देश के कई नामी-गिरामी नेता आजकल जेल की हवा खा रहे

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देश के कई नामी-गिरामी नेता आजकल जेल की हवा खा रहे हैं या जमानत पर हैं या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने हाथ बांधे खड़े हैं। किस-किस के नाम गिनाऊं मैं? ये लोग कौन हैं? ये सब विरोधी दलों के नेता हैं। इन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। किसी पर 25000 करोड़ रु. के घपले का, किसी पर अरबों रु. विदेशी बैंकों में छिपाकर रखने का, किसी पर ट्रस्टों का करोड़ों का धन जीम जाने का और किसी पर अरबों रु. की जमीनें ठिकाने लगाने के आरोप हैं।

ये आरोप सिद्ध होंगे, तब होंगे लेकिन उन नेताओं की बदनामी तो तत्काल शुरु हो जाती है। लेकिन इससे बड़ा एक सत्य आजकल सामने आ गया है। जेल में बैठे हुए नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। वे वहां ठाठ-बाट से रह रहे हैं, सरकारी खर्चे पर ! वे जेल में बैठे-बैठे बयान जारी कर रहे हैं और उनसे मिलने पूर्व प्रधानमंत्री और पार्टी-अध्यक्ष भी जा रहे हैं।

इसका मतलब क्या हुआ? क्या यह नहीं कि अगर कोई नेता भ्रष्टाचार करे तो वह भ्रष्टाचार नहीं कहलाएगा। वह भ्रष्टाचार नहीं, शिष्टाचार बन गया है। आज की लोकतांत्रिक राजनीति भ्रष्टाचार के बिना हो ही नहीं सकती। वोटों की राजनीति नोटों के बिना कैसे हो सकती है? क्या देश में एक भी नेता ऐसा है, जिसने कभी कोई चुनाव लड़ा है तो वह यह कहने की हिम्मत कैसे करेगा कि वह हमेशा सदाचार का पालन करता रहा है? अनैतिक और अवैधानिक कारनामे किए बिना चुनावी और दलीय राजनीति करना असंभव है।

आज सत्तारुढ़ दल के लोग अपने विपक्षियों को ढूंढ-ढूंढ कर फंसा रहे हैं और कल उन्हें, जब वे विपक्ष में थे तो इसी तरह उन्हें फंसाया जा रहा था। आज चिदंबरम जेल में हैं तो कल अमित शाह थे। दूध का धुला कोई नहीं है। आचार्य कौटिल्य ने ढाई हजार साल पहले जो कहा था, वह आज भी सत्य है याने मछली पानी में रहे और पानी न पिये, यह कैसे हो सकता है?

मोदी सरकार यदि भ्रष्ट नेताओं को दंडित करने पर तुली हुई है तो मैं उसका हृदय से स्वागत करता हूं लेकिन क्या भाजपा में सब दूध के धुले हुए हैं? यह शुभ-कार्य अपने घर से ही शुरु क्यों नहीं किया गया? उल्टे, अन्य पार्टियों के भ्रष्ट नेता अपनी खाल बचाने के लिए भाजपा में घुसते चले जा रहे हैं।

मोदी चाहे तो देश की सभी पार्टियों के नेताओं को जेल में डालने की बजाय उन्हें यह कह सकते हैं कि आप सब अपनी सारी चल-अचल संपत्ति, जो आपने अवैध और अनैतिक तरीकों से जुटा रखी हैं, उन्हें आप सरकार को समर्पित कर दें तो आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। आपको लोक-क्षमा दी जाएगी। इसे वे भाजपा से ही शुरु करें। शायद दूसरे भी अपने आप प्रेरित हो जाएं। भारतीय राजनीति में चले हुए भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के कई और भी उपाय हैं लेकिन उन पर फिर कभी बात करेंगे।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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