लंदन में नए दक्षिण एशिया का सपना

0
240

लंदन के दस दिन के प्रवास में ‘दक्षिण एशियाई लोक संघ’ (पीपल्स यूनियन ऑफ साउथ एशिया) का मेरा विचार जड़ पकड़ता लगता है। पड़ौसी देशों के ही नहीं, ब्रिटेन और इजरायल के भद्र लोगों ने भी सहयोग का वादा किया है। उनका कहना था कि इस तरह के क्षेत्रीय संगठन दुनिया के कई महाद्वीपों में काम कर रहे हैं लेकिन क्या वजह है कि दक्षिण एशिया में ऐसा कोई संगठन नहीं है, जो इसके सारे देशों के लोगों को जोड़ सके। मेरा सुझाव था कि दक्षेस (सार्क) के आठ देशों में बर्मा, ईरान, मोरिशस और मध्य एशिया की पांचों राष्ट्र- उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगिजिस्तान और ताजिकिस्तान को भी जोड़ लिया जाना चाहिए। ये सभी राष्ट्र वृहद आर्यावर्त्त के हिस्से सदियों से रहे हैं। ये एक बड़े परिवार की तरह हैं।

यदि यूरोप के परस्पर विरोधी और विभिन्न राष्ट्र जुड़कर यूरोपीय संघ बना सकते हैं तो हम एक दक्षिण एशियाई संघ क्यों नहीं बना सकते? एक सुझाव यह भी है कि इस संघ में संयुक्त अरब अमारात के सातों देशों को भी क्यों नहीं जोड़ा जाए? मुझे आश्चर्य यह हो रहा है कि दक्षिण एशिया के इस महासंघ को खड़ा करने में लंदन के लोगों में इतना उत्साह कहां से आ गया है ? शायद यह इसीलिए है कि दक्षिण एशियाई देशों के लोग यहां मिलकर रहते हैं और उनके खुले हुए आपसी संबंध हैं।

आज पड़ौसी देशों के कई प्रोफेसर, पत्रकार और उद्योगपति मिलने आए। उन्होंने कहा कि इस संगठन का पहला कार्यालय लंदन में ही क्यों नहीं खोला जाए? एक भाई का सुझाव था कि ऐसी फिल्म तुरंत बनाई जाए, जो करोड़ों दर्शकों को यह बताए कि यदि अगले पांच-दस साल में दक्षिण एशिया का महासंघ बन जाए तो इस इलाके का रंग-रुप कैसा निखर आएगा। यह विचार सभी देशों को एकजुट होने के लिए जबर्दस्त प्रेरणा दे सकता है। लंदन में पैदा हुआ नए दक्षिण एशिया का यह सपना दो-ढाई अरब लोगों की जिंदगी में नई रोशनी भर देगा।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here