राफेल मतलब आंधी

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आज तोताराम ने आते ही बड़ा अजीब प्रश्न किया। प्रश्न क्या, एक ऐसा विकल्प दिया जो ‘काटे-चाटे श्वान’ की तरह ‘दुहूं भांति विपरीत’ था। जैसे हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल जो जिस कर्मचारी को निकालना होता था, उसे विकल्प देते थे- इस्तीफा दोगे या बर्खास्त करें? जैसे खुला पत्र लिखने वाले किसी बुद्धिजीवी को विकल्प दिया जाए- मुंह बंद रखना पसंद करोगे या राष्ट्रद्रोह का मुकदमा झेलोगे?

तोताराम का विकल्प था- दिल्ली चलोगे या टावर पर चढ़ोगे?

हम क्या जवाब देते। कहा- तोताराम, हमारे लिए तो दोनों काम ही ‘तलवार की धार पर धावनो है।’ दिल्ली सबको रास नहीं आती, जो सबसे आंखें फेर सके, उसकी बात और है वरना अपनों को छोड़ कौन दिल्ली जाना चाहेगा क्योंकि दिल्ली जाकर आदमी किसी और कहीं का नहीं रहता। रही बात टावर पर चढ़ने की, सो हमें किसी बसंती या उसकी मौसी को प्रभावित नहीं करना। क्या जो थोड़ा-बहुत जीवन शेष बचा है, वह यहीं इस बरामदे में यापन नहीं किया जा सकता?

वह बोला- सो तो हो सकता है लेकिन ‘राफेल पूजन’ करके, फ्रांस से उड़कर राजस्थान के ऊपर से दिल्ली जाते हुए राजनाथजी को टाटा कर देते तो अच्छा रहता लेकिन तूने कोई सा भी विकल्प नहीं माना। अपनी देशभक्ति सिद्ध करने का अच्छा मौका है।

हमने कहा- हम कोई मुसलमान थोड़े ही हैं। हम हिंदू और ब्राह्मण हैं। स्वतः सिद्ध देशभक्त और श्रेष्ठ।

वह बोला- शुभ अवसर है। ऐसे में राजनाथजी को उतरते ही दो श्रेष्ठ ब्राह्मणों के दर्शन हों तो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा।

हमने कहा- तो उन्हें कह दे कि दिल्ली जाते हुए अपने राफेल को आधे घंटे के लिए यहीं अपने बगल में मंडी में उतार दें। दर्शन-मेला करके, चाय पीकर चले जाएं।

वह बोला- वह कोई राफेल उड़ाकर थोड़े ही ला रहे हैं। विमान तो 2020 में आएगा।

हमने कहा- तो फिर अभी से यह तमाशा करने की क्या जरूरत थी?

वह बोला- यह वैसे ही है जैसे संस्कृत में वाग्दान होता है। वैसे ही जैसे पिछले साल 18 अगस्त को प्रियंका चोपड़ा की ‘रोके’ के रस्म हुई थी। टायरों के नीचे नींबू रखना, प्लेन के पंखों पर सिंदूर से ऊँ लिखना, अंदर धागे से हरी मिर्च लटकाना, माला-धूप-बत्ती करना आदि उसी रस्म के तो आवश्यक वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और लोकतांत्रिक कार्यक्रम थे।

हमने कहा- कहीं यह महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया कार्यक्रम तो नहीं?

वह बोला- तू हर बात में राजनीति क्यों देखता है?

हमने कहा- भारत ने आज से पहले अणु बम बना लिया, मिसाइलें बना लीं, मंगलयान बना और छोड़ दिया, अब चंद्रयान भी लगभग सफलतापूर्वक छोड़ दिया, बिना किसी समारोह और तमाशे के।

वह बोला- यह भी कोई बात हुई? इतना पैसा भी खर्च करो और कोई धूम-धड़ाका नहीं। क्या कोई चोरी थोड़े कर रहे हैं?

हमने कहा- तोताराम, हम तो इन बातों में विश्वास नहीं करते हैं। यह भी कोई बात हुई? दिखा अब दिया और देंगे 2020 में। क्या पता वहां किसी तरह उड़ाकर दिया कुछ और और अगले साल टिका देंगे कुछ और। हम तो कहते है कि इस हाथ दे और उस हाथ ले। तुझे पता है कि 1962 में वीके कृष्णा मेनन कुछ जीपों के पैसे इंग्लैंड में अडवांस में दे आए थे तो लोगों ने इतना आसमान सिर पर उठा लिया था कि नेहरूजी को मेनन से इस्तीफा लेना पड़ा था।

वह बोला- वह जमाना गया। अब मजबूत सरकार है। मोदीजी घर में घुसकर मारने वाले हैं, किसी को छोड़ेंगे नहीं।

हमने कहा- लेकिन जब राफेल वास्तव में आएगा तो हमें पता कैसे चेलेगा ?

वह बोला- मास्टर, यह राफेल है जिसका मतलब होता है ‘आंधी’ और आंधी भी विदेशी। जब आएगा तब 1800 किलोमीटर प्रति घंटा से आएगा। जैसे किसी तेज गति वाहन के टायरों के साथ सूखे पत्ते उड़ते हैं, वैसे ही पैरिस से दिल्ली के रास्ते में जो-जो भी स्थान पड़ेंगे, वहां-वहां ऐसा सूं-सांट मचेगा कि बस पूछ मत। समझ ले वही गति होगी जिस गति से हनुमानजी कन्याकुमारी से उड़कर लंका गए थे और यहां आने के बाद भी बड़े और भव्य कार्यक्रम होंगे। उसके आगे सभी प्रांतों में लोक और सांस्कृतिक नृत्य होंगे। आगे-आगे पूरी कैबिनेट का रोड शो होगा। ऐसी दुर्लभ घटनाएं छिपी रहती हैं और फिर मोदीजी कोई काम छिपाकर नहीं करते। सब कुछ पारदर्शी है। सर्जिकल स्ट्राइक भी की तो सारी दुनिया को बता दिया, फोटो तक दिखाए।

हमने कहा- तुझे डर नहीं लगता? मेरे कानों में तो अभी से भूं-भूं सी आवाज आने लगी है। इस वेग को कैसे बर्दाश्त करेंगे ?

वह बोला- जो देश 70 साल जितना विकास 7 महीने में झेल सकता है, उसके लिए राफेल जैसी आंधियां क्या हस्ती रखती हैं।

       
       रमेश जोशी
लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल – 9460155700
blog – jhoothasach.blogspot.com
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