वासन्तिक नवरात्र वासन्तिक नवरात्र 2 अप्रैल से 10 अप्रैल तक

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जगतजननी जगदम्बा की आराधना का महापर्व चैत्र नवरात्र भगवती का आगमन अश्व (घोड़ा) पर एवं प्रस्थान महिष (भैंसा) पर कुमारी कन्याओं की पूजन से मिलेगा माँ जगदम्बा का आशीर्वाद दुर्गा अष्टमी : 9 अप्रैल, शनिवार, नवमी : 10 अप्रैल, रविवार, दशमी : 11 अप्रैल, सोमवार

ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इसे भारतीय संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। नववर्ष के प्रारम्भ में नौ दिन तक वासन्तिक (चैत्र) नवरात्र कहलाता है। नवरात्र के पावन पर्व पर जगत्जननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना की विशेष महत्ता है। वासन्तिक नवरात्र में भगवती की आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि वर्ष में होते हैं चार नवरात्र-2 प्रत्यक्ष नवरात्र (चैत्र व आश्विन के शुक्लपक्ष) और 2 गुप्त नवरात्र (आषाढ़ व माघ के शुक्लपक्ष)। वसन्त ऋतु में चैत्र नवरात्र पड़ने पर इसे वासन्तिक नवरात्र’ कहा गया है। वसन्त ऋतु में दुर्गाजी की पूजा-आराधना से जीवन के सभी प्रकार की बाधाओं की निवृत्ति होती है। वासन्तिक नवरात्र में शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की विशेष आराधना फलदायी मानी गई है। माँ दुर्गा व नौ गौरी के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है। भगवती की प्रसन्नता के लिए शुभ संकल्प के साथ नवरात्र के शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करके व्रत या उपवास रखकर श्रीदुर्गासप्तशती के पाठ व मन्त्र का जप करना विशेष लाभकारी माना गया है। इस बार भगवती अश्व (घोड़ा) पर आ रही हैं, जबकि महिष (भैंसा) पर प्रस्थान कर रही हैं।

कैसे करें माँ जगदम्बा की आराधना-माँ जगदम्बा के नियमित पूजा में सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। प्रख्यात ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार नवरात्र 2 अप्रैल, शनिवार से 10 अप्रैल, रविवार तक रहेगा। चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल, शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 54 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 2 अप्रैल, शनिवार को दिन में 11 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। अतएव प्रतिपदा तिथि में प्रातः 11 बजकर 59 मिनट (सामान्यतः अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक रहता है) प्रतिपदा तिथि इस बार 11 बजकर 59 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-2 अप्रैल, शनिवार को दिन में 11 बजकर 59 मिनट तक। कलश स्थापना के लिए कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी में जौ के दाने भी बोए जाने चाहिए। माँ जगदम्बा को लाल चुनरी, अढ़उल के फूल की माला, नारियल, ऋतुफल, मेवा व मिष्ठान आदि अर्पित करके शुद्ध देशी घी का दीपक जलाना चाहिए। दुर्गासप्तशती का पाठ एवं मन्त्र का जप करके आरती करनी चाहिए। माँ जगदम्बा की Vindi आराधना अपने परम्परा व धार्मिक विधान के अनुसार करना शुभ फलदायी रहता है। नवरात्र के तीन दिन होते हैं विशेष। प्रथम त्रिरात्रि में भगवती दुर्गाजी (श्रीकाली जी) की आराधना की जाती है। द्वितीय त्रिरात्री में लक्ष्मीजी की आराधना की जाती है। अन्तिम त्रिरात्रि में भगवती सरस्वती जी की पूजा की विशेष महिमा है।

माँ गौरी के नौ स्वरूप-वासन्तिक नवरात्र में नौ गौरी के दर्शन-पूजन के क्रम में प्रथम-मुख निर्मालिका गौरी, द्वितीय-ज्येष्ठा गौरी, तृतीय-सौभाग्य गौरी, चतुर्थ-शृंगार गौरी, पंचम-विशालाक्षी गौरी, षष्ठ-ललिता गौरी, सप्तम-भवानी गौरी, अष्टम्-मंगला गौरी और नवम्-सिद्ध महालक्ष्मी गौरी। नवरात्र में जगत् जननी माँ दुर्गा के नौ-स्वरूपों की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्त्व है।

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप-प्रथम-शैलपुत्री, द्वितीय-ब्रह्मचारिणी, तृतीय-चन्द्रघण्टा, चतुर्थ-कुष्माण्डा देवी, पंचम-स्कन्दमाता, षष्ठ-कात्यायनी, सप्तम-कालरात्रि, अष्टम-महागौरी एवं नवम्-सिद्धिदात्री। काशी में नौ दुर्गा एवं नौ गौरी के मन्दिर प्रतिष्ठित हैं। जहाँ भक्तगण अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए नवरात्र में विशेष दर्शन-पूजन करके लाभान्वित होते हैं।

नवरात्र में व्रत का विधान-ज्योतिषविद् श्री जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को अपनी दिनचर्या नियमित व संयमित रखनी चाहिए। अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र भोजन अथवा कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। व्यर्थ के कार्यों तथा वार्तालाप से बचना चाहिए। नित्य प्रतिदिन स्वच्छ व धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। क्षौरकर्म नहीं करवाना चाहिए। माँ जगदम्बा व कलश के समक्ष शुद्ध देशी घी का अखण्ड दीप प्रज्वलित करके धूप जलाकर आराधना करना शुभ फलदायक रहता है। नवरात्र में यथासम्भव रात्रि जागरण करना चाहिए। माता जगत् जननी की प्रसन्नता के लिए सर्वसिद्धि प्रदायक सरल मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का जप अधिकतम संख्या में नित्य करना लाभकारी रहता है। नवरात्र के पावन पर्व पर माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करके अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।

नवरात्र में नौदुर्गा को अलग-अलग तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएँ अर्पित करने का महत्व है। जिनमें प्रथम दिन (प्रतिपदा)-उड़द, हल्दी, माला-फूल। द्वितीय दिन (द्वितिया)-तिल, शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद । तृतीय दिन (तृतीया)-लाल वस्त्र, शहद, खीर, काजल। चतुर्थ दिन (चतुर्थी)-दही, फल, सिंदूर, मसूर। पंचम दिन (पंचमी)-दूध, मेवा, कमलपुष्प, बिन्दी। षष्ठ दिन (षष्ठी)-चुनरी, पताका, दूर्वा । सप्तम दिन (सप्तमी)-बताशा, इत्र, फल-पुष्प। अष्टम दिन (अष्टमी)-पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन, वस्त्र । नवम् दिन (नवमी)-खीर, सुहाग सामग्री, साबूदाना, अक्षत फल, बताशा आदि।

दुर्गासप्तशती के पाठ से होते हैं मनोरथ पूरे? दुर्गासप्तशती के एक पाठ से फलसिद्धि, तीन पाठ से उपद्रव शान्ति, पाँच पाठ से सर्वशान्ति, सात पाठ से भय से मुक्ति, नौ पाठ से यज्ञ के समान फल की प्राप्ति, ग्यारह पाठ से राज्य की प्राप्ति, बारह पाठ से कार्यसिद्धि, चौदह पाठ से वशीकरण, पन्द्रह पाठ से सुख-सम्पत्ति, सोलह पाठ से धन व पुत्र की प्राप्ति, सत्रह पाठ से राजभय व शत्रु तथा रोग से मुक्ति, अठारह पाठ से प्रिय की प्राप्ति, बीस पाठ से ग्रहदोष शान्ति और पच्चीस पाठ से बन्धन से मुक्ति। सम्पूर्ण एक दिन, तीन दिन, पाँच दिन, सात दिन अथवा नौ दिन तक नियमपूर्वक व्रत रखकर आराधना करने की धार्मिक मान्यता है। नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात् व्रत की समाप्ति पर हवन आदि करके निमन्त्रित की हुई कुमारी कन्याओं एवं बटुकों का पूर्ण आस्था व श्रद्धाभक्ति के साथ शुद्ध जल से चरण धोकर पूजन करने के पश्चात् उनको पौष्टिक व रुचिकर भोजन करवाना चाहिए। तत्पश्चात् उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार नये वस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नगद द्रव्य आदि देकर उनके चरणस्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। जिससे माता भगवती की कृपा बनी रहे।

ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि इस बार शुक्रवार, 8 अप्रैल को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि रात्रि 11 बजकर 06 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन शनिवार, 9 अप्रैल को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 1 बजकर 26 मिनट तक रहेगी। तत्पश्चात् नवमी तिथि लग जाएगी जो कि रविवार, 10 अप्रैल को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। पुष्य नक्षत्र भी देर रात्रि 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा, जिसमें पूजा विशेष फलदायी होती है। तदुपरान्त दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि सोमवार, 11 अप्रैल की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 4 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। अष्टमी तिथि उदया तिथि के रूप में शनिवार, 9 अप्रैल को है, फलस्वरूप महाअष्टमी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। महानवमी का व्रत रविवार, 10 अप्रैल को रखा जाएगा। नवरात्र व्रत का पारण दशमी तिथि को विधि-विधानपूर्वक किया जाएगा। नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान में कुमारी कन्याओं की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करना लाभकारी रहेगा। कुमारी कन्याओं को त्रिशक्ति यानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। कुमारी कन्याओं के साथ बटुक की भी पूजा करने का नियम है।

व्रत के पारण का विधान-नवरात्र व्रत के पारण के अन्तर्गत अपनी अभीष्ट की पूर्ति के लिए हवन करने के पश्चात् अलगअलग वर्ण या सभी वर्गों की कन्याओं का पूजन करना चाहिए।
देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार कुंवारी कन्याओं के पूजन का फल-(1) ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता. OW(2) क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, (3) वैश्य वर्ण की कन्या-आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, (4) शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए। व्रत के पारण का विधान-नवरात्र व्रत के पारण के अन्तर्गत अपनी अभीष्ट की पूर्ति के लिए हवन करने के पश्चात् अलगअलग वर्ण या सभी वर्गों की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार कुंवारी कन्याओं के पूजन का फल-(1) ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, (2) क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, (3) वैश्य वर्ण की कन्या-आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, (4) शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

कन्या की आयु के अनुसार की जाती है पूजा-दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनकी नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती प्रसन्न होती हैं । शास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पाँच वर्ष की कन्या-रोहिणी, छ: वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्याशाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से दर्शाया गया है। कन्याओं की विधि-विधानपूर्वक पूजाअर्चना करने से सुख-समृद्धि का सुयोग बनता है। जो कन्या अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन हों वह दुर्गापूजन हेतु वर्जित हैं। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामर्थ्य इनकी सेवा व सहायता करनी चाहिए। जिससे जगत् जननी माँ दुर्गा का आशीर्वाद सदैव बना रहे।

नवरात्र में करें नवग्रहों को प्रसन्न-ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन ने बताया कि नवरात्र में नौ ग्रहों की अनुकूलता के लिए भी विधि-विधानपूर्वक नवग्रह शान्ति करवाने के पश्चात् नवग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। नवरात्र में ग्रहों की अनुकूलता के लिए पूजा-अर्चना करना विशेष लाभदायी रहता है। राशि के अधिपति ग्रह का मन्त्र एवं जप एवं संख्या इस प्रकार है-मेष (मंगल) ॐ अं अंगारकाय नमः (जप संख्या-10,000), वृषभ (शुक्र) ॐ शुं शुक्राय नमः (जप संख्या-16,000), मिथुन (बुध) ॐ बुं बुधाय नमः (जप संख्या-10,000), कर्क (चन्द्रमा) ॐ सों सोमाय नमः (जप संख्या-11,000), सिंह (सूर्य) ॐ घृणि सूर्याय नमः (जप संख्या-7,000), कन्या (बुध) ॐ बुं बुधाय नमः (जप संख्या-10,000), तुला (शुक्र) ॐ शुं शुक्राय नमः (जप संख्या-16,000), वृश्चिक (मंगल) ॐ अं अंगारकाय नमः (जप संख्या-10,000), धनु (वृहस्पति) ॐ बृं बृहस्पतये नमः (जप संख्या-19,000), मकर (शनि) ॐ शं शनैश्चराय नमः (जप संख्या-23,000), कुंभ (शनि) ॐ शं शनैश्चराय नमः (जप संख्या-23,000), मीन (वृहस्पति) ॐ बृं बृहस्पतये नमः (जप संख्या-19,000)।

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