प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अब अपने ट्वीटर हैंडिल पर वागरिकता संशोधन कानून के प्रति लोगों में फैल रहे भ्रम को दूर करने के लिए अभियान शुरू कर दिया है। कानून के समर्थन के पक्ष में सद्गुरू जग्गी वासुदेव के वीडियो क्लीपिंग को टैग क या है, जिसमें कानून के कारणों और उसके प्रभाव पर प्रभावशाली ढंग से प्रकाश डाला गया है। इस वर्ष के अंतिम रविवार को प्रधानमंत्री ने मन की बात में भी सीएए को लेकर देश के भीतर चल रहे विरोध के जवाब में अपना विश्वास व्यक्त करते हुए कहा था कि देश का युवा अराजकता पसंद नहीं करता है। उसे सर्जनात्मकता और देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने व देखने में अपनी महती भूमिक रेखांकि त किया जाना पसंद है। इससे पहले भी दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित धन्यवाद रैली में उन्होंने बड़े साफ लहजे में देख के लोगों को बताया था कि बीते सत्र में पारित हुआ नागरिकता कानून यहां के लोंगों से संबंधित नहीं है बल्कि पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान-बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक पहचान के कारण सताये गये अल्पसंख्यक भारत आये हैं उन्हें नागरिकता देने का कानून है।
यह कानून यहां के किसी भी नागरिक के अधिकार को छीनने वाला नहीं है। उनके अब तक के प्रयासों के बावजूद आंदोलन धीमा नहीं पड़ा है जिस तरह पूरा विपक्ष इस मुद्दे को सरकार बनाम नगारिक समाज बताने की चेष्टा कर रहा हैए उससे देश के भीतर निश्चित तौर पर अराजकता की स्थिति विषम होगी। वाम दलों से जुड़े छात्र संगठनों ने सीधे मोदी सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है, कहा है कि 26 जनवरी से पहले सीएए को सरकार वापस ली अन्यथा देश के सभी विश्वविद्यालयों में एक साथ आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। उधर देश के 11 और भाजपा सरकारों ने पहले से कह दिया है कि उनके यहां सीएए नहीं लागू होगा। जबकि नागरिकता संबंधी कानून बनाने का संसद को अधिकार है, जिसका राज्य सरकारें अनुपालन कराने को संवैधानिक रूप से बाध्य है। पर ऐसी स्थिति वास्तव में पैदा होती है तब केन्द्र के पास क्या विकल्प रहेगा। यह सवाल जितना अहम है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। एनसीपी लीडर शरद पवार ने भी सीएए की नाफरमानी पर केन्द्र के संभावित विकल्पों को लेकर अपनी आशंका जताई थी।
इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह सीएए-एनआरसी को लेकर विरोध का बिगुल फूंका है, उससे संवैधानिक संकट और गहरा सकता है। जिस प्रकार टीएमसी प्रमुख ने इस मुद्दे पर पूरे विपक्ष से एक जुटता की अपील की है, तो आने वाले दिनों में बड़ी चुनौती देश कर सकता है। शायद प्रधानमंत्री को अंदाजा है कि विपक्ष किस तहर जनाक्रोश की पीठ पर सवार होकर अपने राजनीतिक हित साधने की फिराक में है। यही कारण है, उन्होंने अब खुद मोर्चा संभाल लिया है। सोशल मीडिया में उनकी अच्छी-खासी फालोइंग है। एक तरह से मोदी सरकार भी अब पब्लिक ओपिनियन को खड़ा करने के अभियान में जुट गई है। खुद भाजपा के नेता, पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस मुहिम को कितनी ऊर्जा प्रदान करते हैं, इस पर काफी कुछ निर्भर रहने वाला है।
समझ में आ गया है कि यह मसला कानून.व्यवस्था से जुड़ा नहीं है बल्कि जिस तरह लोगों के दिलो-दिमाग को एक खास जानकारी से लैस किया गया हैए उससे पुलिस प्रशासन नहीं निपट सकता। जरूरत है जवाब में सकारात्मक मुहिम छेडऩे की। इससे समाज के बुद्धिजीवीए साहित्याकार व समाजसेवी की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इसी तरह धर्मगुरूओं को भी सीधे तौर पर कानून के उद्देश्य के प्रति जागरूक करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इन गुरूओं की अपनी एक खास पकड़ होती है, जो इसी समाज का हिस्सा होते हैं। लिहाजा इन सारे मोर्चों पर सकारात्मक अभियान चलाये जाने पर ही विरोधी खेमे के इरादों को मात दी जा सकती है। इस दिशा में सबको जोड़े जाने का प्रयास स्वागत योग्य है। सियासत के नाम पर देश हित को नुकसान पहुंचाने के मंसूबे पालने वालों को करारा जवाब दिया जाना जरूरी है।