बुध प्रदोष व्रत

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भगवान आशुतोष की पूजा-अर्चना से मिलेगा सुख-सौभाग्य
बुध प्रदोष व्रत से होगी मनोकामना पूरी

भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिवजी की महिमा अनन्त है। प्रदोष व्रत के उपास्य देवता भगवान शिव ही हैं। भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है, जिसमें प्रदोष व्रत अत्यन्त प्रभावशाली तथा शीघ्र फलादीयी माना गया है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि यह प्रदोष व्रत प्रत्येक मास में दो बार आता है। शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन यह व्रत रखा जाता है। सूर्यास्त की समाप्ति एवं रात्रि के प्रारम्भ में पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। सूर्यास्त की समाप्ति एवं रात्रि के प्रारम्भ में पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्तपर्यन्त जो त्रयोदशी तिथि हो, उसी दिन यह व्रत रखा जाता। सायंकाल प्रदोषकाल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना का नियम है।

प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस बार यह प्रदोष व्रत 17 अप्रैल, बुधवार को रखा जाएगा। चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 16 अप्रैल, मंगलवार की अर्द्धरात्रि 1 बजकर 26 मिनट पर लेगेगी दिन 17 अप्रैल, बुधवार की रात्रि 10 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत 17 अप्रैल, बुधवार को रखा जाएगा। व्रतकर्ता को प्रातःकाल से निराहार व निराजल रहकर सायंकाल प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट तक माना गया है, इसी अवधि में भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। व्रतकर्ता को इस दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करने के उपरान्त स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। तत्पश्चात प्रदोष बेला में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए, परनिन्दा व व्यर्थ के वार्तालाप से बचना चाहिए।

ऐसे रखें प्रदोष व्रत – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रातःकाल ब्रह्मामुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्ति होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में चल, पुष्प, फुल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र कनेर, धतूरा मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूर-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है। शिवजी की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण करना चाहिए। प्रदोष व्रत महिलाएं एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से पुण्य फलदायी है। प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है साथ ही सुख सौभाग्य में अभिवृद्धि के साथ ही शिवजी की अपार अनुकम्पा मिलती है।

वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व है। जैसे – रवि प्रदोष- आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष – शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष – कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष- मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष – विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष – आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना पूर्ति, शनि प्रदोष – पुत्र सुख की प्राप्ति। अभीष्ट की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।

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