यूएन में नेतृत्व करना जरूरी

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संयुक्त राष्ट्र में भारत को मिले अध्यक्षता के मौके का फायदा वसुधैव कुटुंबकम की सोच के साथ ग्लोवल लीडरशिप की दृष्टि दुनिया के सामने रखने के रूप में उठाना चाहिए। वह सही है कि संयुत राष्ट्र के पांच स्थाई सदस्य अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन व फ्रांस को वीटो पावर होने और केवल एक माह का समय ही होने के चलते भारत के पास निर्णायक करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। इसके साथ ही संयुत राष्ट्र पर अमेरिकी व यूरोपीय सरोकार हावी होने के चलते भी भारत यूएन की कार्य संस्कृति व यूएन के विश्व को पश्चिमी चश्मे से देखने के नजरिये में बदलाव नहीं ला पाएगाए इसके बावजूद भारत ज्वलंत वैश्विक मुद्दों पर सदस्य देशों का ध्यान आकृष्ट कर यूएन में अपने नेतृत्व क्षमता से विश्व को अवगत करा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि और इस महीने के लिए सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष टीएस तिरुमूर्ति ने अपने कामकाज के पहले दिन सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि भारत विश्व में शांति चाहता है, सभी सदस्य देशों की संप्रभुता का समान करता है, किसी भी देश की विस्तारवादी सोच के खिलाफ है, समुद्र में अंतरराष्ट्रीय नियमों का पक्षधर है, समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद और पर्यावरण की रक्षा भारत के एजेंडे में रहेंगे। भारत आतंकवाद से निपटने के मामले पर जोर देता रहेगा। आज आतंकवाद को मिल रहा वित पोषण एवं आतंकवादियों द्वारा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का बढ़ता इस्तेमाल गहरी चिंता का विषय है। भारत 2021-22 के लिए सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र की शतिशाली संस्था की बारीबारी से मिलने वाली अध्यक्षता की अगस्त के लिए जिमेदारी संभाली है।

भारत अगस्त माह में समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद से निपटने और शांति रक्षक पर मुख्य कार्यक्रम आयोजित करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नौ अगस्त को समुद्री सुरक्षा पर ऑनलाइन उच्च स्तरीय खुली बहस की अध्यक्षता करेंगे। समुद्री सुरक्षा के अफ्रीका के लिए महत्वपूर्ण होने के मद्देनजर कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के राष्ट्रपति एवं अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष फेलिस एंटोनी शीसेकेडी शीलोबो भी इस समारोह में भाग लेंगे। विदेश मंत्री एस जयशंकर 8 अगस्त को संरक्षकों की रक्षा के व्यापक विषय के तहत प्रौद्योगिकी और शांतिरक्षा पर एक खुली बहस की अध्यक्षता करेंगे। जयशंकर 19 अगस्त को इस्लामिक स्टेट (आईएस) पर संयुत राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए एक उच्च स्तरीय कार्यक्रम की अध्यक्षता भी करेंगे। इस चर्च में पाकिस्तान स्थित जैश- ए-मोहमद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव पर भी यूएन में भारत का कंसन होना चाहिए। इसके साथ ही टेरर फंडिंग भी बड़ा ग्लोबल मुद्दा है। यूं तो भारत ने कहा है कि वह आतंकवाद के सभी वैशिक रूपों पर ध्यान केंद्रित करेगा, लेकिन आतंकवाद से निपटना भारत की राष्ट्रीय प्राथमिकता होने के चलते यह प्रयास संयुक्त राष्ट्र में भी दिखना चाहिए। आज केवल पाकिस्तान के जैश, लश्कर, हिज्बुल, टीटीपी जैसे आतंकी गुट ही नहीं, बल्कि इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, तालिबान, अल शबाब, हुती आदि अनेक आतंकी गुट हैं जो वैश्विक शांति के लिए खतरा है। इन आतंकी गुटों में से कई को पाकिस्तान, चीन, तुर्की समेत दूसरी अन्य वैश्विक ताकतों से प्रत्यक्ष सहयोग मिलता रहा है। पाकिस्तान और तालिबान पर हालिया अमेरिकी सहयोगत्मक बयान पर भी भारत को गंभीरता से विचार करना चाहिए। हम उमीद कर सकते हैं कि भारत इस एक माह का उपयोग आतंकवाद, समुद्री सुरक्षा वैश्विक शांति जैसे ग्लोबल मुद्दों पर अपनी नेतृत्वकारी भूमिका के रूप में कर सकेगा।

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