माघ पूर्णिमा : स्नान दान और धर्म-कर्म की पूर्णिमा

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माघ पूर्णिमा पर किए गए दान-धर्म और स्नान का विशेष महत्व होता है। हिन्दू पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने अर्थात माघ के महीने में धर्म-कर्म, स्नान, दान का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार कर्क राशि में चंद्रमा और मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होता है, तब माघ पूर्णिमा का पवित्र योग बनता है। इस योग में स्नान करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर खुद भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इसके संदर्भ में यह भी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगाजी क्षीर सागर का ही रूप है।

अतः इस पावन समय में गंगाजल में स्पर्शमात्र से भी समस्त पापों का नाश हो जाता है। कहते हैं कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान विष्णु का तेज रहता है जो हर तरह से पाप का नाश करता है। पद्मपुराण के अनुसार भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते जितना अधिक प्रसन्न वे माघ मास में स्नान करने से होते है। माघ में स्नान करने से होते है। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान श्री विष्णु की सदैव असीम कृपा रहती है। जातक को धन, यश और सुख-सौभाग्य सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व प्रयाग में गंगा नदी या घर के जल में गंगाजल डालकर स्नान करने से जो पुण्य मिलता है वह इस पृथ्वी पर 10 हजार अश्वमेध यज्ञों के पुण्य से भी अधिक होता है।

शास्त्रों में कहा गया है कि ‘मासपर्यन्त स्नानसंभवे तु त्रयहमेकाहं वायात्’। अर्थात जो मनुष्य स्वर्गलोक में स्थान पाना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य की मकर राशि में स्थिर होने पर तीर्थ स्नान अवश्य ही करना चाहिए। ज्योतिषियों के अनुसार माघ मास स्वयं भगवान विष्णु का स्वरूप है। कहते हैं कि यदि मनुष्य पूरे माघ माह में नियमपूर्वक स्वान न कर पाया हो या उसने दान-पुण्य नहीं किया हो तो भी माघी पूर्णिमा के दिन तीर्थ में स्नान करने, दान देने से संपूर्ण माघ मास के स्नान का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए महास्नान से समस्त रोगों और कष्टों का नाश होता है।

घाम की पूर्णिमा के दिन स्नान दान और पुण्य का हजारों गुणा अधिक फल मिलता है। इस दिन स्नान, दान करते समय “ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप अवश्य ही करते रहना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन इस दिन समुद्र आदि में प्रातः स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य देकर, जप-तप करने के पश्चात सुपात्र को अपनी श्रद्धा और सामर्थय के अनुसार दान देने से सभी दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से अवश्य ही मुक्ति मिलती है। यदि तीर्थ, नदी में स्नान करना संभव न हो पा रहा हो तो घर पर ही ब्रह्म मुहूर्त अथवा सूर्योदय से पहले जल में गंगा जल आंवले का जूस, पावडर और तुलसीदल डालकर स्नान करना चाहिए।।

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