बदलते दौर में बदल गई है चाणक्य की परिभाषा

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भारत वर्ष का सबसे गौरवशाली साम्राज्य मगध और ढाई हजार साल से मगध की राजधानी पाटलिपुत्र। भारत के इतिहास के सबसे स्वर्णिम पन्नों में लिपटा है बिहार। रामायण काल में इसी धरती पर जन्मी थीं देवी सीता। महाभारत युग में यहीं राजा जरासंध ने राज किया था, भगवान श्रीकृष्ण को रण छोड़ने पर मजबूर किया था। इसी धरती ने दुनिया को पहला सम्राट दिया। लिच्छवी राजाओं ने दुनिया को पहला गणराज्य दिया। ये भूमि है महावीर की, भगवान बुद्ध की, ये भूमि है चाणक्य की। ये भूमि है बिहार की। जब-जब राजनीति में कूटनीतिक चालें चली जाती हैं तब-तब सफलता पाने वाले को चाणक्य की उपाधी दी जाती है।

नरेंद्र मोदी तो मोदी हैं और मोदी जैसा कोई नहीं। इस पर भला किसी को क्या ऐतराज हो सकता है। लेकिन मोदी की आंख, कान और जुबान माने जाने वाले अमित शाह जिसने मोदी को मोदी बनाया। बीजेपी के रणनीतिकार की चतुर चाल ने मचा दिया था चुनावी राजनीति में धमाल। कभी गुजरात से हुए थे तड़ीपार फिर यूपी में ऐसे खेले धुंआधार की पहले तो यूपी फतह फिर दिल्ली विजय से मोदी को अजेय बना दिया। ये रणनीति का कमाल ही था कि शाह ने अपने साहिब को सिकंदर बना दिया और खुद को राजनीति का चाणक्य।

महाराष्ट्र में जब सत्ता का खेल चला तो दिल्ली में बैठे राजनीति के चंद्रगुप्त और चाणक्य की जोड़ी माने जाने वाले मोदी और शाह के सिपेहसालारों को लगा कि वो अजेय हैं। लेकिन शरद पवार ने बिना किसी शोर-शराबे के बताया कि आप दिल्ली में जो होंगे वो होंगे महाराष्ट्र में तो हम ही हम हैं। तब चाणक्य की उपाधी से नवाजे गए।

विरोधियों पर खुलकर बरसना हो या ठाकरे परिवार के सदस्य को मातोश्री से निकालकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाना हो संजय राउत ने दोनों ही मोर्चों पर बखूबी काम किया तो मीडिया ने उन्हें चाणक्य नाम दिया। 1977 के आम चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर में कांग्रेस की बुरी हार हुई तो एक राजनेता चुनाव जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब रहे थे और उनका नाम अहमद पटेल है। पटेल को 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में यूपीए को जीत दिलाने का अहम रणनीतिकार माना जाता है। अहमद पटेल ने ही सोनिया गांधी को भारतीय राजनीति में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। जिसके बाद से उन्हें कांग्रेस का चाणक्य कहा जाने लगा।

चाणक्य को चुनौतीपूर्ण हालात में सफलता का पैमाना माना जाता है। वर्तमान की उंगली पकड़कर आपको इतिहास की उन गलियों में ले चलते हैं जहां से सियासत के असली चाणक्य का वजूद जुड़ा है।

राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्‍त्र के पंडित माने जाने वाले चाणक्‍य जिसने चंद्रगुप्‍त मौर्य को पाटिलिपुत्र पर राज करने के तरीकों और राजनीति के रहस्‍यों से रूबरू करवाया था। मौर्य साम्राज्य की स्थापना करीब 2300 साल पहले चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के साथ मिलकर की थी। सम्राट अशोक ने साम्राज्य का विस्तार किया। इसकी शुरुआत हुई थी मगध राज्य में गंगा नदी के मैदानों से, जो आज के बिहार और बंगाल हैं। बिहार की राजधानी पटना को ही मौर्य साम्राज्य की राजधानी बनाया गया था, जिसका नाम उस समय पाटलीपुत्र था। मुश्किलों पर फतह हासिल करना और देशहित के लिए हर हालत में लक्ष्य हासिल करना ही चाणक्य नीति है। इतिहास में मौर्य वंश को मगध का सम्राट बनाने की सफलता के बाद राजनीति और कूटनीति में चाणक्य को आदर्श और उनकी नीतियों को सफलता का पर्याय माना जाता है। जहां भी कठिन परिस्थिति में जीत मिलती है वहां सफलता के सूत्रधार को चाणक्य के संदर्भ से जोड़कर देखा जाता है।

चाणक्‍य के जीवन में जो पहली प्रतिज्ञा आती है वह यह है कि जब नंद के दरबार में उनका अपमान होता है, तो वह नंद वंश को गद्दी से उतारने का प्रण लेते हैं। इस प्रण में यह शामिल नहीं था कि वह तख्‍तापलट कर अपने लिए गद्दी चाहते हैं या अपने परिवार के लिए। असल में चाणक्‍य भोग विलास में डूब चुके अहंकारी राजतंत्र का खात्‍मा कर जनता के लिए एक बेहतर सरकार बनाने के प्रण से जीवन भर जुड़े रहे और इसमें कामयाब हुए। उनके जीवन की दूसरी कहानी यह प्रचलित है कि वह इतने ईमानदार थे कि राजतंत्र के दीये की रोशनी तक अपने निजी काम के लिए इस्‍तेमाल नहीं करते थे। इसके अलावा उनकी तीसरी मशहूर कहानी है कि जब उनका शिष्य और भारत का सम्राट चंद्रगुप्‍त मौर्य किसी स्‍त्री के प्रेम में पड़ गया, तो चाणक्‍य ने उसे वह शादी नहीं करने दी। चाणक्‍य ने साफ कहा कि राजा की शादी भी राष्‍ट्र के राजनय उद्देश्‍यों से परे नहीं हो सकती। चंद्रगुप्‍त को यह बातें बहुत बुरी लगीं, लेकिन अपने गुरु की बात उन्‍हें माननी ही पड़ी।

चाणक्य कोई सामान्य विचारक नहीं थे। उनके अपने अनुभव-जनित सिद्धांत थे, जो इतने सटीक और कारगर थे कि उन सिद्धांतों और फॉर्मूलों को अप्लाई करते ही परिणाम तय हो जाता था। चाणक्य दुनिया के तमाम रणनीतिकारों से बहुत आगे इसलिए भी हैं क्योंकि बाकियों ने सत्ता प्राप्त की, तो उसमें अपना हिस्सा लिया, उसका भोग किया। लेकिन चाणक्य का जीवन भरपूर सादगी का जीवन था। मौर्य साम्राज्य का महामंत्री होने के बावजूद वे एक छोटी सी कुटिया में रहते थे, जिसकी दीवारों पर गोबर के उपले थापे रहते थे। अपनी कुटिया के बारे में पूछने पर उन्होंने यूनान के राजदूत से कहा था, “अगर मैं जनता की कड़ी मेहनत और पसीने की कमाई से बने महलों में रहूंगा, तो मेरे देश के नागरिकों को कुटिया भी नसीब नहीं होगी”।

वैसे तो राजनीति में सफलता अर्जित करने के बाद चाणक्य की उपाधि से नवाजे जाने की रवायत काफी पुरानी है। लेकिन 2014 के बाद से इस उपनाम की उपयोगिता बढ़ती ही जा रही है।

जब-जब राजनीति में सियासी सफलता और शह-मात का खेल होता है तो राजनीतिक पैंतरेबाजी को जायज ठहराने के लिए चाणक्‍य का उदाहरण देना शुरू कर दिया जाता है। अगर चाणक्‍य के किरदार को गौर से देखें, तो पता चलेगा कि चाणक्‍य नीति का असली मतलब है राष्‍ट्रहित में कठोरतम फैसला लेना। एक ऐसा फैसला, जिसमें किसी भी सूरत में निजी स्‍वार्थ शामिल हो ही नहीं सकता। चाणक्‍य नीति का मतलब है कोरी भावनाओं को ताक पर रखकर विवेक को सर्वोपरि रखना और सबसे बढ़कर चाणक्‍य नीति का मतलब है कि किसी महान उद्देश्‍य के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देना।

वर्तमान दौर में चाणक्य की कुटिलता को सफलता से जोर कर उनकी सरलीकरण किया जा रहा है। हर हाल में नतीजें देने की काबिलियत चाणक्य बनने का पैमाना बन गई है।

अभिनय आकाश
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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