देश में विपक्ष है ही कहां?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोहतक की रैली में कांग्रेस को लक्ष्य करके उसका मजाक उड़ाते हुए कहा कि लगातार हार से कुछ लोग सुन्न पड़े हुए हैं। उन्होंने यह बात कही तो कांग्रेस के लिए पर यह समूचे विपक्ष पर लागू होती है। इस समय कांग्रेस ही नहीं पूरा विपक्ष सुन्न पड़ा हुआ है। पर क्या यह सिर्फ चुनावी हार के कारण है या इसके पीछे कुछ और कारण हैं? पहली नजर में ऐसा लगेगा की लगातार हार से विपक्षी पार्टियां पस्त हो गई हैं। अगर नहीं लग रहा होगा तो प्रधानमंत्री ने बता कर यह बात दिमाग में बैठा दी है कि विपक्ष लगातार हार रहा है इसलिए पस्त पड़ा हुआ है। पर यह तस्वीर का सिर्फ आधा पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि हार से ज्यादा डर के कारण समूचा विपक्ष सुन्न पड़ा है।

कांग्रेस सहित सारी विपक्षी पार्टियों के नेता डरे हैं। उनके ऊपर केंद्रीय एजेंसियों- सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग आदि की तलवार लटकी है। जो राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय है, ज्यादा मुश्किल पैदा कर रहा है या करने की स्थिति में है उस पर पहले निशाना है। जैसे डीके शिवकुमार जेल चले गए। कर्नाटक में उनको कांग्रेस पार्टी का संकटमोचक कहा जाता है। कांग्रेस और जेडीएस की साझा सरकार के गिरने और भाजपा की सरकार बनने की राह में वे अकेले नेता थे, जो बाधा बन कर कई दिन तक खड़े थे।

उन्होंने अगस्त 2017 में गुजरात के राज्यसभा चुनाव में भी चमत्कार किया था। गुजरात के कांग्रेस विधायकों को बेंगलुरू के पास एक रिसोर्ट में उनकी देखरेख में रखा गया था। यह उनका प्रबंधन था, जो अहमद पटेल राज्यसभा का चुनाव जीते। तभी से वे केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर थे। बहरहाल, शिवकुमार जेल में हैं और साझा सरकार के मुख्यमंत्री रहे एचडी कुमारस्वामी पर सीबीआई की तलवार लटकी है। उनकी सरकार में कुछ अधिकारियों के फोन टेप होने की जांच राज्य सरकार ने सीबीआई को सौंप दी है।

शिवकुमार की तरह ही पी चिदंबरम सत्ता पक्ष के गले की फांस थे। एक तो उनके गृह मंत्री रहते अमित शाह को कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में जेल जाना पड़ा था। दूसरे वे लगातार सार्वजनिक मंचों पर लेखन और अपने वक्तव्यों के जरिए सरकार की आर्थिक नीतियों पर हमलावर थे। सो, केंद्रीय एजेंसियों ने सुनिश्चित किया कि वे जेल जाएं। वे आईएनएक्स मीडिया मामले में जेल में हैं। पर एयरसेल मैक्सिस मामले में विशेष जज की टिप्पणी उनकी मुश्किलों के पीछे की कहानी बयां करती है। विशेष जज ने उस मामले में पी चिदंबरम और कार्ति चिदंबरम को जमानत देते हुए कहा कि उनके ऊपर 1.31 करोड़ का मामला है तो एजेंसियां इतनी सक्रिय हैं, जबकि दयानिधि मारन के ऊपर छह सौ करोड़ से ऊपर का मामला है तो उसमें कुछ नहीं हो रहा है। जाहिर है यह कार्रवाई चुनिंदा है।

बहरहाल, भाजपा के सबसे आक्रामक आलोचक और नरेंद्र मोदी-अमित शाह का दिग्विजय रथ बिहार में रोकने वाले लालू प्रसाद जेल में हैं। अरविंद केजरीवाल पर किसी कारण से जोर नहीं चला तो उनके प्रधान सचिव का करियर खत्म कर दिया गया। गांधी-नेहरू परिवार के तीनों सदस्य- सोनिया व राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा अलग मुश्किल में हैं। सोनिया-राहुल नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर हैं तो प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा के ऊपर सीबीआई और ईडी दोनों की तलवार लटकी है।

ममता बनर्जी और उनके नेता नारदा, शारदा मामले में केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैं तो मायावती के ऊपर चीनी मिल की बिक्री में हुए कथित घोटाले की सीबीआई जांच का साया मंडरा रहा है। अखिलेश यादव और उनका पूरा परिवार अवैध खनन पट्टे को लेकर नई मुश्किल में फंसा है। शरद पवार का परिवार सिंचाई से लेकर सहकारिता तक के कथित घोटाले में फंसा हुआ है। यह सूची बहुत लंबी है और पक्ष-विपक्ष के लगभग सारे नेताओं के नाम इसमें हैं।

सो, केंद्रीय एजेंसियों की जांच का डर, जेल जाने का डर, संपत्ति जब्त कर लिए जाने का डर और राजनीतिक रूप से समाप्त कर दिए जाने का डर है, जिससे विपक्षी पार्टियां और उसके नेता सुन्न पड़े हैं। वरना हार-जीत तो चलती रहती है और नेता कभी लगातार हार से सुन्न नहीं होते। ऐसा होता तो जनसंघ और भाजपा ने जितने चुनाव हारे हैं उसके नेता तो सुन्न पड़े-पड़े कोमा में चले जाते। देश की समाजवादी पार्टियों का इतिहास भी लगातार हार का ही रहा है। बरसों तक वाम मोर्चा से लड़ कर हारते हारते ममता बनर्जी कभी सुन्न नहीं हुईं थीं पर भाजपा से पांच साल की लड़ाई में वे सुन्न पड़ी हैं तो उसका कारण समझना होगा। प्रधानमंत्री इस मामले का सरलीकरण कर रहे हैं और राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई किए जाने के आरोपों की दिशा बदलने के लिए नया विमर्श खड़ा कर रहे हैं।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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