भ्रष्ट अफसरों से निपटना आसान काम नहीं

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भारत के विरोधी दल शिकायत करते हैं कि नरेंद्र मोदी के राज में तानाशाही का माहौल है और लोग बहुत डरे हुए हैं लेकिन आज सरकारी अधिकारियों के बारे में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की जो रपट छपी है, उससे मालूम पड़ता है कि देश में सरकारी भ्रष्टाचार जोरों से चल रहा है। किसी अफसर को कोई डर नहीं है। वे खुलेआम रिश्वत लेते हैं और जनता को उनसे बचने के लिए कोई ठोस राहत नहीं है।

इस सरकार के वित्त मंत्रालय और कुछ राज्य सरकारों की तारीफ जरुर करनी पड़ेगी क्योंकि उन्होंने अपने बहुत से अफसरों को जबरदस्ती नौकरी से अलग कर दिया है। ये वो अफसर है जिन पर घूस खाने और तरह-तरह के भ्रष्टाचार करने के आरोप है।

ट्रांसपरेंसी की ताजा रपट से पता चलता है कि जिन लगभग 2 लाख लोगों से पूछताछ की गई उनमें से आधे लोगों ने कहा है कि पिछले साल उन्हें सरकारी अफसरों को मजबूरन रिश्वत देनी पड़ी है। 82 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार ने अभी तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं।

राजस्थान जैसे प्रांत में 10 में से 7 लोगों का काम घूस दिए बिना नहीं हुआ है। यों तो सरकार इस मामले पर चुप नहीं बैठी है लेकिन उसका रवैया काफी नरम है। वह भ्रष्टाचारी अफसरों को सिर्फ सेवानिवृत्त कर रही है। उसे इससे कहीं ज्यादा बढ़कर कार्यवाही करनी चाहिए।

भ्रष्ट अफसरों की सारी चल-अचल संपत्ति जब्त की जानी चाहिए और उनके निकट रिश्तेदारों की चल-अचल संपत्ति की जांच की जानी चाहिए और जरुरी हो तो उनकी संपत्ति भी जब्त की जानी चाहिए। भ्रष्ट अफसरों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इस सख्ती का जमकर प्रचार किया जाना चाहिए। भ्रष्ट अफसरों को नौकरी से अलग कर देना काफी नहीं है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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