके अलावा भी आर्थिक-सामाजिक मसले हैं जिसको लेकर कहीं ना कहीं उग्रवाद फैल रहा है। इस सबके बीच घुसपैठियों का सवाल भी अहम है। म्यांमार से भागे हुए रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश और भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। आतंक की कुछ किस्में घुसपैठियों की आड़ में पाली-पोसी जा रही हैं। यहां दिलचस्प है कि आतंक वाद को लेकर देशों के बीच एक राय नहीं है। इसकी वजह भी लोगों के अपने-अपने भू- राजनीतिक सरोकार हैं। इसमें अमेरिका, रूस से लेकर चीन तक शामिल हैं। यही वजह है कि आतंक वाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई नहीं हो पा रही है। एक अकेला भारत है जिसकी तरफ से आतंक वाद क खिलाफ भेदभाव रहित कार्रवाई होती आई है। विश्व के किसी भी हिस्से में चल रहे आतंक वाद की भारत ने कड़े शब्दों में निंदा की है। आतंक वाद को लेकर भेदभावपूर्ण नीति का नतीजा भी बहुत हद तक ऐसी घटनाओं के मास्टर माइण्ड को शह देने का काम करते हैं।

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