महिलाओं की हिस्सेदारी

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देश में घर और बाहर दोनों मोर्चों पर महिलाएं अपना दमखम साबित कर रही हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि महिलाएं मल्टीटास्किंग होती हैं और यह बखूबी उन्हें नैसर्गिक रूप से प्राप्त है। अब जब एक अरसे से बाहरी मोर्चे पर भी अपनी प्रतिभा और कार्यकुशलता का परिचय दे रही हैं तब यह जानकर हम गौरवान्वित होते हैं कि नौकरियों के क्षेत्र में भी उनकी हिस्सेदारी पुरुषों से अब आगे निकल गई है। आजादी के सात दशक बाद पहली बार नौकरियों में शहरी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से ज्यादा हो गई है। यह तस्वीर सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट से सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में कुल 52.1 फीसदी महिलाएं जबकि 45.7 फीसदी पुरुष कामकाजी हैं। हालांकि ग्रामीण इलाकों में तस्वीर दूसरी है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अभी भी नौकरियों में पुरुषों से पीछे हैं। हालांकि बीते छह वर्षों में उनकी हिस्सेदारी दोगुनी हुई है।

पहले 5.5 फीसदी था अब 10.5 फीसदी है। यह तथ्य आवाधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017-18 से सामने आया है। यह उल्लेखनीय भागीदारी की बड़ी वजह महिलाओं में शिक्षा के प्रति बढ़ती ललक है। समाज में अब उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए पहले जैसा पूर्वाग्रह नहीं रह गया है। शहरों में तो स्थिति यही है। यही वजह है कि शिक्षा के क्षेत्र में लडक़ों की तुलना में लड़कियां बेहतर नतीजे दे रही हैं। वर्ष दर वर्ष स्कूल-कॉलेज से लेकर विश्वविद्यालयों तक मेरिट के मामले में लड़कियां परचम लहराती आ रही हैं। तकनीकी शिक्षा से लेकर शोध तक और इसी तरह प्रशासनिक सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं में भी उनकी प्रतिभा की धमक साफ महसूस की जा सकती है। इस हालिया रिपोर्ट से यह बात साफ हो जाती है कि देश के भीतर अवसरों को लेकर जेंडर के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। प्रतिभा है तो उसे पूरा मौका मिलता है। इस दृष्टि से शिक्षित महिलाओं को आगे बढऩे का पूरा मौका मिल रहा है। यह रद्गतार शहरी इलाकों में तेज है।

हालांकि ग्रामीण इलाकों में तस्वीर उतनी चमकदार नहीं है, फिर भी यह उम्मीद तो की जा सकती है कि शहरों में महिलाओं का उभार गांव के देश की सामाजिक – आर्थिक मनोदशा पर जरूर प्रभाव छोड़ेगा। कुछ वक्त लग सकता है, लेकिन परिवर्तन की बयार को किसी सरहद में बांधा नहीं जा सकता। डिजिटल दौर में हर बात पलक झपक ते साझा हो जाती है। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पुरुषों में हिस्सेदारी की रफ्तार महिलाओं के मुकाबले धीमी है। महिलाएं जरूरत के हिसाब से नौकरियों में प्रवेश कर रही हैं। पर एक सच यह भी है कि उन्हें अपनी अस्मिता को साबित करने के लिए नौकरियों की तरफ जाना पड़ रहा है। समाज में दोनों स्थितियां हैं। एक स्थिति जहां स्त्री-पुरुष दोनों ना कमाएं तो घर का खर्च निकल पाना मुश्किल हो जाता है। दूसरी स्थिति यह कि हमारी आर्थिक उपयोगिता भी है। घर चलाने के लिए बाहर निकल कर कमाना हमें भी आता है। इन दोनों से इतर भी एक स्थिति है जहां महिलाएं अपनी शिक्षा का परिवार और समाज के लिए उपयोग करना चाहती हैं।

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