समय कितनी जल्दी बीत जाता है। कई बार लगता है कि जैसे कल की ही बात हो। करीब 40 साल पहले 1979 में जब जनता पार्टी के अंदर उठा पटक शुरु हुई थी तब मैने एक लेख पढ़ा था जिसने उनके बारे में विस्तार से लिखते हुए लेख का शीर्षक दिया था कि ‘पारे जैसी एकता’ तब याद आया था कि बचपन में हम लोग थर्मामीटर के टूट जाने पर पारे से खेलते थे। उसके छोटे-छोटे टुकड़े उसके टूट जाने पर जमीन पर गिर लुढकते थे व हम लोग कांच से बचते हुए कागज की मदद से उसके दो छोटे—छोटे टुकड़ों को मिलाकर बड़ा टुकड़ा बना लेते थे व फिर उससे खेलते थे जो कि तीसरा या चौथा टुकड़ा मिलने पर और बड़ा होते ही पुनः टूट जाता था।
जब महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा द्वारा मिलकर सरकार बनाने की खबर पढ़ी तो पारे की एकता याद आ गई। पारे के टुकड़े अपने आदत व गुण के कारण न तो ज्यादा देर तक एक साथ ही रह सकते हैं और न ही अलग रहते हैं। अपने ज्यादा भार के कारण टूटकर बिखर जाना इनकी विशेषता होती है।
हाल ही में एक और खबर पढ़ने में आयी कि इंडोनेशिया में पारा लोगों के जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है। वहां गरीब लोगखनिज करते हुए जमीन में मौजूद सोने के छोटे छोटे टुकड़ों को पहले पारे में घोल लेते हैं क्योंकि सोना उसमें घुल जाता है फिर उस घोल को गर्म करके पारे को हवा में उड़ा देते व सोना पुनः ठोस होकर उससे अलग हो जाता है व पारे की मात्रा वायु को प्रदूषित करती है। जबकि वहा कुछ जगहों के मिट्टी से पारे को अलग करने के लिए उसे पानी में धोकर पास की नदी में बहा दिया जाता है जो कि नदी के पानी में रहने वाले जीव जंतुओं जैसे मछली, केकड़ो को प्रदूषित कर उनके जरिए हमारे शरीर तक पहुंच जाती है।
दरअसल पारा या मरकरी को सदियों से इसी विधि के द्वारा हासिल किया जाता रहा है। इस तरह से मिलने वाला सोना सौ फीसदी शुद्ध होता है। आंकड़े बताते है कि इन विधियों का इस्तेमाल 3000 साल से होता रहा है। अमेरिका में 1960 तक इस विधि से सोना निकाला जाता रहा है व कैलीफोर्निया में तो आज तक उसे भाप के कारण होने वाले प्रदूषण के दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं।
पारे की गैस या भाप नाड़ी तंत्र, पाचन क्रिया व रोगों से लड़ने की शरीर की क्षमता पर बहुत बुरा असर डालती है। इनसे प्रदूषित वायु को सांस के रुप में लेने से फेफड़े खराब हो जाते हैं। सिरदर्द होने लगता है। चक्कर आने व उल्टियां आने की समस्याएं शुरु हो जाती है। इसके बावजूद जहां अनेक देशों में पारे के उपयोग से सोने निकाले जाने पर रोक लगा दी है वहीं गुयाना, सूरीनाम, फिलीपींस, अफ्रीका के पश्चिमी देशों व इंडोनेशिया में आज भी यह इस्तेमाल में लाया जा रहा है।
गरीब देश में सोना हासिल करने का यह सबसे आसान व सस्ता तरीका माना जाता है। दुनिया में कुल हासिल होने का 15 फीसदी हिस्सा इसी तरीके से हासिल किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर अकेले इंडोनेशिया में करीब 30 लाख लोग इस धंधे में लगे हुए है। यह तंत्रिका तंत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। दुनिया में इस तरकीब से करीब डेढ़ करोड़ लोग सोना हासिल कर अपनी आजीविका चलाते हैं।
करीब एक टन सोने के अयस्क वाली मिट्टी से महज 28 ग्राम सोना ही मिलता है। इसके लिए खनिको को काफी मिट्टी खोद कर उसमें जमा पत्थरों को पीसकर उनमें मौजूद सोने को पारे में घोलना पड़ता है। मालूम हो कि पारा दुनिया की एकमात्र ऐसी धातु हैं जो कि द्रव्य रुप में रही है व काफी भारी होती है। यह धातु तांबा, अयस्क व ईंधन से हासिल होता है। पर्यावरण के लिए बेहद खराब होने के बावजूद पर्यावरण में उसकी मात्रा बढ़ती जा रही है। यह मछली व समुद्री जीवों में बड़ी मात्रा में पाया जाता है।
यह हमारी सेहत के लिए जितना अधिक खतरनाक है दुनिया भर में विभिन्न धार्मिक संस्कारों में उसका उतना ही ज्यादा महत्व रहा है। कुछ समय पहले चीन व मेक्सिको में खुदाई के दौरान कुछ ऐसी कब्रे मिली थीं, जिनके आसपास गड्ढे के चारो ओर पानी भरा था। इन्हें हजारों साल पुराना माना जाता है। उस समय के लेागों ने जमीन से पारा निकाल कर उसको शुद्ध करके उसे अंतिम संस्कार के लिए डुबो कर रखने की तरकीब बनाई थी।
हिंदू धर्म में भी पारे को बहुत ज्यादा महत्व मिला हुआ है। हमारे यहां पारे द्वारा तैयार किए गए शिवलिंग को पूजे जाने की प्रथा काफी पहले से जारी है। ऐसा माना जाता है कि पारे के शिवलिंग की पूजा करने से सभी मन मांगी मुरादे पूरी हो जाती है। इसे पारे में कुछ और धातुएं तत्व वा जड़ी बूटियां मिलाकर तैयार किया जाता है। इसकी सत्यता के दावो के बारे में कुछ भी कह सकना मुश्किल है। क्योंकि गूगल पर पारे के बने शिवलिंग बेचने के विज्ञापन भरे पड़े हैं जहां यह मात्र 396 रुपए से 20 हजार रुपए तक कीमत पर मिल जाता है।
विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं