मूल्यहीन राजनीति

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जैसे ही लोकसभा चुनावों का समय निकट आ रहा है और टिकट वितरण की प्रक्रिया को जिस तेज गति से सभी दल अंतिम रूप प्रदान कर रहे हैं, उसी तेज गति से विभिन्न दलों में आयाराम-गयाराम हो रहा है। अनेक ऐसे नेता भी हैं जो कभी अपनी मूल पार्टी के नीतिनिर्धारकों में हुआ करते थे, चुनावी टिकट न मिलने पर पाला बदल लिया। किसी समय दानिश अली जेडीयू के प्रवक्ता होते थे, उन्होंने ही नीतीश कुमार और लालू यादव में चुनावी मेल कराने में विशेष भूमिका निभाई थी, पार्टी में उनका ऊंचा कद था। लोकसभा चुनावों से पहले उनको ज्ञान्य प्राप्त हुआ कि नीतीश कुमार ने भाजपा से राजनीतिक गठबंधन कर पाप किया है, इसलिए वे पार्टी को त्याग कर हाथी पर सवार हो गए। समस्या नेताओं के साथ नहीं है, वे अपनी सुविधानुसार दल बदल लेते हैं।

उनका ध्येय स्पष्ट है कि किसी भी प्रकार से सत्ता प्रतिष्ठा के अंग बनें रहें। समस्या मतदाता के साथ है वह इस बात पर विचार क्यों नहीं करता कि देश की अस्मिका के लिए जिस विचारकोष तथा समपर्ण भाव की आवश्यकता है, उनको त्याग कर सत्ता प्राप्त करने की जंग का नाम राजनीति हो गया है। शनिवार को कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने एक निजी चैनल पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री के उपनाम में प्रयोग होने वाली रोमन वर्तनी के चार अक्षरों को पाकिस्तान के आतंकियों से जोड़ने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री केवल व्यक्ति नहीं होता, बल्कि सांविधानिक संस्था भी होता है। आश्चर्य होता है कि देश राजनीति का स्तर इतना गिर भी सकता है। शनिवार को ही देहरादून में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की एक जनसभा थी।

अपने भाषण में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए जो वाक्य प्रयोग किए, वे सामान्य शिष्टचार के विपरीत थे। जो नेता आतंकियों के नामों में ‘श्री या जी’ का प्रयोग कर सकते हैं। वे अपने देश के प्रधानमंत्री के लिए उस शिष्टाचार का प्रयोग भी नहीं कर सकते, जो सभ्यता के लिए अनिवार्य है। राजनीति का स्तर इतना अधिक गिर गया है कि मंच से ऐसी भ्रमित बातों को प्रचारित किया जा रहा रहा है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है। विपक्ष द्वारा यह प्रचारित हो रहा है कि राफेल का निर्माण कार्य अंबानी को दिया गया है, इसको एचएएल जो भारतीय सार्वजनिक विमान-निर्माण कम्पनी है, उसको देना चाहिए था।

विपक्ष को यह ज्ञात होगा कि एचएएल की निर्माण क्षमता क्या है। उस पर अनुरक्षण का इतना अधिक भार है कि वह कम्पनी अपने निजी विमानों का निर्माण भी नहीं क पा रही है। सन 1980 के दशक में हल्के विमान बनाने की परिकल्पना की गई थी एसन 2001 में पहला विमान तैयार हुआ। अभी तक केवल आठ विमान निर्मित हुए हैं। क्या सम्भव था कि एचएएल राफेल का उत्पादन तत्काल कर देता? भ्रम और मूल्यहीनता के व्यवहार ने भारतीय राजनीति को अति पतित कर दिया है। आम आदमी को जानकारी होती नहीं, अतः इससे शुद्ध जनादेश भी नहीं आ पाता।

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