देश बदल रहा है!

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देश के एक निवर्तमान मुख्य न्यायधीश ने यह बात कही थी कि जिस प्रकार से देश की न्यायपालिका और कार्यपालिका में टकराव की स्थिति है वह लोकतंत्र के लिये खतरा है। खतरा भी ऐसा कि उससे पार पाना बहुत ही मुश्किल है। अब ऐसे समय में जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र सुपर पावर में चुनावी महासंग्राम हो रहा है। ऐसे समय में यदि न्ययपालिका और कार्यपालिका के बीच की खाई को पाट पाना किसी के बसकी बात नहीं है। इससे तो साफ जाहिर है कि हमारा देश फिर गुलामी की ओर अग्रसर हो रहा है। यानिके उन शहीदों का क्या होगा जिन्होंने देश की आन] बान और शान के लिये अपने प्रणों की आहूति दे दी। अब देखिये हर कोई राजनेता सिर्फ राजसिंहासन की ओर अग्रसर है। उसे न किसी देश की फिक्र है। जब ऐसे में विगत सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश ही गिड़गिड़ा रहा है, न्यायिक व्यवस्था बचा लो। लगता है उसके ऊपर कुछ ज्यादा न्याययिक प्रणाली का भार है। इस बात को भी हम अछूता नहीं कह सकते कि उनके ऊपर कोई बाहरी दबाव है। तभी तो देश का मुख्य न्यायधीश यह कहे कि मुझे बचा लो। उन्हें शायद यह बात महसूस हुई कि वाकई लोकतंत्र खतरे में है।

वहीं दूसरी ओर सीबीआई चीफ को धक्के देकर निकाल दिया। रोता रहा सीबीआई बचा लो। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का जब कोई बड़ी अधिकारी यह कहे कि बचा लो तो समझिए देश किस ओर है। यानिके हमारी न्यायिक प्रक्रिया पर कहीं न कहीं दबाव है। वैसे भी यह बात आप सबके सामने हैं कि कुछ दिनों पहले न्यायपालिका के प्रमुख ने यह बातें कहीं थी कि इस समय उन्हें देश के कुछ संवेदनशील फैसले करने हैं जो देश हित के हैं। जब-जब देश में ऐसी प्रक्रिया देखी गई तब-तब न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव की स्थिति सामने आई। अब ऐसे में देखना यह होगा कि कहां खोट है।

जब रिजर्व बैंक का गवर्नर रघुरामन छोड़ के चला गया] उर्जित पटेल इस्तीफा देने को मजबूर हो गया। चुनाव आयोग को पालतू बना देख पूर्व चुनाव आयुक्त तडप रहे हैं। मीडिया सत्ता के पैरों में पड़ा है, सवाल पूछने वाले चैनलों से ही बाहर हो गए। ‘अंधा कानून’ बनाने वाला बालीवुड अब नमो नमो बना रहा है। सवाल पूछने पर देशद्रोह के तगमे मिल रहे हैं। आयकर विभाग] ईडी सत्ता का गुंडा बन सिर्फ विपक्ष पर छापे मार रहा है। साल में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक हो गई] युवाओं को पकौड़े बेचने की सलाह मिल रही है। जीडीपी दर दो फीसदी कम हो गई] आर्थिक विकास दर पिछले दशक में सबसे कम। किसान खुदकुशी कर रहा है] दूकानें सील हो रही हैं। चोर बैकों से हजारों करोड़ लेकर भाग गए, चैकीदार सोता रहा। सरकारी फाइलें आडिट करने वाली सीएजी ने राफेल घोटाले पर रिपोर्ट जारी करने से मना कर दिया। सेना में वरिष्ठता को ताक पर रख बनाए गए सेनापप्रमुख राजनीतिक बयान दे रहे हैं। संसद में प्रज्ञा ठाकुर जैसे अपराधी बिठाने की तैयारी। 72 साल में बनी सारी संस्थाएं बरबाद। अगला निशाना लोकतंत्र और लोगों के वोट का हक। ईवीएम वोट का हक छीनने को तैनात। पहले से ही 80 प्रतिशत हिंदूबहुल देश हिंदू को राष्ट्र बनाने के नाम पर तानाशाही को न्योता देने वाले अगर ना जागे तो और कूछ हो न हो गुलामी फिर से तय है। पहले तुगलक वंश] गुलाम वंश] मुगल वंश] अंग्रेज] आंशिक नेहरू वंश और अब आरएसएस। यकीन मानिए नागरिकों के अधिकार कूड़े के डिब्बे में होंगे।

देश के चुनाव आयोग को पूरा विश्वास है वोटर मशीन पूरी तरह सुरक्षित हैं। यानि वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल इस बात की तस्दीक करेगा कि मतदाता ने जिस उम्मीदवार को वोट किया है वह उसी के खाते में जाए। हालांकि] वोटिंग मशीन से चुनाव कराने का एक सुरक्षित माध्यम है तो इसमें भी आपका वोट आपके पसंदीदा उम्मीदवार को ही जाता है। वीवीपैट एक और जरिया है] जिससे आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आपका वोट सही जगह गया है।

चुनाव आयोग के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पूरी तरह से सुरक्षित और भरोसेमंद है। इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ करके रिजल्ट नहीं बदला जा सकता है। इसके बावजूद तमाम विपक्षी पार्टियां वर्षों से अपनी हार का ठीकरा वोटिंग मशीन पर ही फोड़ती रही हैं। हालांकि] जब चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों से हैकाथॉन में अपने आरोप साबित करने के लिए कहा तो किसी भी पार्टी ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखायी। शायद कहीं न कहीं वोटिंग मशीन पर सवाल उठाने वाली राजनीतिक पार्टियां भी जानती हैं कि गड़बड़ वोटिंग मशीन में नहीं बल्कि] उनकी पार्टी ही कहीं चूक कर रही है।

यह बात बड़ी ही सोचनीय है कि जिस तरफ भी सरकार की नजर जाती है वह उसके साथ हो लिये। अब चाहे वह फिल्मी जगत हो संख्या भी ऐसी दर्जनों फिल्म अभिनेता एकसाथ आये। चाहे बात मीडिया जगत की हो देश का चैथा स्तम्भ कहे जाने वाला मीडिया भी साथ हो लिया। और तो और देश की न्यायपालिका भी साथ चल रही है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि देश की जांच एजेंसियां भी साथ चलने को मजबूरी है। कहीं न कहीं तो हमारे अंदर ही खोट हो सकता है। यह हम सबके लिये बड़ी सोचनीय प्रश्न है। अब भी समय है यदि हम नहीं संभले तो फिर देर हो सकती है। क्योंकि गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा….

– सुदेश वर्मा

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