बहुत समय पहले की बात है, गौतम बुद्ध घने जंगल से होकर गुज़र रहे थे। आचानक ही किसी ने उन्हें आवाज देकर रोका… ‘ऐ ! रुक जा।’ वो रुक गये। पीछे मुड़े और आवाज देने वाले को देखने की कोशिश करने लगे। पास ही पेड़ ही ओट लेकर छिपा एक व्यक्ति उन्हें दिखा। आदमी सामने आया तो उसे देखते ही गौतम बुद्ध समझ गये कि वो एक लुटेरा है।
बुद्ध के चेहरे पर पर ज्ञान का तेज था। उन्होने लुटेरे से कहा, ‘देख ! मैं तो रुक गया… मगर तू कब रुकेगा’? लुटेरे को बड़ा गुस्सा आया। झुंझलाते हुए उसने बोला, ‘तू कहना क्या चाहता है’? बुद्ध ने उसे समझाते हुए कहा, ‘इस सांसारिकता में पड़ कर आखिर कब तक तुम लूट-पाट करते रहोगे… अंत मे क्या हासिल होगा तुम्हे?… देखो, मैं तो ज्ञान प्राप्त कर सांसारिक वंधनो से मुक्त हो गया। अब तू ये लूट-पाट कब बंद करेगा’?
गौतम बुद्ध की इस बात से लुटेरे पर बड़ा असर हुआ। बिलकुल किसी जादू जैसा। इस घटना के बाद ही उसने सारे बुरे काम छोड़ दिये और अंत में बुद्ध का शिश्यत्व स्वीकार कर लिया।