बयानवीरों से उम्मीद

0
228

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन सभी बयानवीरों को कहा है कि बराय मेहरबानी अपनी जुबान को ना चलाएं और अयोध्या मसले पर उच्च न्यायालय में चल रही कार्यवाही को उसके अंतिम मुकाम तक पहुंचने दें। कहा तो उन्होंने ठीक है पर जिस साफगोई से इस बयानबाजी का सरलीकरण हुआ है वो भी कहीं न कहीं चुनावी सरोकार से जुड़ता प्रतीत होता है। ऐसा इसलिए कि इसकी शुरुआत तो बीजेपी की तरफ से हुई थी। उसके बाद ही विपक्ष की तरफ से सवाल उठने लगे थे। यह सही है कि इस मसले पर इतनी सियासत हुई है कि लोग सम्भावनाओं के जरिये भी अपने अपने लिहाज से ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। यही इस मसले पर हुआ है। पिछले दिनों अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद में सुनवाई पूरी करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 18 अक्टूबर की सीमा तय कर दी। इस तरह दशकों से विवादित इस मसले पर नवंबर में अंतिम फैसला आने की उम्मीद बढ़ गई है। इसकी एक वजह यह भी है कि 17 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई रिटायर हो रहे हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि अब तक के सर्वाधिक विवादित मामले में फैसला देकर प्रधान न्यायाधीश अपने रिटायरमेंट को यादगार बनाना चाहेंगे। इसीलिए उन्होंने चल रही सुनवाई की मौजूदा स्थिति को समझा। साथ ही सुनवाई की समय सीमा तय करके सभी पक्षकारों को स्पष्ट कर दिया गया है कि अब यह मामला आगे नहीं खिंचेगा। हालांकि इस बीच एक बार मध्यस्थता पैनल की तरफ से कुछ पार्टियों के बीच मामले को बातचीत से सुलझाने को कहा गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी कोशिश को हरी झंडी देते हुए चल रही सुनवाई को पूरा करने पर जोर दिया है और कहा है वार्ता से मसला हल हो सके तो ठीक वरना अंतिम फैसला सुना दिया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश की तत्परता से पक्षकारों और देश के लोगों को यकीन हो चला है कि नवंबर का महीना महत्वपूर्ण फैसले का गवाह बनेगा। सीधे तौर पर इस संभावना को लेकर कहीं से भी विरोध के स्वर नहीं हैं। सभी कह रहे, फैसले को मानेंगे। यही उम्मीद भी की जानी चाहिए।

हालांकि भाजपा के कुछ नेताओं ने इस पर अभी से सियासत शुरू कर दी है, वो पंथ निरपेक्ष देश के मिजाज से थोड़ा अलग प्रतीत होता है। इसी वजह से आजाद भारत में यह मसला सियासी वजहों से अब तक लटकता रहा है। पक्षकारों की अपनी-अपनी उम्मीद होती है। पार्टियों को भी ऐसे संवेदनशील मसलों पर सियासत से परहेज करना चाहिए। यह मानने में किसी को भी गुरेज शायद न हो कि यदि इस पर सियासत ना हुई होती तो फैसला दोनो समुदायों के बीच सेना जाने कब का सामने आ चुका होता। लेकिन इसी के नाम पर दोनों पक्षों से लोगों ने काफी पैसे बनाये, यह आरोप भी जब-तब लगता रहा है। सभी को नवंबर में आने वाले फैसले का इंतजार करना चाहिए। फैसला किस तरह से आएगा, किसके हक में होगा इस पर अभी से दावे-प्रतिदावे नहीं किए जाने चाहिए। इससे समुदायों के बीच अकारण अविश्वास और द्वेष की मानसिकता बनती है कि देश को आगे बढ़ाने की दिशा में सक्रिय होना चाहिए। कहा भी गया है कि इतिहास से सीख लेने की जरूरत होती है ताकि भविष्य की राह निष्कंटक बनाई जा सके। सबके बीच धार्मिक सद्भाव इस देश का स्वाभाविक मिजाज है। सियासी दल इस स्वाभाविकता का सम्मान करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here