दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से को वैक्सीन उपलब्ध कराने की क्षमता सिर्फ भारत के पास ही है, क्योंकि बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन हमारे देश में ही हो सकता है। कोविड-19 ने भारत की इस क्षमता को एक बार फिर से स्थापित करने का मौका दिया है। कोरोना महामारी के कारण बायो-मेडिकल इंस्ट्रूमेंटेशन (इलाज में इस्तेमाल होने वाली मशीनें और उपकरण), वैक्सीन और नई दवाओं के विकास की दिशा में वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान में काफी तेजी आई है। आगामी भविष्य में होने वाले ज्यादातर वैज्ञानिक अनुसंधानों का फोकस इस बात पर होगा कि इंसान के जीवन को प्राणघातक महामारियों और आपदाओं से कैसे सुरक्षित किया जाए। भारतीय वैज्ञानिक और रिसर्च स्कॉलर्स भी अपने मौजूदा ज्ञान, विशेषज्ञता और उत्साह के साथ इसी दिशा में समझदारी से आगे बढ़ रहे हैं। महामारी ने दुनिया को तकनीक और विज्ञान का महत्व बता दिया कोविड-19 महामारी ने दुनिया को विज्ञान और तकनीक का महत्व तो सिखा ही दिया है।
विज्ञान से सीखी तकनीक चाहे वह मास्क पहनना हो, सोशल डिस्टेंसिंग हो या सैनिटाइजेशन के तरीके हों, इनसे ही हम बीमारी से बचाव कर पाए हैं। अच्छी सेहत और रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छा पौष्टिक भोजन कितना जरूरी है, ये सभी बातें हमने वैज्ञानिक सिद्धांतों से ही सीखी हैं। मुझे उम्मीद है कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में भी अब वैज्ञानिक, डॉक्टर्स और इंजीनियर्स को पहले से कहीं ज्यादा अहमियत दी जाएगी। मौजूदा वक्त में ऐसा होता हुआ मुझे नजर भी आने लगा है। यह एक तरह का सामाजिक परिवर्तन है, जो काबिल लोगों और मेधावी छात्रों को समाज की बेहतरी के लिए वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग अनुसंधान की ओर आकर्षित करेगा। यह उभरते नए भारत के लिए एक टर्निंग पाइंट होगा। आम इंसान और नई पीढ़ी के छात्रों की दिलचस्पी भी विज्ञान से जुड़े विषयों में बढ़ेगी। वैक्सीनेशन में भारत ही दुनिया का लीडर बनेगा वैक्सीनेशन के क्षेत्र में भारत ही दुनिया का लीडर बनने वाला है।
जिस तरह से कोविड-19 को केंद्र में रखकर वैज्ञानिक अनुसंधान शुरू हुए हैं, उनके बलबूते भारत कुछ ही वर्षों में दुनियाभर में न केवल कोविड-19 की कारगर और विश्वसनीय वैक्सीन खोजने वाला अव्वल देश होगा, बल्कि विभिन्न प्रकार के वायरल संक्रमणों के लिए नई-नई वैक्सीन की खोज करने वाला देश भी बन जाएगा। दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से को वैक्सीन उपलब्ध कराने की क्षमता सिर्फ भारत के पास ही है, क्योंकि व्यापक स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन हमारे देश में ही हो सकता है। कोविड-19 ने भारत की इस क्षमता को एक बार फिर से स्थापित करने का मौका दिया है। हालांकि, अभी दुनियाभर में वैक्सीन के ट्रॉयल चल रहे हैं, जब तक इसके परिणाम पूरी तरह सामने नहीं आ जाते, तब तक हम कोविड से जुड़ी चुनौतियों और इसके प्रभावों के विषय में किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते हैं।
कहा जाता है कि आवश्यकता ही सभी आविष्कारों की जननी है। कोविड-19 महामारी ने हमारे कई वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को वायरल संक्रमण के प्रभाव को घटाने और बेहतर इलाज के लिए दवाओं और इलाज से जुड़ी तकनीक ईजाद करने के लिए प्रेरित किया है और उन्होंने इस दिशा में तेजी से काम करना भी शुरू कर दिया है। धीरे-धीरे इसके उत्साहजनक परिणाम सामने आने लगेंगे। इस महामारी ने हमें न केवल देश की जरूरतों को समझने का अवसर दिया है, बल्कि देश के सामने खड़ी समस्याओं को हल करने का एक मौका भी दिया है। इस कठिन वक्त में हमने मौजूदा विकासशील तकनीकी को हासिल करने का आत्मविश्वास हासिल कर लिया है।
प्रो. शिव उमापति
(लेखक जेसी बोस फेलो हैं, वर्तमान में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल के निदेशक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)