फिर बदल गई तिब्बत पर नीति

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार सुबह जैसे ही ट्वीट कर बताया कि उन्होंने दलाई लामा को जन्मदिन की बधाईयां दी हैं, इस पर चर्चा तेज़ हो गई कि या ये चीन को एक संदेश है? पिछले साल, ठीक गलवान झड़प के बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी कोई बधाई नहीं दी थी। इसके पहले 2019 में दलाई लामा को फोन पर बधाई दी गई पर सार्वजनिक नहीं किया गया। इस बार या बदला है – एक साल में और मोदी सरकार में तिबत और दलाई लामा के संदर्भ में। जब 2014 में जब बीजेपी सत्ता में आई तो पीएम मोदी की पहल पर चीन के साथ रिश्तों में सुधार के लिए कदम उठाए गए। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत ने न्योता भेजा। सितंबर 2014 में अहमदाबाद में मोदी और जिनपिंग झूले पर साथ नजऱ आए। लेकिन उसी दरम्यान चुमार में पीएलए के सैनिक घुसे और और बातचीत के बाद वापस भेजे गए। 2015 में जब मोदी चीन गए तब भी सीमा तय करने पर बात आगे नहीं बढ़ और तो और 2017 में एक बार फिर चीनी सेना डोकलाम में घुस आई और 73 दिनों तक वहां से निकली नहीं। चीन को शांत करने की कोशिशों में एक था तिबत समस्या से दूरी।

2018 में 60 साल तक भारत के समर्थन के लिए शुक्रिया अदा करने के लिए निर्वासित तिब्बत सरकार ने जो कार्यक्रम किए उनमें भारत सरकार का कोई बड़ा चेहरा नजऱ नहीं आया। तब तक कई जानकारों का मानना रहा कि तिबत को चीन के खिलाफ एक लिवरेज की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन डोकलाम के बाद ये बदलता हुआ लगा। अटूबर 2019 में एक बार फिर शी जिनपिंग इन्फॉर्मल सम्मेलन के लिए भारत आए लेकिन 6 महीने के अंदर गलवान में पीएलए के सैनिक घुस आए, हिंसक ड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए और अभी तक चीनी सेना वापस अपने अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति में नहीं लौटी है। कई दौर की राजनयिक और सैन्य स्तर की बातचीत हो चुकी है लेकिन हालात सामान्य नहीं हुए हैं। 2020 में पीएम मोदी ने दलाई लामा को ऐसे सार्वजनिक रूप से बधाई दी हो ऐसा कहीं रिकॉर्ड नहीं लेकिन कुछ रिपोर्ट के मुताबिक पीएम ने उन्हें फोन किया था, बात नहीं हो पाई थी। चीन की सेना की एलएसी पर घुसपैठ और उससे से बने तनाव के बीच पीएम ने ट्वीट कर बताया कि उन्होंने दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई दी है। उन्होंने 4 जुलाई को अमेरिकी राष्ट्रपति को भी स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी लेकिन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे होने के मौके पर कोई बधाई संदेश नहीं दिखा।

हालांकि 2015 में सीसीपी को और उस वत के चीनी पीएम को बधाई ने चीन के सोशल मीडिया पर धूम मचा दी थी। चीन के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव के साथ ही तिबत के मामले में नीति तय करते ये सरकार दिख रही है लेकिन या तिबत भारत के हाथ में तुरूप का पत्ता है और या ये सही तरीका है इस पूरे मसले से निबटने का? ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि फिलहाल चीन का लक्ष्य सिर्फ अपने हिसाब से सीमा तय करना लगता है और कोई भी द्विपक्षीय या बैक चैनल मध्यस्थता काम करती नजऱ नहीं आ रही। हालांकि अब चीन-अमेरिकी तनाव के बीच अमेरिका की नजऱ भी तिबत और शिनजियांग की तरफ मुड़ी है। अमेरिका लगातार इन दोनों जगहों पर मानवाधिकार को लेकर सवाल उठा रहा है। भारत पिछले कुछ सालों में अमेरिका से भी करीब आया है। भारत का वाड में शामिल होना चीन को नागवार गुजऱा है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में ये वक्त ऐसा है जो आने वाले लंबे वक्त के लिए भारत की स्थिति विश्व में तय करेगा… और इस सब में तिबत एक अहम फैटर है।

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