कांग्रेस के नेता चिदंबरम तो अभी फंसे ही हुए हैं, अब दूसरे कांग्रेसी नेता कुलदीप बिश्नोई की गुरुग्राम में स्थित ब्रिस्टल होटल को भी सरकार ने जब्त कर लिया है। कुलदीप की बेनामी संपत्ति को निकालने के लिए उनके और उनके भाई चंद्रमोहन के दर्जनों ठिकानों पर छापे भी मारे गए हैं। जाहिर है कि दाल में कुछ काला जरुर है वरना विरोधी नेताओं को इस तरह तंग करने पर सरकार खुद मुसीबत में फंस सकती है।
यह तो अदालतें तय करेंगी कि ये नेता लेाग कितने पाक-साफ हैं लेकिन जैसा कि मैं पहले भी लिख चुका हूं कि आज की राजनीति भ्रष्टाचार के बिना हो ही नहीं सकती। ये अलग बात है कि भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्ति का उपयोग कुछ सिरफिरे नेता अपने लिए या अपने परिवार के लिए ना करें लेकिन चुनाव लड़ने और लड़ाने के लिए तो अंधाधुंध पैसा चाहिए या नहीं ? यह वे कहां से लाएंगे ? वे तो एक कौड़ी भी नहीं कमाते। उन्होंने अपने वेतन भी अनाप-शनाप बढ़ा लिये हैं लेकिन उनके खर्चे तो उनके वेतनों से भी कई गुना होते हैं।
अपने आप को वे जनता का नौकर कहते हैं लेकिन उनका रहन-सहन बड़े-बड़े सेठों और राजा-महाराजाओं से कम नहीं होता। इन नेताओं को पकड़ने का जिम्मा मोदी सरकार ने लिया है तो यह बहुत अच्छी बात है लेकिन सवाल यह है कि सिर्फ कांग्रेसी नेता ही क्यों, भाजपाई भी क्यों नहीं ? शायद कम्युनिस्ट नेताओं की जेबें खाली मिलें लेकिन पिछड़ों, अनुसूचितों और प्रांतीय नेताओं पर भी हाथ डाला जाए तो भारतीय राजनीति का काफी शुद्धिकरण हो सकता है। 90 प्रतिशत से ज्यादा नेता राजनीति को तलाक दे देंगे।
इसी प्रकार वर्तमान सरकार हर कुछ दिनों में दर्जनों अफसरों को जबरन सेवा-निवृत्त कर रही है याने नौकरी से हटा रही है। यह बहुत अच्छा है। नौकरशाहों का भ्रष्टाचार नेताशाहों से अधिक निकृष्ट होता है, क्योंकि उससे प्राप्त सारा पैसा वे खुद जीम जाते हैं और दूसरा, आम जनता उनसे बहुत तंग होती है। उन्हें नौकरी से हटाना ही काफी नहीं है।
उनकी सारी चल-अचल संपत्तियां जब्त की जानी चाहिए और उनके नाम के विज्ञापन जारी किए जाने चाहिए। नेताशाहों और नौकरशाहों के नजदीकी रिश्तेदारों की संपत्तियां भी जांच के दायरे में रखी जानी चाहिए। यदि नरेंद्र मोदी सरकार ऐसा कुछ कर सके तो सारे पड़ौसी देश भी भारत का अनुकरण करेंगे।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं