भाग जाने का मूलभूत अधिकार

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उससे कड़ाई से वसूली की जाकर उसकी लंगोटी उतरवा कुर्की हो सकती है। बैंकों ने ऐसे लोगों के लिए गुंडे-मवाली टाइप के रिकवरी एजेंट नियुक्त किये होते हैं। वैसे ऐसे बैंक एक पुनीत काम बेरोजगार गुंडों टाइप शख्स को ऐसे रोजगार देकर कर रहे हैं! हां, जिसने हजारों करोड का ऋण लिया हो वह चिंता न करें। उसे दो तरह की राहत के फौरी विकल्प हमेशा उपलब्ध हैं! प्रथम चुकारा न पर बट्टे खाते में डालने जिसे सभ्य भाषा में एनपीए कहते है।

लोन का जमाना है। हर आदमी लोन बटोर रहा है क्योंकि बैंक व वित्तीय संस्था बांट रहे हैं। जो लोन नहीं रहा है या जिसके पास क्रेडिट कार्ड नहीं है उसकी ब्रांडिंग पिछड़े के रूप में होती है। सरकारी लोन लेने के बाद न चुकाने की अंतर्निहित सुविधा है! हां, लेकिन इसमें एक राइडर है। जिसने दस-बीस हजार लाख दो लाख पांच लाख का लोन लिया हो वह ज्यादा सतर्क रहे। उससे कड़ाई से वसूली की जाकर उसकी लंगोटी उतरवा कुर्की हो सकती है। बैंकों ने ऐसे लोगों के लिये गुंडे-मवाली टाइप के रिक वरी एजेंट नियुक्त कि ये होते हैं। वैसे ऐसे बैंक एक पुनीत काम बेरोजगार गुंडों टाइप शगस को ऐसे रोजगार देकर कर रहे हैं! हां, जिसने हजारों करोड़ का ऋण लिया हो वह चिंता न करें। उसे दो तरह की राहत के फौरी वि ल्प हमेशा उपलब्ध हैं ! प्रथम चुकारा न करने पर बट्टे खाते में डालने जिसे सभय भाषा में एनपीए कहते हैं। दूसरा ज्यादा तकलीफ हो तो विदेश भागने का होगा। हां, ये मत सोचें कि जिम्मेदार एजेंसी सक्रिय नहीं रहती है।

बस वह होती हैं तब जब लोनी देश से भाग लिया होता है ! आखिर आदमी विदेश भाग कैसे लेता है? ये भाग वाले ही होते होंगे। तभी तो यहां अपराध करके परदेश भाग लेते हैं। भाग वाले नहीं होते तो इन्हें जेल तक चुनने की आजादी मिलती क्या? उसका वीडियों उनको दिखाना पड़ता है उसके बाद वे यदि संतुष्ट हुए तो ही वे अपने चरण क मल आपके जेल मे रखने का निर्णय लेंगे! उनके चरण कमल से जैसे जेल पवित्र हो जायेगा। बैंक बड़ी भोली संस्था होती है उसे कर्जदार के देश में रहने तक यह पता नहीं चलता कि कोई फ्राड हुआ है ? सारा फ्राड जब कर्जदार अबार्ड भाग जाता है तब सामने आता है ! वैसे इससे एक फायदा है यदि यह पता करना है कि क तने बड़े-बड़े लोन प्रकरणों में फ्राड हुआ है तो अबार्ड भाग जाने का यदि सहज अवसर दिया जाये तो फ्राड अपने आप सामने आ जाएगा!

कितना आसान सा तरीका है! लेकिन क्या करें आजकल आसान तरीका कोई आजमाना नहीं चाहता? इधर, भोपाव में विगत माहों में गुड़ों की धरपकड़ चल रही थी। वे गिड़गिड़ा रहे थे कि सब कर लो पर उनका जुलूस मत निकालो। कुछ भूमिगत हो गये हैं और उधर आर्थिक अनियमितता करने वाले अंतराष्टीय स्तर के जालसाज अर्थतंत्र के रजिस्टर्ड गुंडे बैंकों को धमका रहे हैं कि जाओ अब कोई पैसा नहीं मिलने वाला तुम लोगों ने जल्दीबाजी कर दी। यदि हमने कुछ व्यवस्था में पोल का सहारा लिया भी था तो ये कौन था कि आपका लोन हम नहीं चुकाने वाले थे। एक दूसरा लोन हम एक दूसरे बैंक कंर्षोटिंयम का ले लेते तुम्हारा चुकाने और इस तरह हमारा और आपका दोनों का काम चलता रहता। आगे फिर तुम्हारी गारंटी पर किसी और से लेते और दूसरे का चुका देते बताओ कंहा से गड़बड़ होती!

लेकिन धैर्य भी कोई चीज होती है जो कि सरकारी एजेंसियों में दिखती नहीं? न जाने कितने लोग कितने बैंकों का क्रेडिट कार्ड एक साथ रखकर इसी तरह का गोरख धंधा छोटे पैमाने पर कर रहे हैं वो सब आपको नहीं दिखता ? हम चंद बड़े समाज के सम्माननीय लोगों के ऊंचे सपनों पर अपनी नीची नजरे ऊंची करते हो! ऐसे में उद्यमशीलता का विकास होगा क्या देश में! राष्ट्रविरोधी सोच है यह। गली का मोहल्ले का, शहर का गुंडा गिड़गिड़ा रहा है और अर्थ क्षेत्र के अंतर्राष्ट्रीय डकैत विदेशों में मौज मार रहे है। माशूका की बांहों में बाहें डालकर घुड़दौड़ देख रहे हैं। धमका रहे हैं नियामक ऐजेंसी को उसके बुलाने पर कई बीमारियों से ग्रसित होने का स्टेंडर्ड बहाना न बना कर कह रहे हैं कि समय नहीं है। काम बहुत है। व्यवस्था इनको विदेश गमन के पहले पकड़ तो पाती नहीं तो काम करें कि एक अधिकार ही दे दें भाग जाने का!

एक वारेन एंडसन था जो सबसे पहले भगाया गया था। अब ये सब खुद ही भाग रहे हैं। भगाये जा रहे है। विदेश का कोई भाग कर इस देश में नहीं आता है नहीं आता है नहीं तो हिसाब बराबर हो जाये। वो दिन कब आयेगा जब दूसरे देश का भाग कर इस देश में आयेगा। विदेशी मुद्रा का कितना नुकसान होता है जब माल्या, नीवर व मेहुल चौकसी जैसे मेरा देश महान के महान नागरीक देश की जगह विदेश में पैसा खर्च करते हैं। अतः सबसे अच्छा कि भागने को मूलभूत अधिकार के रूप में मान्यता दे देना चाहिये। नहीं तो अबार्ड जाने के दस साल बाद फाड पता चलेंगा तो आदमी तब तक मर मुरा जा चुका होगा तो क्या खाक वसूल कर लीजियेगा। मूलभूत अधिकारों में आज के दौर की मांग एक भाग जाने का अधिकार ही तो जोड़ना है। बस फिर किसी को चिंता पालने की जरूरत नहीं रहेगी प्रत्यर्पण क वापिस देश लाने की।

सुदर्शन कुमार सोनी
लेखक व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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