बातचीत से ही हल होगा अयोध्या विवाद

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पूरा पिछला हफ्ता भारत-पाक मुठभेड़ में निकल गया। इस बीच हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने तीन बड़े फैसले किए, जिनकी खबरें तो छपीं लेकिन उन पर खास ध्यान नहीं दिया गया। ये तीन फैसले क्या थे? पहला, राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का! दूसरा, जंगलों की जमीन से खदेड़े जाने वाले निवासियों का और तीसरा, अरावली के जंगलों को खत्म नहीं होने देने का।

इन आखिरी दो फैसलों के कारण काफी मुसीबतों से लाखों लोगों को छुटकारा मिलेगा। वे लोग अदालत के आभारी होंगे लेकिन राम-मंदिर और बाबरी मस्जिद के बारे में अदालत ने जो ताजा सुझाव दिया है, उस पर सरकार और याचिकाकर्ताओं को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। यह ठीक हैं कि पुलवामा-कांड और भारत-पाक मुठभेड़ के बाद राम मंदिर का सवाल पीछे खिसक गया है लेकिन यदि यह मुठभेड़ यहीं खत्म हो गई और हमारे मीडिया ने कुछ गड़े मुर्दे उखाड़ने शुरु कर दिए तो मानकर चलिए कि मोदी सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। फिर अयोध्या-विवाद सारी राजनीति का केंद्र बिंदु बन जाएगा।

इस समय देश की जनता के सामने ‘सबका साथ, सबका विकास’ और तरह-तरह के अभिभाषणों की नौटंकियां लगभग निरर्थक होती जा रही हैं। रफाल का मुद्दा भी नेपथ्य में चला गया है। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के इस सुझाव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी दल और सभी याचिकाकर्ताओं को एक साथ जुट जाना चाहिए कि यदि यह मसला बातचीत से हल हो सकता हो और इसकी एक प्रतिशत भी संभावना हो तो उसे तलाशा जाना चाहिए।

1992 में नरसिंहराव सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच बातचीत का सिलसिला मैंने भी चलाया था। मेरे कहने पर विहिप ने कार-सेवा तीन माह के लिए स्थगित भी की थी लेकिन कुछ भावुक अतिवादी लोगों ने बाबरी ढांचे के साथ-साथ बातचीत का पुल भी ढहा दिया। यदि सरकार को मुठभेड़ से कुछ फुर्सत मिले तो उसे तुरंत पहल करके दोनों पक्षों से बातचीत चलानी चाहिए। 70 एकड़ जमीन में भव्य राम मंदिर के साथ-साथ सर्वधर्म विश्व-तीर्थ के प्रस्ताव पर सभी पक्षों को राजी करना कठिन नहीं है। अयोध्या-विवाद बातचीत से हल हो सकता है।

   डॉ. देव प्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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