बैड गाइ। साल 2019 का सॅाग्स ऑफ द इयर का ग्रैमी इसी गाने को मिला है लेकिन इसे गाने वाली लड़की जब मुस्कारती है तो कहीं से भी ”बैड गाइ” नही लगती। वो सबसे सुन्दर लगती है। उसे देखकर लगता है कि क्या ये वाकई इतनी शांत है जैसी दिखती है। हां जब वो गाती है तो साफ पता चलता है आवाज भले ही धीमी है, लेकिन उसके अन्दर से इमोशन चीख-चीखकर बाहर निकलने के लिए छटपंटा रहें होते हैं । उसका संगीत, गाने के बोल और विडियो देखकर किसी के लिए इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल नही होगा कि 18 साल की इस लड़की के अन्दर कितना अंधेरा है। उसके चेहरे की मुस्कान और बेरंग आंखों के बीच का अन्तर देखना बहुत आसान है जो बात उसे कइयों से अलग बनाती है, वो यही है कैसे उसने इस अंधेरे को चीरना सीख लिया है?
बिली आइलिश उन आर्टिस्ट्स में से एक है जिन्होने डिप्रेसन से जंग लड़ी है आज बिली अपने सामने किसी को उसी दौर से गुजरते देखती है तो उन्हें समझाती है कि खुद से प्यार करना कितना जरुरी है। वो खुद आधी रात को घंटों दीवार ताकते हुए बिना वजह रो चुकी है । आज जो बिली दुनियां के सामने ग्रेमी थामे खडी है उसे कभी यह भी डर लगता था कि वह अपना 17वां जन्मदिन भी मना पाएगी या नही। आने वाले हर पल इतना भारी लगता था कि आंखे खोलना तो दूर सांस लेने की बिल पावर नही बची थी। उस वक्त बिली ने अपनी मां को चुना और उनके सहारे अपनी जिन्दगी को। ग्रेमी के मंच पर एक और आर्टिस्ट ने भी डिप्रेशन का सामना ढाल के साथ किया। 27 साल की डेमी लोवाटो ने जब अपने सॅान्ग ‘एनिवन’ का कोरस गाना शुरू किया तो उन तमाम लोगों की चीख साथ में सुनाई दी जो डिप्रेशन की खाई से निकलना चाहते हैं लेकिन उनके अन्दर ताकत नहीं रह जाती। उन्हें किसी से उम्मीद नहीं रह जाती कोई उनकी बात समझेगा या सुनेगा, कोई भगवान भी नहीं। डेमी ने यह गाना 2018 में ड्रग ओवरडोज से कुछ वक्त पहले लिखा था। रिहैबिलटेशन और सोबरायटी के साथ करीब 2 साल बिताने के बाद
डेमी ने स्टेज पर वापसी की तो साफ दिखाई दे रहा था कि डिप्रेशन किस हद तक उनकी आवाज में घुल चुका था। उनके सुर तो हमेशा से पक्के थे, अब नसों में दर्द की थकान भी थी। दुनिया के एक हिस्से में बिली और डेमी जीत रही है, दूसरी तरफ भारत की दीपिका पादुकोण लोगों को समझाने की कोशिश कर रही है कि मेंटल हेल्थ को कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए। दीपिका को कुछ दिन पहले वल्र्ड इकनॉमिक फोरम ने इसी कोशिश के लिए क्रिस्टल अवॉर्ड दिया तो दीपिका ने कहा कि हर वो इंसान जो इससे गुजर रहा है, वो उसे बताना चाहती हैं, कि वो अकेला नहीं है। बिना बात पेट में खोखलापन दूसरों को भी लगता है, अकेले में रोने से मन हलका करना दूसरों को भी मंच पर खड़े होने की ताकत देता है। बिली ने भी यही कहा है कि आपके सामने कोई डिप्रेशन में हो तो सिर्फ उसे सुनें। जरूरी नहीं कि आप उसे सॉलूशन भी दें, बस सुनना काफी है। दर्द को कंपेयर मत करें, मूड अच्छा करने के लिए ध्यान न भटकाएं, बस सुनें। डेमी ने ‘एनिवन’ में लिखा भी यही है। डिप्रेशन से गुजरने वाला शख्स क्या महसूस करता है, ये समझना किसी के लिए आसान नहीं होता। इसलिए हमेशा अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान खुद रखना आधी लड़ाई जीतने जैसा होता है। बिली भी आज किसी से मिलती है तो सबसे पहले खुद से ह्रश्वयार करने को कहती है।
सेल्फ-लव। इसके लिए चाहे दवा लें या थेरपी, एक्सपर्ट की मदद या दोस्त की, फिजिकल एक्सरसाइज की या मेडिटेशन की, हवा बदलें या आसपास के लोग ही बदल डालें। जब तक आप खुद अपने लिए नहीं लड़ेंगे, इस लड़ाई में कोई आपका साथ नहीं देगा, कोई आर्ट भी नहीं। ये सब आर्टिस्ट्स आज मंच पर खड़े होकर अपना दर्द कह रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि अब ये सब खुश हैं। लेकिन पार्क के लीड सिंगर चेस्टर बेनिंग्टन की डिप्रेशन से लड़ाई किसी से छिपी नहीं थी। उसके गानों भी इसी तरह चीखें होती थीं, जैसे मदद के लिए पुकार हो। लेकिन पार्क के गाने दुनियाभर के लोगों के लिए सहारा बने, आवाज बने, जरिया बने लेकिन इसके बावजूद चेस्टर को बचाया नहीं जा सका। उसकी पूरी डिस्कोग्राफी को अब एक सूइसाइड नोट माना जाता है। हर किसी को लगता है कि काश उस एक पल चेस्टर अकेले न होता। एक ओर जहां फलोरिडा में एक औरत ने लेकिन का ‘वन मोर लाइट’ गाकर ब्रिज पर खड़े शख्स को कूदने से बचा लिया, तो दूसरी ओर पिछले दिनों दिल्ली के एक होटेल में एक 24 साल का लड़के ने सूइसाइड नोट में लिंकिन पार्क का ही ‘इन दि ऐंड’ लिखा छोड़कर जिंदगी को अलविदा कह दिया। कहते हैं किसी आर्ट के जरिए दर्द जाहिर करके हल्का महसूस होता है लेकिन चेस्टर के साथ ऐसा हुआ, न इतने साल तक डेमी और सेलेना गोमेज जैसे आर्टिस्ट के साथ। उम्मीद है कि अब बिली के साथ ऐसा नहीं होगा। इतनी कम उम्र में ग्रैमी जीतने वाली इस लड़की की मुस्कान और आंखों में एक सी खुशी दिखेगी।
(लेखिका शताक्षी अस्थाना स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)