फेक न्यूज कुछ ज्यादा ही

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कोरोना वायरस ने हमारे जीवन को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है। पूरी दुनिया आज इसके खिलाफ जंग लड़ रही है। लेकिन इस लड़ाई में बाधाएं भी कम नहीं हैं। एक तरफ समाज में सकारात्मक सोच रखने वाले लोग अपनी जान पर खेलकर मानवता के पक्ष में काम कर रहे हैं, दूसरी तरफ एक तबका इसमें भी अपने स्वार्थ साधने में जुटा है। मीडिया का पुराना रोग फेक न्यूज कोरोना के दौर में कुछ ज्यादा ही गहरा गया है और इसने महामारी के खिलाफ लड़ाई को काफी मुश्किल बना दिया है। कोरोना वायरस को लेकर तमाम तरह के भ्रम और झूठी खबरें फैलाई जा रही है जिससे लोगों के सामने दुविधा की स्थिति पैदा हो रही है। वे समझ नहीं पा रहे कि किस बात को सच मानें और किसे झूठ। इससे कई तरह की व्यावहारिक समस्याएं खड़ी हो रही हैं।

खबरों के साथ की जा रही इस छेड़खानी से परेशान होकर कई देशों ने फेक न्यूज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इटली के मीडिया ने लोगों तक कोरोना से जुड़ी सही खबरें पहुंचाने, उपचार के मामले में नीम-हकीमी के खतरों से बचाने और कोरोना जैसी आपदाओं की कवरेज के लिए प्रशिक्षित पत्रकारों की टीम तैयार करने का रास्ता पकड़ा है। इस वैश्विक आपदा की खोजपूर्ण कवरेज के लिए खासकर इटली की कंपनी ‘एडिनेट’ के वर्किंग मॉडल पर विश्व मीडिया की नजर है। तीव्र संक्रमणकारी कोरोना वायरस के मामले में ‘रिमोट न्यूजरूम’ से कवरेज करने की ‘एडिनेट’ प्रविधि कारगर साबित हुई है।

इटली के सावोना नगर में स्कूलों, सिनेमाघरों, क्लबों, बाजारों की बंदी के बाद ‘एडिनेट’ प्रकाशन कंपनी के ‘वास्त्रो जियोमाले’ और जेनेवा- 24 समाचार पत्रों ने तथ्यात्मक रिपोर्टिंग के अलावा आशाजनक सकारात्मक खबरें और बचाव के वैज्ञानिक उपाय भयाक्रांत पाठकों तक पहुंचाए। इंटरनेट की मदद से इंटरव्यू और लेख एकत्र करके पाठकों के समक्ष पेश किए गए। इससे पत्रकारों की भी संक्रमण से सुरक्षा हुई। जेनोवा के संक्रामक रोग प्रभारी मैतियो बासेती ने मीडिया के इस सहयोग को महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बताया।

प्रामाणिक और विश्वसनीय खबरों के प्रकाशन ने इन समाचारपत्रों की साख का ग्राफ इस तरह ऊंचा चढ़ा दिया कि फेसबुक पर कोरोना वायरस खतरे से संबंधित एक खबर को सवा तीन लाख लोगों ने शेयर किया, जबकि समाचार पत्र में प्रकाशित एक लाइव साक्षात्कार को 25 लाख लोगों ने पढ़ा। फेक न्यूज की बाढ़ ने गूगल पर भी दबाव बढ़ा दिया है। उसने झूठी जानकारियों से निपटने के लिए 65 लाख डॉलर (करीब 49 करोड़ रुपये) खर्च करने का फैसला किया। इस राशि के जरिए वह फैक्ट चेकर्स और गैर-लाभकारी संगठनों को बढ़ावा दे रहा है, जो कोरोना वायरस महामारी से जुड़े मामलों की तथ्यों के आधार पर जांच करेंगे। कंपनी लोगों को गलत खबरों और जानकारियों से बचाने के लिए वैज्ञानिकों, पत्रकारों और सिलेब्रिटीज की मदद ले रही है।

गूगल के मुताबिक उसके अभियान में भारत में बूम लाइव और नाइजीरिया में अफ्रीका चेक के साथ साझेदारी करने में ‘डाटा लीड्स’ की मदद की जा रही है। इसके तहत कंपनी भारत और नाइजीरिया में करीब एक हजार पत्रकारों को ट्रेनिंग देगी। इसके अलावा गूगल ‘गूगल न्यूज इनिशिएटिव’ (जीएनआई) भी इस मामले में काम कर रही है।

वॉट्सऐप ने भी इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। लॉकडाउन के समय व्हाट्सऐप लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभा रहा है, लेकिन मामले का दूसरा पहलू यह है कि सबसे ज्यादा फर्जी खबरें भी यहीं प्रसारित की जा रही हैं। ऐसे में वॉट्सऐप ने कड़ा कदम उठाते हुए फॉरवर्ड मैसेज के लिए सीमा तय कर दी है। उसका दावा है कि इस कदम से उसके प्लैटफॉर्म पर सबसे ज्यादा फॉरवर्ड किए जाने वाले फर्जी मेसेजेस में 70 प्रतिशत की कमी आई है।

कंपनी का कहना है कि जब से हाइली फॉरवर्डेड मेसेजेस को आगे केवल 1 कॉन्टैक्ट के साथ शेयर करने की सीमा तय की गई है, तब से इसमें कमी देखी जा रही है। वॉट्सऐप के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘वॉट्सऐप फेक और वायरल मेसेज को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।

किंशुक पाठक
(लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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