रहमतों और बरकतों का महीना रमजान

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अगर कोई शख्स सहरी के वक्त रोजे की नियम करे और सो जाए, फिर नींद मगरिब के बाद खुले तो उसका रोजा माना जाएगा, ये रोजा सही है। रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है। पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है। दूसरे अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिर 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्नम से आजाती का है।

रमजान शुरू हो गया है, चांद दिखने के बाद से रोजे रखने की परंपरा है। आने वाले एक महीने में मुस्लिम समुदाय रोजे रखकर अल्लाह की इबादत करेगा। रमजान के पूरे महीने कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है। आइए जानते हैं कौन सी बातों को ध्यान में रखकर रोजे रखने चाहिए। इंसान रमजान की हर रात उससे अगले दिन के रोजे की नियत कर सकता है। बेहतर यही है कि रमजान के महीने की पहली रात को ही पूरे महीने के रोजे की नियत कर लें। अगर कोई रमजान के महीने में जानबूझ कर रमजान के रोजे के अलावा किसी और रोजे की नियत क रे तो वो रोजा कुबूल नहीं होगा और ना ही वो रमजान के रोजे में शुमार होगा। बेहतर है कि आप रमजान का महीना शुरू होने से पहले ही पूरे महीने की जरूरत का सामान खरीद लें, ताकि आपको रोजे की हालत में बाहर ना भटकना पड़े और आप ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में बिता सकें।

रमजान के महीने में इफ्तार के बाद ज्यादा पानी पीयें। दिनभर के रोजे के बाद शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है। मर्दों को कम से 2.5 लीटर और औरतों को कम से कम 2 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए। इफ्तार की शुरूआत हल्के खाने करें। खजूर से इफ्तार करना बेहतर माना गया है। इफ्तार में पानी, सलाद, फल, जूस और सूप ज्यादा खाएं और पीएं। इससे शरीर में पानी की कमी पूरी होगी। सहरी में ज्याता तला, मसालेदार, मीठा खाना न खाएं, क्योंकि ऐसे खाने से ज्यादा प्यार लगती है। सहरी में ओटमील, दूध, ब्रेड और फल सेहत के लिए बेहतर होता है। रमजान के महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, अल्लाह को राजी करना चाहिए क्योंकि इस महीने में हर नेक काम का सवाब बढ़ा दिया जाता है।

रमजान में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी जकात, सदका और अल्लाह का जिक्र करके इबादत करें। रोजेदारों को इफ्तार कराना बहुत ही सवाब का काम माना गया है। अगर कोई शख्स सहरी के वक्त रोजे की नियत करे और सो जाए, फिर नींद मगरिब के बाद खूले तो उसका रोजा माना जाएगा, ये रोजा माना जाएगा, ये रोजा सही है। रमजान के महीने को तीन अक्षरों में बांटा गया है। पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है। दूसरे अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिर 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्नम से आजाती का है। अगर कोई रोजेदार रोजे की हालत में जानबूझकर कुछ खाले तो उसका रोटा टूट जाता है, लेकिन अगर कोई गलती से कुछ खा-पी ले तो उसका रोजा नहीं टूटता है।

अगर कोई बीमार शख्स रमजान के महीने में जोहर से पहले ठीक हो जाता है और तब तक उसने कोई ऐसा काम नहीं किया हो जिससे रोजा टूटता हो, तो नियम करके उसका उस दिन का रोज रखना जरूरी है। अगर जरोजेदार दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर निगल जाता है तो उसका रोजा टूट जाता है, मुंह का पानी निगलने से रोजा नहीं टूटता है। अगर किसी लजीज खाने की ख्वाहिश से मुंह में पानी आ जाए तो उस पानी को निगलने से रोजा नहीं टूटता है। रमजान के महीने में इंसान बुरी लतों से दूर रहता है, सिगरेट की लत छोड़ने के लिए रमजान का महीना बहुत अच्छा है। रोजे रखकर सिगरेट या तंबाकू खाने से रोजा टूट जाता है। रोजे की हालत में दांत निकलवाने से रोजा मकरूह हो जाता है, या रोजे में कोई ऐसा काम करने से जिससे मुंह से खून निकलने लगे, इससे भी रोजा मकरूह हो जाता है।

आपने अगर रोजे की हालत में पूरी तरह से गीले कपड़े पहन रखे हैं तो आपका रोजा मकरूह हो सकता है। कोई खाने की चीज जिसके खाने से रोजा टूट जाता है, जबरदस्ती किसी रोजेदार के हलक में डाल दिया जाए और वो उसे निगल जाए तो रोजा नहीं टूटता है,अगर किसी रोजेदार को जान और माल के नुक सान की धमकी देकर कोई खाना खाने को मजबूर करता है और रोजेदार उस नुकसान से बचने के लिए खाना खा लेता है तो रोजा नहीं टूटता है। रमजान के महीने में नेकियों का सवाब 10 से 700 गुणा तक बढ़ा दिया जाता है। नफ्ल नमाज का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब 70 फर्ज के बराबर हो जाता है। रमजान के महीने में अल्लाह अपने बंदों पर खास करम फरमाता है और उसकी हर जायज दुआ को कुबूल करता है।

रमजान के महीने में अल्लाह अपने बंदों पर खास करम फरमाता है और उसकी हर जायज दुआ को कुबुल करता है। रमजान में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। रमजान में नमाज के बाद कुरान पाक की तिलावत की आदत डालें, इसका बहुत सवाब है। रमजान में कुछ वक्त निकालकर कुरान-ए-मजीद को सुनें, क्यूंकि रमजान का लम्हा-लम्हा इबादत और सवाब का है। रमजान के महीने में कोशिश करें कि आप हर वक्त बा-वजू रहें। रात को जल्दी सोने की आदत डालें ताकि आप फर्ज की नमाज के लिए उठ सकें। हर रात सोने से पहले अपने किए हुए आमाल के बारे में जरूर सोचें। अपने नेक आमाल पर अल्लाह का शुक्र अदा कीजिए और अपनी गलतियों और कोताहियों के लिए अल्लाह से माफी मांगिये और तौबा कीजिए।

एम. रिजवी. मैराज
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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