पाक की एक सिख लड़की उसका पिछले साल धर्मान्तरण कर क्षेत्र के एक दबंग परिवार के लड़के से निकाह कर दिया गया था। मामला जब तूल पकड़ा तो लड़की की बरामदगी हुई। पूरा प्रकरण कोर्ट की निगरानी में है। उसी परिवार ने दबाव बनाने के लिए उम्मादी हरकत की। इस पर पाकिस्तानी सिखों के साथ ही भारत की सरकार ने भी चिंता जताते हुए कड़ी आपत्ति जताई है। इमरान सरकार ने सिख समुदाय को सुरक्षित समान का भरोसा दिया है। पर ऐसी घटनाएं कहीं ना कहीं पाकिस्तान के उन इलाकों में होती हैं, जहां अल्पसंख्यक आबादी मौजूद है। रोज कितनों का जबरन धर्मान्तरण होता है इससे संबंधित आंकड़ों को लेकर राय जुदा भी हो सकती है लेकिन विभाजन के वक्त पाकिस्तान के मौजूदा हिस्से में 21 फीसदी अल्पसंखयक आबादी थी, जिसमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी शामिल हैं, वो अब तीन फीसदी के आसपास रह गई है। जाहिर है उनका पलायन हुआ या फिर उन्होंने वहां के राज्य का धर्म स्वेच्छा से स्वीकार लिया। लेकिन अल्पसंख्यक लड़कियों के धर्मान्तरण और निकाह की खबरें दशकों से यहां मिलती रही हैं।
जो किसी तरह से पाकिस्तान छोड यहां शरणार्थी के तौर पर आये, उनकी जुबानी भी यहीं दर्द सामने आता है। अब यूएनओ के धार्मिक मामलों की समिति ने भी एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें साफ तौर पर कहा गया है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सबसे बुरी स्थिति है। जाहिर है, उसमें धार्मिक तौर प्रताडऩा दिए जाने का मामला सबसे ऊपर है। इसी का पहले से आकलन करते हुए 1950 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच अपने यहां के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का समझौता हुआ था जिसका भारत ने तो पालन किया पर पाकिस्तान निजाम इसमें नाकाम रहा। अब, जब उसी पीड़ा को दूर करने के लिए मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून लेकर आई तो कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल विरोध पर उतर आये हैं। पाकिस्तान से आयी अल्पसंख्यक संग भेदभाव की खबर के बाद भाजपा ने भी विपक्ष को सच कुबूल करने की जरूरत बताई। वैसे विपक्ष को भी पता है कि पारित कानून की मंशा क्या है पर दिक्कत अपनी चली आ रही सियासी परम्परा को बचाने की है।
इसके लिए कुतर्क भी गढऩा पड़े तो वो भी सही। शुरूआती दौर में जिस तरह भ्रम फैलाकर देश के कुछ खास हिस्सों में कानून का पुरजोर विरोध किया गया, उससे दुनिया भर में छवि यह बनी कि सेकुलर देश भारत में भी अल्पसंख्यक विरोधी हवा चल रही है। जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों में विरोध के नाम पर घुस आये उपद्रवियों ने तांडव मचाया उसका एक ही जवाब हो सकता था पुलिस की सख्ती और उसके बाद से अब हिंसक प्रदर्शन थम गया है। सरकार की तरफ से कानून की सही तस्वीर पेश की जाने लगी है। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा लोगों तक पहुंच रही है। संचार के उन्हीं माध्यमों का सकारात्मक इस्तेमाल हो रहा है, हालांकि इसमें कुछ बेकसूर भी लपेटे में आ जाते है- कहावत है कि गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है। पर कुल मिलाकर तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक तौर पर प्रताडि़त अल्पसंख्यक समुदायों को ध्यान में रखकर लाये गये कानून की वास्तव में उपादेयता है यह बात सीमापार से मिलती खबरों से स्वत: हो जाती है। पाकिस्तान में हिंदू, सिख, ईसाई किस हाल में रखते हैं यह जग जाहिर है। प्रभावशाली कट्टरवादियों के चलते पाकिस्तानी निजाम के भी, अपने हितों को ध्यान में रखते हुए वास्तविक सरोकार धरे रह जाते हैं।