मंशा तो अच्छी पर जिंदगी कच्ची

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वित्त मंत्री ने बजट में व्यक्तिगत करदाता को टैक्स में छूट दी है। इससे सरकार को 40 हजार करोड़ रुपये की आय का नुकसान होगा। कंपनियों द्वारा देय डिविडेंड पर टैस आदि में छूट देने से 25 हजार करोड़ की आय में कटौती होगी। सरकार की आय में 65 हजार करोड़ रुपये की कटौती होगी। तदनुसार वित्त मंत्री ने वित्तीय घाटे में वृद्धि की है जिससे कि इस घाटे की भरपाई हो सके। जो रकम पूर्व में सरकार को टैस के रूप में मिलनी थी, अब उस रकम को सरकार ऋण लेकर अर्जित करेगी। इस ऋण के कारण सरकार के वित्तीय घाटे में वृद्धि होगी। सरकार की सोच है कि आयकर में कटौती से आम आदमी के हाथ की रकम में वृद्धि होगी। इसके दो लाभ हो सकते हैं। पहला यह कि वह उस बची हुई रकम से बाजार में माल खरीदेगा जिससे बाजार में मांग बनेगी। दूसरा लाभ यह हो सकता है कि वह उस रकम को निवेश करेगा। इनमें से प्रथम प्रभाव सही दिखता है। लेकिन इससे निवेश में वृद्धि होगी इसकी संभावना लगभग नगण्य है। कारण यह कि करदाता दुकान अथवा उद्योग में निवेश तब करेगा जब बाजार में मांग होगी। इस बजट में बाजार में मांग बढ़ाने का पुट लगभग अनुपस्थित है। तदनुसार करदाता निवेश अधिक करेगा, ऐसा नहीं लगता है। दूसरी समस्या यह है कि करदाता से आयकर में जो वसूली कम की गई उसकी भरपाई ऋण लेकर की गई है।

इस ऋण का बोझ अंतत: आम आदमी पर ही पड़ेगा। उस ऋण पर दिया जाने वाला प्याज सरकार को येन केन प्रकारेण टैस से अर्जित करना पड़ेगा। अब कंपनियों द्वारा दिए कॉरपोरेट टैस और व्यक्तियों द्वारा दिए जाने वाले व्यक्तिगत इनकम टैस दोनों में कटौती की जा चुकी है। इसलिए ऋण पर जो प्याज अदा किया जाएगा, वह अंतत: किसी अप्रत्यक्ष कर के माध्यम से वसूल किया जाएगा। उदाहरण के लिए जीएसटी और आयातों पर देय कस्टम ड्यूटी के माध्यम से। मतलब आम आदमी के ऊपर टैस का बोझ बढ़ेगा चाहे वह अभी बढ़े या कल बढ़े, जब लिए गए ऋण पर प्याज अदा करना पड़ेगा। इस बढ़े हुए बोझ से आम आदमी की क्रय शक्ति कम होगी और बाजार में मांग कम होगी। फलस्वरूप अर्थव्यवस्था और सुस्त पड़ेगी। हम मान लें कि इनकम टैस में कटौती 100 रुपये की हुई तो करदाताओं द्वारा 50 रुपये की खपत बढ़ेगी और 50 रुपये वे सोना या विदेशी डिपॉजिट में डाल देंगे। इसके बरस आम आदमी के ऊपर पूरे 100 रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इसलिए कुल मांग में वृद्धि नहीं होगी। मैं समझता हूं कि इस बजट के बाद अर्थव्यवस्था के और संकट में आने की संभावना है क्योंकि मूल रूप से आम आदमी की खपत बढ़ाने का इसमें कोई उपाय नहीं है। वित्तमंत्री सोच रही हैं कि वे निवेश को प्रोत्साहन देकर निवेश में वृद्धि हासिल कर लेंगी।

लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक बाजार में मांग न हो। जब बाजार में मांग होती है तब उद्यमी किसी प्रकार से निवेश के लिए रकम जुटा लेता है। जब बाजार में मांग ही नहीं है तो आयकर में की गई कटौतियां निष्फल होंगी, ऐसा मेरा मानना है। वित्त मंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता जताई है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा बनाए गए व्यापार सूचकांक में भारत की रैंक 2018 में 80 से बढ़कर 2019 में 68 हो गई है। अत: भारत ज्यादा विश्व व्यापार कुशल हो गया है। लेकिन इसमें पेंच यह है कि यह कुशलता आयातों से है कि निर्यातों से है, इसका खुलासा नहीं होता है। बल्कि, बजट में ही ऐसे संकेत दिए गए हैं कि हमारी व्यापार कुशलता में जो सुधार दिखता है, वह वास्तव में अकुशलता में सुधार है। कारण यह कि यदि व्यापार सूचकांक में सुधार निर्यातों के आधार पर हो तो इसका अर्थ होगा कि हम माल को कुशलतापूर्वक बना रहे हैं और उसका निर्यात अधिक कर रहे हैं। लेकिन वित्त मंत्री ने स्वयं बताया है कि जो द्विपक्षीय व्यापार समझौते किए गए हैं, उनके कारण आयात में वृद्धि हो रही है। उन्होंने यह भी कहा है कि सेफगार्ड डयूटी और डंपिंग डयूटी तथा आयातित माल पर दी जा रही सब्सिडी पर वे नकेल कसेंगी। इससे स्पष्ट है कि हमारी व्यापार कुशलता वास्तव में आयातों में वृद्धि से है जो कि हमारी व्यापार अकुशलता को दिखाती है।

तथापि यह कहना पड़ेगा कि वित्त मंत्री ने फुटवेयर और फर्नीचर जैसे श्रम सघन क्षेत्रों में आयातित माल पर कस्टम डयूटी बढ़ाई है जो कि सही दिशा में उठाया गया कदम है। इसके लिए उन्हें साधुवाद। लेकिन यह सही दिशा में बहुत ही न्यूनतम कदम है। अंतत: वित्त मंत्री को समझना चाहिए कि देश के उद्योगों को वर्तमान में सस्ते आयातों से संरक्षण देना ही पड़ेगा। देश के उद्योगों द्वारा उत्पादित माल की लागत में कटौती करने के उपाय करने होंगे जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात बढ़ा सकें। यहां पर हमारी प्रमुख समस्या है कि उद्योगों को आज भी नौकरशाही और न्यायपालिका के तमाम अवरोध झेलने पड़ रहे हैं जिससे उनकी लागत ज्यादा आती है। वित्त मंत्री ने गवर्नेंस की बात को उठाया है, लेकिन इस बात से वे चूक गईं कि केवल तकनीकों से गवर्नेंस में सुधार नहीं होगा, जैसा कि हम जीएसटी में देख रहे हैं। सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भूमिगत स्तर पर जीएसटी के बावजूद नंबर दो का धंधा पुन: पूर्व के स्तर पर धीरेधीरे बढ़ रहा है। इसलिए वित्त मंत्री को चाहिए था कि भूमिगत स्तर पर नौकर शाही के भ्रष्टाचार और अवरोधों को दूर करने के उपाय करतीं, लेकिन बजट में ऐसा कुछ भी संकेत नहीं है। अत: हमारे उद्योगों की लागत पूर्ववत ऊंची रहेगी, हमारे निर्यात दबे रहेंगे, हमारे आयात बढ़ते रहेंगे और आने वाले समय में संकट बढ़ेगा, यह घटेगा नहीं।

भरत झुनझुनवाला
(लेखक आर्थिक विशेषज्ञ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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