पद्मा/परिवर्तनी एकादशी

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स्मार्तजन 6 सितम्बर, मंगलवार को तथा वैष्णवजन 7 सितम्बर, बुधवार को रखेंगे व्रत
भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से होगी मोक्ष की प्राप्ति
एकादशी व्रत से होगी भाग्य में उन्नति

भारतीय सनातन परम्परा में विशेष पर्व तिथि का खास महत्व है। हर एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गई है। सभी तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को पद्मा, पार्श्व परिवर्तनी या जलझूलनी एकादशी नाम से जानी जाती है।

प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 6 सितम्बर, मंगलवार को प्रात: 5 बजकर 55 मिनट पर लगेगी जो कि उसी दिन 6 सितम्बर, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 05 मिनट तक रहेगी। आयुष्मान योग 6 सितम्बर, मंगलवार को प्रातः 8 बजकर 15 मिनट से रात्रिशेष 4 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। आयुष्मान योग में व्रत एवं पूजा-अर्चना तथा दान करना विशेष फलदायी बतलाया गया है। जिसके फलस्वरूप स्मार्तजन 6 सितम्बर, मंगलवार को तथा वैष्णवजन 7 सितम्बर, बुधवार को रखेंगे व्रत। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि चातुर्मास्य के दौरान भगवान विष्णु वामन रूप में पाताल में निवास करते हैं, भगवान श्रीविष्णु चातुर्मास्य के दूसरे मास में शयन शैय्या पर सोते हुए करवट बदलते हैं, इसलिए इस एकादशी का नाम पार्श्व परिवर्तनी एकादशी पड़ा है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

एकादशी व्रत का विधान-ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करके, गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् पद्मा/परिवर्तनी एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ‘ॐ नमो नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अर्जित करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि बनी रहे। व्रत के दिन ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा के साथ उपयोगी वस्तुओं का दान करके आशीर्वाद प्राप्त कर पुण्यलाभ लेना चाहिए।

ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन

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