नवरात्र में जगज्जननी माँ जगदम्बा दुर्गाजी की पूजा-अर्चना को अनन्त महिमा है। ज्योतिर्विश्री विमल जैन ने बताया कि नवरात्र के धार्मिक अनुष्ठान के पश्चात् कुमारी कन्याओं की पूजा-अर्चना करना अत्यन्त आवश्यक है। धर्मशास्त्रों में कुमारी कन्याओं को त्रिशकि पानि महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती देवी का स्वरूप माना गया है। नवरात्र में तकर्ता को या देवीभक को कुमारी कन्या एवं बटुक को विधि-विधानपूर्वक पूजन करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। श्रीदुर्गाबी की अर्चना करके हवन आदि करने का विधान है। इस बार 11 अक्टूबर, शुक्रवार को महाअष्टमी व 12 अक्टूबर, शनिवार को महानवमी का व्रत रखा जाएगा। महानषयों को सम्पूर्ण दिन श्रवण नक्षत्र का योग रहेगा।
ज्योतिषविद् श्री निमल जैन ने बताया कि इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर, गुरुवार को दिन में 12 बवका 33 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 11 अक्टूबर, शुक्रवार को दिन में 12 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। तत्पश्वात् नवमी तिथि रसग जाएगी जो कि 12 अक्टूबर, शनिवार को प्रातः 10 बजकर 59 मिनट तक योगी। उदुपरान्त दशमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, जो कि 13 अक्टूबर, रविवार को प्रातः 9 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 33 मिनट पर लगेगी, अहमी तिथि का हवन-पूजन इसी दिन किया जाएगा। अष्टमी तिथि उद्या तिथि के रूप में 11 अक्टूबर शुक्र को है. फलस्वरुप महाअष्टमी का बत इसी दिन रखा जाएगा। महानवमी का व्रत 12 अक्टूबर, शनिवार को रखा जाएगा। महानवमी का बात रखकर जगदम्बाजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। महाअष्टमी तिथि व महानवमी तिथि के दिन बटुक व कुमारी पूजन करने का विधान है। नवरात्र व्रत पारण दशमी तिथि को किया जाएगा नवरात्र व्रत का पारण दशमी तिथि को किया जाएगा। 13 अक्टूबर, रविवार को दशमी तिथि प्रातः 9 बजकर 10 मिनट तक रहेगी।
विजया दशमी – विजया दशमी का पर्व 13 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। विजया दशमी के दिन नीलकण्ठ पक्षी का दर्शन किया जाता है, उन्हें आजाद करवाया जाता है। इसी दिन अपराजिता देवी तथा शमी वृक्ष की पूजा होती है साथ ही शस्त्रों के पूजन का भी विधान है।
मनोरथ की पूर्ति के लिए करें कुमारी पूजन – श्री विमल जैन ने बताया कि अपने मनोकामना की पूर्ति के लिए सभी वर्ण या अलग-अलग वर्ण की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। देवीभागवत ग्रन्थ के अनुसार ब्राह्मण वर्ण की कन्या-शिक्षा ज्ञानार्जन व प्रतियोगिता, क्षत्रिय वर्ण की कन्या-सुयश व राजकीय पक्ष से लाभ, वैश्य वर्ण की कन्या-आर्थिक समृद्धि व धन की वृद्धि के लिए, शूद्र वर्ण की कन्या-शत्रुओं पर विजय एवं कार्यसिद्धि हेतु पूजा-अर्चना करनी चाहिए। दो वर्ष से दस वर्ष तक की कन्या को देवी स्वरूप माना गया है, जिनकी नवरात्र पर भक्तिभाव के साथ पूजा करने से भगवती प्रसन्न होती हैं।
कन्या की आयु विशेष के अनुसार होती है पूजा – धर्मशास्त्रों में दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या-त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या-कल्याणी, पाँच वर्ष की कन्या-रोहिणी, छः वर्ष की कन्या-काली, सात वर्ष की कन्या-चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या- शाम्भवी एवं नौ वर्ष की कन्या-दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या-सुभद्रा के नाम से उल्लेखित हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल मिलता है। कन्याओं का पूजन करने के पश्चात् उन्हें सात्त्विक व पौष्टिक भोजन करवाना चाहिए, तत्पश्चात् नववस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान्न तथा नकद द्रव्य आदि उपहार स्वरूप देकर उनके चरणस्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। भगवती की आराधना में अस्वस्थ, विकलांग एवं नेत्रहीन कन्याओं का पूजन वर्जित बताया गया है। फिर भी इनकी उपेक्षा न करते हुए यथाशक्ति यथासामर्थ्य इनकी सेवा व सहायता करते रहना चाहिए। जिससे जगत् जननी माँ दुर्गा की प्रसन्नता सदैव बनी रहे और सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती रहे।