देश एक पार्टी शासन की दिशा में!

0
295

साहित्य और कला के विमर्श में यह विडंबना कई बार रेखांकित हुई है कि भारत में इन क्षेत्रों में आधुनिकता नहीं आई, उससे पहले उत्तर आधुनिकता आ गई। उसी तरह भारत में दो दलीय व्यवस्था की चर्चा होती रही पर उससे पहले आज फिर एक दल के शासन का समय आ गया है! हमेशा के लिए नहीं तो कम से कम थोड़े समय के लिए देश में ऐसी व्यवस्था बनती दिख रही है, जिसमें केंद्र से लेकर पूरे देश में एक पार्टी का शासन हो।

आजादी के बाद थोड़े समय तक ऐसी व्यवस्था रही थी। पर जल्दी ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली एकदलीय व्यवस्था टूटने लगी और धीरे धीरे पूरे देश में बहुदलीय व्यवस्था छा गई। इसी वजह से भारत में संघीय शासन प्रणाली भी मजबूत हुई। भारत की विविधता का सम्मान भी इसी में समाहित था कि हर राज्य अपनी सांस्कृतिक व भाषाई पहचान को बनाए रखते हुए, अपनी स्वतंत्र राजनीतिक धारा चुने और केंद्रीय शासन का हिस्सा बने। पिछले 72 साल की राजनीतिक प्रक्रिया में विकसित हुई इस अवधारणा के आगे अब बड़ी चुनौती है।

केंद्र में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद कई राज्यों के घटनाक्रम से यह चिंता पहली बार जाहिर हुई थी। भाजपा ने कम से कम दो राज्यों मणिपुर और गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी कांग्रेस को सरकार बनाने से रोक दिया था और बहुमत से बहुत दूर होने के बावजूद भी अपनी सरकार बना ली थी। भाजपा के इसी दांव से जब कर्नाटक में कांग्रेस ने उसको सरकार बनाने से रोका तो लगा था कि राजनीति सामान्य धारा में लौट रही है। पर वह राहत वक्ती थी। दूसरी बार लोकसभा का चुनाव पूर्ण बहुमत से जीतने के बाद भाजपा ने सामान्य राजनीति की धारा को मोड़ दिया है। कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनना महज वक्त की बात है।

अब ऐसा लग रहा है कि हर राज्य में या तो भाजपा की सरकार होगी या जो सरकार होगी वह उसके समर्थन वाली होगी। पिछले साल तीन राज्यों में मतदाताओं ने भाजपा को हरा कर उसके विकल्प के तौर पर कांग्रेस को चुना था। अब इनमें से कम से कम दो राज्यों में कांग्रेस की सरकार खतरे में है। जिस तरह अलग अलग उद्गम स्थलों से निकलने वाली नदियां अंततः समुद्र में जाकर मिलती हैं वैसे ही अलग अलग पार्टियों के नेता भाजपा में जाकर मिल रहे हैं।

आंध्र प्रदेश में जहां भाजपा का कोई आधार नहीं है वहां के चार राज्यसभा सांसद भाजपा में शामिल हो गए। पश्चिम बंगाल के विधायक एक एक करके भाजपा का दामन थाम रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस व जेडीएस के 16 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं, ये सारे भाजपा में जाएंगे। गोवा में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक भाजपा में चले गए हैं। जहां भी कांग्रेस या उसकी सहयोगी पार्टी का राज है वहां विधायक तोड़ कर भाजपा अपनी सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। पंजाब और छत्तीसगढ़ इसका अपवाद होंगे। कांग्रेस के अलावा जहां दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां हैं, वहां भी ज्यादातर सत्तारूढ़ पार्टियां प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाजपा के साथ हैं।

भाजपा के शासन वाले राज्य- असम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं। देश के 13 राज्यों में भाजपा की अपनी सरकार है। इसके बाद बिहार, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और तमिलनाडु में भाजपा की सहयोगी पार्टियों की सरकार है। जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। ओड़िशा और आंध्र प्रदेश में भाजपा के प्रति सद्भाव रखने वाली सरकारें हैं।

इस तरह देश के 29 राज्यों में से 21 राज्यों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाजपा का राज है। जो बचे हैं उनका भी बचा रहना वक्त की बात है। संभव है कि कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अगले कुछ दिन में भाजपा की सरकार बन जाए। यह हर जगह सरकार बनाने की राजनीति से ज्यादा भाजपा के वैचारिक विस्तार की प्रक्रिया का हिस्सा है। इसके लिए पार्टी का मौजूदा नेतृत्व हरसंभव उपाय कर रहा है। फिर जब वह अपने उत्थान के चरम पर पहुंचेगी तो वहां से पतन की शुरुआत होगी।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here