यूपी में योगी सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं, तब यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस राज्य में ऐसे कौन से नए आयाम अस्तित्व में आए, जिसके आधार पर अब तक की सरकारों के कार्यकाल से इतर इसे रेखांकित किया जा सके। दो सवाल लबे अरसे से यूपी के वासिंदों को मथते रहे हैं, एक-कानून व्यवस्था और दो-रोजगार। इन दो क्षेत्रों की बात करें तो कानून-व्यवस्था के सवाल पर जरूर कुछ फर्क पड़ा है। जहां तक संगठित अपराध पर प्रश्न है, तो यह तकरीबन नियंत्रण में है, लेकिन अन्य अपराधों में अपेक्षाकृत तस्वीर बहुत नहीं बदली है। लूटपाट और रेप के मामले घटे नहीं, बल्कि बढ़े ही हैं। हां, इतना जरूर अंतर आया है कि पहले थानों पर नेताओं के फोन ज्यादा-घनघनाया करते थे, पर अब उस स्थिति में परिवर्तन देखने को मिला हैं। इसको लेकर कई बार माननीयों की पीड़ा सुर्खियां बनती रही हैं। कानून व्यवस्था के लिहाज से एक सीमा तक इसकी सराहना की जानी चाहिए कि प्रशासनिक कामकाज में दखलंदाजी कम हुई है। पर इसी के साथ प्रशासनिक निरंकुशता का खतरा भी उत्पन्न हुआ है। इन वर्षों में योगी सरकार की दृढ़ता और नीयत उजागर हुई है लेकिन कुछ ऐसे भी मौके आयेए जिसके कारण अपने ही निर्णय से सरकार को पीछे भी हटना पड़ा।
मसलन एण्टीरोमियो स्क्वायड की बात की जा सकती है। बेटियों को शोहदों से बचाने की यह प्रभावी पहल थी लेकिन राजनीतिक और कुछ सामाजिक संगठनों के विरोध के कारण योजना को स्थगित करना पड़ गया। जबकि मंशा बेहतर थी, समाज में सती का असर भी दिखने लगा था। यदि योजना के तरीकों में कहीं कोई गड़बड़ी थी तो उसे दूर किया जाना चाहिए था। हालांकि सीएम ने उपलब्धियों के तौर पर स्क्वायड की अभिनव पहल का बुधवार को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जिक्र जरूर किया। इस बात के लिए भी यह सरकार जानी चाएगी कि इसने कानून-व्यवस्था के संदर्भ में एक नया आयाम भी दिया। प्रदर्शनों के दौरान हुई सार्वजनिक-निजी संपत्तियों के नुकसान की भरपाई के लिए वसूली का सत कदम भी उठाया। प्रावधान नहीं था, अध्यादेशों के जरिए आगे बढऩे का हौसला दिखाया। केन्द्र सरकार भी इसी आधार पर दिल्ली में दंगे के दौरान हुई क्षति वसूली का मन बना रही है। कई राज्य सरकारें इस पर आगे बढऩे की सोच रही हैं। इस लिहाज से यह योगी सरकार की बड़ी कानूनी पहल कही जा सकती है। यह सरकार रोजगार के मसले पर इन वर्षों में संभावनाओं की अवस्थापना जरूर तैयार करती दिखी है।
इन्वेस्टमेंट समिट जैसे आयोजनों का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि जो समझौते हुए उस पर सही अर्थों में अमल भी होने लगा है। यूपी जैसे बड़े राज्य की विकास अवधारणा को चार रीजन में बांटकर योगी सरकार ने योजनाओं को रफ्तार दी है। पूर्वांचल, बुंदेलखंड को पिछड़े क्षेत्र के रूप में जाना जाता था, उसे बदलने का प्रयास किया है। खुद सीएम योगी की मानें तो इन तीन वर्षों में कुल 33 लाख लोगों को रोजगार दिया जा चुका है। जहां तक सरकारी नौकरियों का प्रश्न है तो आशाजनक बात यह है कि अब तक हुई परीक्षाओं और नतीजों को लेकर ईमानदार प्रतियोगियों में भरोसा जगा है कि मेरिट से भी सरकारी नौकरी पाई जा सकती है। हालांकि रोजगार की बढ़ती मांग के अनुरूप यह उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता। शायद इसीलिए योगी सरकार ने जनपदवार युवा हब तैयार करने और युवाओं को प्रशिक्षित करने के साथ ही 2500 रुपये दिलाने के साथ ही रोजगार की मुकमल व्यवस्था की तरफ कदम बढ़ाया है। इससे जरूर थोड़ी-बहुत स्थिति बदल सकती है। धार्मिक-ऐतिहासिक स्थलों को पर्यटन के लिहाज से बेहतर बनाने की दिशा में भी इस सरकार ने महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। स्वच्छता अभियानए हाईवेए आवास और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सूरत सुधरी है। बचे कार्यकाल में और बेहतर की उम्मीद की जानी चाहिए।