ढाई आखर प्रेम का

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मैने ढाई आखर प्रेम पद लिया था, इसलिये बीए अथवा एमए करने की आवश्यकता ही नहीं रही। पिताजी ने अवश्य कहा कि बेटा पढ़ लेते तो ठीक रहता। मैने कहा कि पिताजी, मैंने प्रेम का ज्ञान प्राप्त कर लिया है,अत: औपचारिक शिक्षा की मुझे जरूरत नहीं है। पिताजी बोले कि नौकरी धंधे के लिए पढ़ा-लिखा होना जरूरी है। मैंने कहा कि मैं बकौल कबीर ढाई आखर पढ़कर पंडित हो गया हूं। आप किसी प्रकार की चिंता न करें, यही बात मैने प्रेम में बंधी अपनी नायिका से कही तो वह भी एक बार तो चकरा गई और बोली कि यह मैंने क्या कर लिया? मैने कहा कि घबराओ नहीं, तुम्हारा निर्णय सौ फीसदी सही है। तुम्हारा प्रश्नचिन्ह लगाने लायक है ही नहीं। नायिका बोली कि मैंने पीएचडी कर रखी है और तुम निपट गंवारा तुमने मुझे अंधेरे में रखा है। ढाई आखर से काम चल जाता तो मैं पीएचडी क्यों करती? पता नहीं अब क्या होगा? मैं ठहरी एकानिष्ठ पिता को पता चलेगा, तो वे मेरा पता नहीं क्या हाल करेंगे?

मैं बोला बहकी-बहकी बातें मत करो। मैंने बड़ी कठिनाई से ढाई आखर का पाठ पढ़ा है, वरना तुम तो पढ़ाई में मशगूल थी। नायिका तमतमा रही थी बोली कि भले आदमी तुम मुझे बताते तो सही कि तुमने अनौपचारिक शिक्षा ग्रहण की है। बिना कमाए हम क्या कमाएंगे-खाएंगे? माफ करना अब यह ड्रामा आगे नहीं चल पाएगा। इसे ड्रामा मत कहो प्रिय। मैंने तुमसे जो वादे किए हैं, वे सब निभाऊंगा। तुम अपनी कसमों से मुकरो मता प्रेम को इतना साधारण मत समझो। यह खुदाही इबादत के समान है। मैंने कहा तो नायिका औह भड़क उठी, तेल लेने गया तुम्हारा प्रेम। किसने पढ़ाया है तुम्हें यह प्रेम का पाठ? यह पाठ मैंने तुम से ही सीखा है प्रिय! तुम बदल क्यों रही हो। ऐसा करो तुम्हारी नौकरी लगने के बाद शादी कर लेंगे। और तुम क्या करोगे? मैं सिर्फ प्रेम करूंगा तुमसे। मैंने केवल ढाई आखर पढ़ा है, इसलिए मुझे कोई नौकरी नहीं देगा। नौकरी भार तो तुम्हारे कंधों पर ही रहेगा। मैं अपने होने वाले बच्चों को संभाल लूंगा। मेरे कंधन पर। नायिका भड़क उठी कि बच्चे और तुमसे? यह मुंह और मासूर की बला? मैं अपनी गलती को ठीक करके तुम्हारे प्रेम पाश का त्यागती हूं।

तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? मेरा या होगा? तुम्हारे अलावा जमाने में मेरा और है भी कौन? जरा मेरी आंखो में देखो, उसमें तुम्हारे लिए कितना प्यार है? नायिका को लगा जैसे मैं कुछ ठीक कह रहा हूं। उसने मेरी आंखों में देखा और बोली अरे तुम तो रो रहे हो? रोओ मत, ढाई आखर का पाठ बुरा नहीं है। चलो कमा मैं लूंगी और तुम मुझे ढेर सारा प्यार देना। मैं बोला कि इतना प्यार कि तुम्हारी झोली छोटी पड़ जाएगी प्रिया मैं वही करूंगा, जो तुम कहोगी। नायिका ने बड़कर मुझे गले से लगा लिया। ढाई आखर साकार होता देख मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े। नायिका ने अपने हाथों से आंसू पोंछे और बोली कि चलो हम अपने माता-पिता का अपनी मर्जी का करने की बात बताते हैं। मैं खुश हो गया। तभी मेरे पिताजी ने आकर प्रियतमा के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि घबराओ मत बेटी, तुम्हारे पिता से बात मैं करूंगा। हम दोनों पिता के पीछे-पीछे चल गए। हम खुश थे।

परन सरमा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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