रवि प्रदोष

0
726
देवाधिदेव भगवान शिवजी
देवाधिदेव भगवान शिवजी

भगवान शिवजी की व्रत -उपवास से होगी सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि
रवि प्रदोष व्रत से मिलेगा आरोग्य सुख

सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव को ही देवाधिदेव महादेव माना गया है। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है, जिसमें प्रदोष व्रत अत्यन्त प्रभावशाली तथा शीघ्र फलदायी माना गया है। इस बार प्रदोष व्रत 14 जुलाई, रविवार को रखा जाएगा। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 13 जुलाई, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात 12 बजकर 29 मिनट पर लगेगी जो कि 14 जुलाई, रविवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोष बेला की अवधि दो या तीन घटी मानी गई है, एक घटी 24 मिनट की होती है। इसी अवधि में भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। व्रतकर्ता को इस दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करने के उपरान्त स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोष बेला में भगवान शिवजी की पूजा-अराधना करनी चाहिए।

हर दिन के व्रत का है अलग-अलग प्रभाव – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी के अनुसार प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे – रवि प्रदोष – आयु, आरोग्य, सुख समृद्धि, सोम प्रदोश – शान्तिस, रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि, भौम प्रदोष – कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष – मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष – पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।

प्रदोष व्रत का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर पूजा-अर्चना के पश्चात प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक कर श्रृंगार करने के पश्चात उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेरस , धतूरा, मदार, ऋतुफल नैवेद्द आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। भगवान शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत तथा पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। व्रत से सम्बन्धित कथाएं सुननी चाहिए जिससे मनोरथ की पूर्ति का सुयोग बनता है। यह प्रदोष व्रत महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी बतलाया गया है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अपने परिवार के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए परोपकार के चित्त के साथ सत्याचरण अपनाते हुए व्रत को विधि-विधान से करना शीघ्र फलदायी होता है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण एवं असहायों की सेवा व सहायता सदैव करना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here