भारत – जैसी धर्म निरपेक्षता दुनिया में कहीं नहीं, हमें गर्व हो कि हम सब भारतीय हैं

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गुजरात के उप-मुख्यमंत्री नितीन पटेल ने अपने एक भाषण में बड़ी विचारोत्तेजक बहस छेड़ दी। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि भारत में हिंदुओं की बहुसंया नहीं होती तो क्या होता ? उन्होंने कहा कि यदि वैसा होता तो देश में न कोई धर्म-निरपेक्षता होती, न कानून का राज होता, न संविधान होता और न ही कोई मानव अधिकार होते। पटेल के इस कथत का आंतरिक अर्थ यह हुआ कि भारत हिंदू राष्ट्र है। इसीलिए यह वैसा है जैसा कि ऊपर बताया गया है। इसी कथन का दूसरा पहलू यह है कि दुनिया के जिन राष्ट्रों में दूसरे मजहबियों का बहुमत है, वहां की शासन-व्यवस्थाओं में वे सभी खूबियाँ नदारद हैं, जो भारत में हैं। नहीं, ऐसा नहीं है। यूरोप और अमेरिका जैसे राष्ट्रों में हिंदू बहुसंया में नहीं है लेकिन उदारता के वहां वे सब लक्षण विद्यमान हैं, जो भारत में हैं। लेकिन पटेल का इशारा कुछ दूसरी तरफ है।

उनका असली प्रश्न यह है कि यदि भारत मुस्लिम बहुसंयक देश होता तो क्या यहां वे सब स्वतंत्रताएं होतीं जो आज हैं ? उन्होंने साथ-साथ यह भी कह दिया कि भारत के मुसलमान और ईसाई देशभक्त हैं। मुस्लिम देशों के बारे में उन्होंने जो कहा है, वह बहुत हद तक सही है लेकिन उसके कुछ अपवाद भी हैं। इसमें शक नहीं कि दुनिया के ज्यादातर मुस्लिम देशों में आज हजार-डेढ़ हजार साल पुराने अरबी कानून इस्लाम के नाम पर चल रहे हैं। जो क्रांतिकारी आधुनिकता पैगंबर मोहम्मद खुद लाए थे, गए—बीते अरबी कानूनों और परंपराओं में, उस आधुनिकता की प्रवृत्ति पर आज भी कई इस्लामी देश आँख मूंदे हुए हैं लेकिन मैंने स्वयं अफगानिस्तान, ईरान, दुबई, एराक और लेबनान जैसे देशों में अब से 50-55 साल पहले अपनी आंखों से देखा है कि उन देशों में कई लोगों की जीवन-पद्धति भारतीय भद्रलोक से भी ज्यादा आधुनिक थी।

अफगान बादशाह अमानुल्लाह की सरकार में कई हिंदू काफी बड़े पदों पर रहे हैं। लेकिन यह सच है कि भारत-जैसी धर्म-निरपेक्षता दुनिया में कहीं नहीं रही हैं। स्पेन में महारानी ईसावेल ने मस्जिदों का और तुर्कों ने गिरजों का क्या हाल किया था ? यूरोप के मध्यकालीन केथोलिक शासकों के जुल्मों की कहानियां रोंगटे खड़े कर देती हैं। हिटलर के राज में यहूदियों का जीवन कितना नारकीय हो गया था ? आज भी चीन के उइगर मुसलमानों, रूस के चेचन्या मुसलमानों और फ्रांस और जापान के विधर्मियों के साथ जैसी निर्मम सती हो रही है, क्या वैसी भारत में हो रही है या कभी हुई है क्या ? हम लोगों को, चाहे हम हिंदू हो, मुसलमान हों, ईसाई हों, हमें गर्व होना चाहिए कि हम भारतीय हैं।

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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