बिहार: सब दल-बदलुओं के सहार

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बिहार में चुनाव करीब आते ही दल बदलने का खेल तेज हो गया है। फिलहाल हर दल अक्टूबर-नवंबर में संभावित विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करने में जुटा दिख रहा है। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है। कुछ दिन पहले तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को छोड़ कर लगभग सभी पार्टियों ने राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने का विरोध किया था। यहां तक कि सरकार में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) भी अभी चुनाव के खिलाफ थी। जन अधिकार पार्टी (जाप) के मुखिया पप्पू यादव ने तो चुनाव रोकने के लिए हाई कोर्ट की शरण लेने की घोषणा कर दी थी। लेकिन चुनाव आयोग की गतिविधियों और राज्य सरकार के रुख से साफ है कि चुनाव होगा। इसके मद्देनजर सभी पार्टियां चुनावी मोड में आ गई हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने तो सात जून को ही वर्चुअल रैली का आयोजन कर भाजपा की ओर से बकायदा चुनाव का बिगुल फूंक दिया था। इनके साथ-साथ जदयू व सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने भी सांगठनिक चर्चा के नाम पर ताबड़तोड़ वर्चुअल बैठकें कीं।

महागठबंधन में शामिल दलों को देखें तो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को वर्चुअल मोड में ले आए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वर्चुअल बैठक कर कांग्रेस को सक्रिय करने की कोशिश की। महागठबंधन के अन्य घटकों की गतिविधियां भी तेज हो गईं हैं। और इसी के साथ बढ़ गया है दलबदल। इस कड़ी में भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार ने पिछले हफ्ते एक मंत्री को बर्खास्त कर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। ये हैं बर्खास्त उद्योग मंत्री श्याम रजक, जो कभी लालू प्रसाद के काफी करीबी थे। वे राजद का दामन छोड़ 2009 में जदयू में शामिल हो गए थे। उन्होंने काफी दिनों से दफ्तर आना बंद कर दिया था। तो इसके पहले कि वो दल बदलते, जदयू ने उन पर कार्रवाई कर दी। इसी तरह जदयू में जाने की जुगत में लगे अपने तीन विधायकों को राजद ने भी रविवार को बाहर का रास्ता दिखा दिया। श्याम रजक राजद में शामिल हो गए हैं। राजद से निकाले गए महेश्वर प्रसाद यादव और प्रेमा चौधरी जदयू में सोमवार को शामिल हो गए। लालू प्रसाद यादव के समधी चंद्रिका राय ने भी जदयू का दामन थाम लिया है।

यानी दलबदलुओं से किसी को परहेज नहीं है। यही बिहार की अवसरवादी और बेशर्म राजनीति का सही चेहरा है। वैसे भी चुनाव से पहले राज्य नए रिकार्ड बना रहा है। तीन दिन पहले राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण की रिपोर्ट आई है, जिसमें देश के सबसे गंदे शहरों का रिकार्ड बिहार ने बनाया है। देश के दो सबसे स्वच्छ शहर भाजपा शासित राज्यों के हैं। नंबर एक पर मध्य प्रदेश का इंदौर और नंबर दो पर गुजरात का सूरत है। दस लाख से ज्यादा आबादी वाले बड़े शहरों में सबसे ज्यादा गंदा शहर बिहार की राजधानी पटना है। इतना ही नहीं दस लाख से कम आबादी वाले दस सबसे गंदे शहरों में छह बिहार के हैं। सोचें 15 साल से बिहार में नीतीश कुमार की सरकार है, जिसमें 12 साल उन्होंने भाजपा के साथ मिल कर सरकार चलाई है। यानी तीन साल से डबल इंजन की सरकार चल रही है और राजधानी पटना का हाल यह है कि वह देश का सबसे गंदा शहर है। डबल इंजन की सरकार की इन्हीं उपलब्धियों के कारण भाजपा और जदयू दोनों 15 साल पहले के लालू प्रसाद के राज की तस्वीरें दिखा कर वोट मांग रहे हैं। नीतीश कुमार ने कहा है कि इस बार जीते तो गांवों को सड़कों से जोड़ेंगे। 15 साल के राज के बाद भी सड़क के नाम पर वोट मांगना भी दिखाता है कि बिहार में या काम हुआ है?

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