प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में अपनी सरकार की कई उपलब्धियां गिनाईं, जो उन्हें गिनानी ही चाहिए, क्योंकि वह उनका चुनाव क्षेत्र है। इसमें शक नहीं कि गंगा की सफाई, तीर्थ-यात्री एक्सप्रेस और राममंदिर का निर्माण-कार्य आदि इस सरकार की रचनात्मक उपलब्धियां हैं। मैं यह भी मानता हूं कि धारा 370 का खात्मा और कश्मीर का पूर्ण विलय भी एक साहसिक और यथार्थवादी कदम है। हमने ‘आजाद कश्मीर’ जैसा पाकिस्तानी ढोंग खड़ा नहीं कर रखा है और कश्मीर की जनता की सेवा में केंद्र सरकार पूरी तरह से लगी हुई है लेकिन फिर भी मैं यह सोचता हूं कि मोदी को यह घोषणा करने की क्या जरुरत है कि वे धारा 370 और नागरिकता संशोधन कानून के मामले में अपने कदम पीछे नहीं हटाएंगे ?
कौन नेता, कौन पार्टियां, कौन संगठन मांग कर रहे हैं कि धारा 370 के मामले में आप अपना कदम पीछे हटाएं ? विदेशों में भी दो-तीन राष्ट्रों के अलावा, जिन्होंने रस्मी बयान जारी कर दिए, लगभग सभी राष्ट्र धारा 370 के खात्मे को भारत का आतंरिक मामला मान रहे हैं। कश्मीर के मामले में दुनिया के बड़े राष्ट्र और भारत के मित्र राष्ट्र भी मांग कर रहे हैं कि कश्मीरियों के मानव अधिकारों की रक्षा हो, गिरफ्तार नेताओं की रिहाई हो और आम कश्मीरी को उसके रोजमर्रा की जीवन में राहत मिले। इसके विरुद्ध आप क्यों डटे रहना चाहते हैं ?
इस मामले में रियायत देना पांव पीछे हटाना नहीं है बल्कि आगे बढ़ाना है। कश्मीरी नेताओं और शाहीन बागियों से सीधा संवाद कर आप आगे क्यों नहीं बढ़ते ? इसी प्रकार नागरिकता संशोधन कानून की भावना नेक है और उसे आप ने संसद से पारित करवाया, यह भी ठीक है। इस बात का कौन विरोध कर रहा है कि पड़ौसी मुस्लिम देशों से आकर शरण मांगनेवाले हिंदू, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख और पारसियों को आप शरण देना चाहते हैं ? इसकी तारीफ तो पड़ौसी मुस्लिम देश भी अंदर ही अंदर कर रहे हैं, क्योंकि आप उनका ‘बोझ’ थोक में उतार रहे हैं। लेकिन देश और सारी दुनिया में विरोध सिर्फ एक छोटी-सी बात का हो रहा है। वह यह कि आपने इस सूची में से मुसलमान शरणार्थियों को बाहर क्यों कर दिया ?
डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)