पाकिस्तान की हताशा

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कश्मीर मसले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से साफ-साफ कह दिया है कि पाकिस्तान और भारत के बीच किसी तीसरे देश की जरूरत नहीं है। द्विपक्षीय मामले को बातचीत से सुलझा लिया जाएगा। इस पर ट्रंप की तरफ से भी हामी भरे जाने के बाद पाकिस्तान बेहद निराश हैं। यह स्वाभाविक इसलिए भी है कि उसे इस मसले पर अमेरिका से बड़ी उम्मीद थी। अपने अमेरिका के दौरे में पाक पीएम इमरान खान को ट्रंप की ओर से मध्यस्थता की पेशकश के बाद इस बात की तसल्ली थी कि उसकी कोशिश परवान चढ़ रही है। इसके पीछे एक वजह यह भी थी कि अमेरिका अब अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहता है। इसके लिए पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। पाकिस्तान की मंशा ट्रंप की इस जरूरत को अपने हिसाब से इस्तेमाल करने की थी।

लेकिन मोदी और ट्रंप के बीच सीधी बातचीत के बाद तस्वीर साफ हो गई। यह ठीक है कि ट्रंप अपने बयानों से यू टर्न लेने के लिए मशहूर है। हो सकता है अगले किसी मौके पर उनकी तरफ से फिर तरफ से फिर मध्यस्थता की पेशकश सामने आए, क्योंकि अगले बरस अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव होना है और वहां की जनता चाहती है कि उसके सैनिका अफगानिस्तान से स्वदेश लौट आएं। यही वजह है कि ट्रंप की तरफ से पाकिस्तान को ठीक -ठाक भाव दिया जा रहा है। लेकिन एक सच यह भी है कि भारत के सरोकारों की अमेरिका अनदेखी भी नहीं कर सकता। सवा अरब की मार्केट है यहां, इसके अलावा भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी पिछले वर्षों में बढ़ी है। एक तथ्य यह भी है कि एशिया में चीन को काउंटर करने के लिए भारत के साथ की अमेरिका को बड़ी जरूरत हैं।

एक और वजह है, भारत का वैश्विक कद कई मामलों में ऊंचा हुआ है। यूरोप के देश हों या खाड़ी के देश अथवा अफ्रीकी देश हों। सभी जगह भारत ने अपने रिश्तों को मजबूती दी है। आर्थिक और सांस्कृतिक विस्तार की भारतीय नीति ने एक खास जगह अन्तर्राष्ट्रीय जगत में बनाई है। अमेरिका इसे जानता है इसलिए उसे भारत के साथ की जरूरत है और भारत को भी अमेरिका का साथ चीन को काउंटर करने के लिए चाहिए। लिहाजा दोनों को समान आवश्यकता है। भारत ने भी कई अवसरों पर यह स्पष्ट किया है कि उसके लिए अपने राष्ट्रीय हित सबसे ऊपर हैं। इसे लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि देश की संसद ने जम्मू-कश्मीर पर एक ऐतिहासिक फैसला लिया तो दुनिया के जम्मू-कश्मीर पर एक ऐतिहासिक फैसला लिया तो दुनिया में किसी भी देश ने चूं तक नहीं की।

पाकिस्तान को यही बात अखर रही है। खुद पाकिस्तान के पीएम ने भी सोमवार को देश के नाम संबोधन में स्वीकार किया कि उनके हक में कोई देश इसलिए नहीं है कि हम कमजोर हैं। मुस्लिम देश भी अपने तिजारती उद्देश्य के कारण उसके साथ नहीं है। लेकिन समय आने पर साथ जरूर आएंगे। इसलिए कश्मीर को लेकर पूरी दुनिया में एक मूवमेंट खड़ा करने की कोशिश की जाएगी। देश के भीतर हर जुमा इस बारे में तकरीर होगी। इसी के साथ उन्होंने न्यूक्लियर वार की भी धमकी दी और सावधान भी किया कि इससे दोनों देशों का नुकसान होगा। उनके संबोधन से साफ है कि मोदी-ट्रंप की मुलाकात के बाद उपजे हालात से पाकिस्तान बेहद निराश हैं।

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