महात्मा बुद्ध को एक सभा में भाषण करना था। जब समय हो गया तो महात्मा बुद्ध आए और बिना कुछ बोले ही वहाँ से चल गए। तकरीबन एक सौ पचास के करीब श्रोता थे। दूसरे दिन तकरीबन सौ लोग थे पर फिर उन्होंने ऐसा ही किया बिना बोले चले गए। इस बार कम हो गए। तीसरा दिन हुआ साठ के करीब लोग थे महात्मा बुद्ध आए, इधर-उधर देखा और बिना कुछ कहे वापिस चले गए। चैथा दिन हुआ तो कुछ लोग और कम ओ गए तब भी नहीं बोले। जब पांचवा दिन हुआ तो देखा सिर्फ चैदह लोग थे। महात्मा बुद्ध उस दिन बोले और चैदह लेग उनके साथ हो गए।
किसी ने महात्मा बुद्ध को पूछा आपने चार दिन कुछ नहीं बोला। इसका क्या कारण था। तब बुद्ध ने कहा मुझे भीड़ नहीं काम करने वाले चाहिए थे। यहां वो ही टिक सकेगा जिसमें धैर्य हो, जिसमें धैर्य था वो रह गए। केवल भीड़ ज्यादा होने से कोई धर्म नहीं फैलता है। समझने वाले चाहिए, तमाशा देखने वाले रोज इधर-उधर ताक-झाक करते हैं। समझने वाला धीरज रखता है। कई लोगों को दुनिया का तमाशा अच्छा लगता है। समझने वाला शायद एक हजार में एक में एक ही ऐसा देखा जाता है।।
सुदेश वर्मा