बिना तन्मयता सृजन नहीं

0
877

एक दिन की बात गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर शान्ति निकेतन के अपने कमरे में कविता लिखने में तल्लीन थे। तभी एक अवाज आई – ‘रूको’ आज तुम्हे खत्म कर देता हूं? रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने दृष्टि उठाई। देखा एक डकैत चाकू लिए हुए उन पर वार करने के लिए प्रस्तुत है। वे कविता लिखने में पुनः तल्लीन हो गए और धीरे से कहा – मुझे मारना चाहते हो, ठीक है मारना, लेकिन एक बहुत ही सुन्दर भाव आ गया है, कविता पूरी कर लेने दो।’

गुरुदेव भाव में इतने डूबे कि उन्हें याद ही नहीं कि उनका हत्यारा उनके सामने खड़ा है। इधर हत्यारा सोच रहा था कि ये कैसा आदमी है? मैं चाकू लिए खड़ा हूं। उस पर कोई असर नहीं। गुरुदेव की कविता जब समाप्त हुई उन्होंने दरवाजे की ओर दृष्टि डाली मानों कह रहा हों- अब मैं खुशी से मर सकता हूं। लेकिन हत्यारे ने चाकू बाहर फेंक दिया और उनके चरणों में बैठकर रोने लगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here