न्यायपालिका की अग्नि-परीक्षा

0
226

हमारे सर्वोच्च न्यायालय की इज्जत दांव पर लग गई है। पहले तो प्रधान न्यायाधीश रंजन-गोगोई पर यौन-उत्पीड़न का आरोप लगा और अब एक वकील ने अपने हलफनामे में दावा किया है कि जस्टिस गोगोई को फंसाने के लिए कुछ ताकतवर लोगों ने यह षड़यंत्र रचा है। उस वकील ने बंद लिफाफे में सारा मामला उजागर करते हुए लिखा है कि जो लोग गोगोई को फंसाना चाहते हैं, उन्होंने उनके यौन-अत्याचार पर दिल्ली में प्रेस-कांफ्रेंस करने के लिए उन्हें डेढ़ करोड़ रु. देने की भी पेशकश की थी।

यह सचमुच बड़ा गंभीर आरोप है। इसकी जांच की जिम्मेदारी सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए.के. पटनायक को दी गई है और उन्हें यह अधिकार भी दे दिया गया है कि वह सरकार की प्रमुख जांच एजेंसियों और पुलिस की सहायता भी ले सकते हैं। इस जांच को उस जांच से अलग रखा गया है, जो उस महिला के आरोपों के यौन-उत्पीड़न की जांच करेगी। याने एक साथ दो जांचें होंगी। कहा नहीं जा सकता कि इन दोनों जांचों में से क्या निकलेगा लेकिन आशा है कि ये जांचें निष्पक्ष होंगी। यौन-उत्पीड़न की जांच कमेटी के एक जज ने अपने आपको उससे अलग कर लिया है, क्योंकि उस यौन-पीड़ित महिला ने उनके बारे में शक प्रकट किया था। इस आतंरिक कमेटी में अब दो महिलाएं हो गई हैं। जो दूसरी कमेटी है, वह जस्टिस पटनायक की है। जस्टिस पटनायक अपनी निर्भीकता और निष्पक्षता के लिए विख्यात हैं। पहले भी इसी तरह के मामलों में वे दो-टूक फैसले दे चुके हैं।

यदि उस वकील के आरोप सही साबित हो गए तो देश की न्यायपालिका और राज्य-व्यवस्था की प्रामणिकता पर गहरा संदेह उत्पन्न हो जाएगा। यह मामला उस गहरे षड़यंत्र को उजागर करेगा, जो निष्पक्ष न्याय के विरुद्ध सत्ताधीश और धनाधीश लोग करते रहते हैं। न्यायपालिका को पथ-भ्रष्ट करने वाले इन तत्वों को यदि कठोरतम सजा नहीं दी गई तो देश में न्याय की हत्या के ये निर्मम और अदृश्य षड़यंत्र जारी रहेंगे। उसका यह लाभ जरुर होगा कि जस्टिस गोगोई इस अग्नि-परीक्षा से यदि सही-सलामत बच निकले तो उनकी प्रतिष्ठा और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बची रह जाएगी।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here