राजनीति में परिवारवाद की जब बात होती है तो इसे अक्सर भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी मान लिया जाता है। लेकिन यह स्थिति सिर्फ भारत में ही नहीं। तानाशाही और राजशाही वाली व्यवस्था में तो खैर पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता सुख भोगने का रिवाज रहा है, लोक तांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में भी परिवारवाद समय समय पर रंग दिखाता रहा है। उदाहरण जरूर सीमित रहे हैं और परिस्थितियां भारत की तुलना में अलग रही हैं। भारत के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लोक तांत्रिक देश है अमेरिका। दोनों ने ही औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पा कर सत्ता को जन जन तक पहुंचाने का सपना देखा। सत्ता को विरासत की तरह अगली पीढ़ी को सौंप देने का जो चलन भारत में खूब फला फूला, वह अमेरिका की निर्वाचन व्यवस्था की वजह से वहां संभव नहीं हो पाया। फिर भी अपनी योग्यता व जनसमर्थन से कुछ परिवार सत्ता के शिखर तक पहुंचे। 2012 को 32 साल में कोई न कोई बुश या क्लंटिन व्हाइट हाउस अथवा कैबिनेट में रहा है।
2016 के राष्ट्रपति चुनाव में तो नजारा देखने को मिलेगा जब पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के भाई जैब बुश आमने- सामने आए। जार्ज एच डब्ल्यू बुश अमेरिका के 43वें राष्ट्रपति थे और उनके पिता 41वें। 42वें राष्ट्रपति बिल क्लंटिन की पत्नी हिलेरी और जैब बुश सारी बाधाएं पार कर अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बनने की होड़ में शामिल जरूर हुए लेकिन सफल नहीं हो पाए। अमेरिका के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति जॉन एडम्स के बेटे क्विंसी एडम्स देश के छठे राष्ट्रपति बने। इसके बाद क रीब एक शताब्दी तक ऐसा नहीं हुआ। बुश परिवार की शुरू हुई परंपरा जैब बुश तक ही सिमटी रही। जैब बुश के बेटे जार्ज पियर्स बुश ने मार्च 2013 में चुनाव जीत कर टैक्सास के भू आयुक्त का पद पाया। बिल क्लंटिन की बेटी चेल्सी ने भी शादी के बाद चुनाव लडऩे की संभावना जताई लेकिन बात बनी नहीं। चेल्सी की शादी एक और राजनीतिक परिवार में हुई। उनके इनवेस्टमैंट बैंकर पति मार्क मेजविन्स्की पेनसिल्वेनिया डेमोक्रेटिक पार्टी की पूर्व सांसद मारजोरी मार्गोलाइस मेजविन्स्की और आयोवा डेमोक्रेटिव पार्टी के पूर्व सांसद एडवर्ड मेजविन्स्की के बेटे हैं। अमेरिका की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चित केनेडी परिवार हुआ।
राष्ट्रपति तो सिर्फ जॉन एफ केनेडी ही बने। राबर्ट एफ केनेडी ने अटार्नी जनरल का पद संभाला। ये दोनों और एडवर्ड केनेडी सीनेटर रहे। पैट्रिक केनेडी, जोसेफ केनेडी द्वितीय व उनके बेटे जोसेफ केनेडी तृतीय सांसद बने। कैथलीन के नेडी टाउनसेंड के लेफ्टिनेंट गवर्नर के पद पर रही। केनेडी परिवार के मुखिया जोसेफ के नेडी फ्रैंक लिन जवेल्ट के राष्ट्रपति रहते हुए इंग्लैंड में अमेरिका के राजदूत थे। क्लिंटन प्रशासन में उनकी बेटी जीन आयरलैंड में राजदूत थीं। जान एफ केनेडी की बेटी के रोलिन केनेडी उस समय जापान में राजदूत थीं जब बराक ओबामा पहले कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति चुने गए थे। अमेरिका में यह जुमला काफी प्रचलित है कि राजनीति या प्रशासन में जब भी केनेडी परिवार का अस्त होता दिखता है, कोई नया केनेडी उभर कर सामने आ जाता है। यही दबदबा राकफेलर परिवार का भी रहा है। वेस्ट वर्जीनिया केडेमोक्रेट सीनेटर जे राकफेलर ने 2014 में रिटायर होने का फै सला किया। इससे चार दशक में पहली बार और 1950 के दशक के बाद दूसरी बार अमेरिकी राजनीति व प्रशासन में उच्च स्तर पर राकफेलर परिवार के किसी व्यक्ति के न होने की मिसाल सामने आई।
वैसे अमेरिका में परिवारवाद के उदाहरण और भी हैं। लूसियाना के लैंड्रयूज परिवार के दो सदस्य न्यू आरलियंस के मेयर व सीनेटर रह चुके हैं। अरक सांस का हचिन्सन परिवार एक सांसद व एक सीनेटर दे चुका है। इसी प्रांत के प्राइओर्स परिवार के दो सदस्य सीनेटर बने तो फ्लोरिडा के मीक्स परिवार ने दो सांसद देने का गौरव पाया। मिशिगन के कि लपेट्रिक्स परिवार से एक सांसद व एक मेयर निकला। मिसरी के कार्नाहास परिवार ने तो जो सासंद, एक गवर्नर व एक सीनेटर से बाजी मार ली। लेकिन सबसे ज्यादा और व्यापक दखल उडाल परिवार का रहा। पिछली एक सदी से अमेरिका की दोनों प्रमुख पार्टियों से जुड़े इस परिवार के कई सदस्य सीनेट, संसद, सिटी काउंसिल व ढेरों अन्य कार्यालयों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। सत्ता एक ही परिवार के बीच सिमट कर रह जाने की मिसाल दुनिया के कई और देशों में भी रही है। अर्जेंटीना की राष्ट्रपति रहीं क्रिस्टीना फर्नांडिज द किर्चनर पूर्व राष्ट्रपति नेस्तर किर्चनर की पत्नी थीं। इस समय जापान के प्रधानमंत्री हैं- शिंजो आबे। उनके दादा कान आबे व पिता शिनतारो आबे राजनीति की जानी मानी हस्ती थे। मलेशिया के दूसरे प्रधानमंत्री तुन अब्दुल रजाक के बेटे और तीसरे प्रधानमंत्री तुन हुसेन ओन के भतीजे नजीब रजाक 2018 तक प्रधानमंत्री रहे हैं। फिलीपींस में एक्विनो परिवार की चार पीढिय़ां सत्ता में रह चुकी हैं।
श्रीशचंद्र मिश्र
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)