भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को साफबता दिया है कि बातचीत का गतिरोध तोड़ने से पहले उसे आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति से पीछे हटना होगा। पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हमले और पाकिस्तान में भारत की एयर स्ट्राइक के बाद बीते रविवार पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोन पर बातचीत हुई। मोदी ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि दक्षिण एशिया में शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए पहले हिंसामुक्त और आतंक मुक्त माहौल बेहद जरूरी है। आपस में उलझने के बजाय मिलकर गरीबी के खिलाफ जंग लड़ी जाए, यह बात एक बार फिर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत में दोहराई। आर्थिक मोर्चे पर बदहाली के कगार पर खड़ा पाकिस्तान अपनी बिगड़ी हुई छवि को सुधारना तो चाहता है, पर आतंकियों को संरक्षण देने की उसकी चली आ रही नीति में तनिक भी बदलाव देखने को नहीं मिल रहा।
यही वजह रही कि पाक पीएम इमरान खान फोन पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बातचीत दोबारा शुरू करने के इच्छुक हैं। दोनों देशों के बीच रिश्तों का एक नया दौर शुरू करना चाहते हैं। पर विसंगति यह है कि उसी दौरान उनकी सेना एलओसी पर दोबारा गोलाबारी करके सीज फायर का उल्लंघन करने से बाज नहीं आती। ऐसी स्थिति में जहां पाकिस्तान आज भी प्रायोजित आतंकवाद की नीति का अगुवा बना हुआ है वहां उससे बातचीत दोबारा शुरू करना बेवजह की कवायद ही साबित होगी। बातचीत के निष्फल होने का एक लम्बा अनुभव भारत के खाते में दर्ज है, जहां रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिशों के दौरान देश को बार-बार अपने जवानों को खोना पड़ा है। इस दृष्टि से आतंक वाद और बातचीत एक साथ नहीं का सिद्धांत पाकिस्तान के मामले में अब भी प्रासंगिक है। मोदी ने ठीक ही कहा है कि पहले पाक अपना रवैया बदले तब होगी बातचीत।
जिस तरह आतंक वाद के मसले पर भारत का रूख जीरो टॉलेरेंस वाला कायम है, उससे पाकिस्तान के भीतर आतंकि यों को शह देती आई पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और मिलिट्री इस्टैबलिशमेंट की बड़ी किरकिरी हो रही है। भारत विरोध की नीति को लेकर पाकिस्तान की सिविल सोसायटी भी सवाल खड़े कर रही है। आर्थिक सवालों के साथ भारत की अन्तर्राष्ट्रीय जगत में बढ़ती धमक को लेकर पाकिस्तान के भीतर सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान की नीतियां सवालों के घेरे में है। सवाल उठ रहा है कि पाक पीएम ने नये पाकिस्तान का नारा दिया था, उसका क्या हुआ? आईएमएफ और वल्र्ड बैंक से अब तो कर्ज भी मिलने की राह बंद हो गई है। आतंकियों को आर्थिक और सामरिक सहयोग देने का आरोप पाकिस्तान पर चस्पा है, जिसके चलते दिन ब दिन उसकी घरेलू मोर्चे पर भी स्थिति लगातार बिगड़ रही है। इसी रोशनी में पाक पीएम ने भारतीय पीएम मोदी से बातचीत की पेशकश तो की लेकिन उनकी सेना ही उनकी कोशिश को फेल करने में लगी हुई है। ऐसे में पाकिस्तान पर दोबारा भरोसे का जोखिम भारत कैसे मोल ले सकता है?