ट्रंप के होने, न होने से अपना क्या?

0
165
Mandatory Credit: Photo by James Veysey/Shutterstock (10267703cj) US President Donald Trump at No.10 Downing Street US President Donald Trump state visit to London, UK - 04 Jun 2019

एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘कोई नृप होय हमें का हानि’। इसे इस तरह से जाना जा सकता है कि कोऊ नृप होय हमें क्या लाभ। खासतौर पर तब जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ की जा रही कार्रवाई का मामला आता है तब आम भारतीय के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक हो जाता है कि अगर वे हटा भी दिए गए या बच गए तो हम पर इसका क्या असर पड़ेगा। खासतौर पर तब जबकि उनके खिलाफ लाया गया महाभियोग का प्रस्ताव संसद से निकले सदन हाऊस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पास हो चुका है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो ट्रंप भारत के लिए कोई ज्यादा भाग्यशाली नहीं साबित हुए हैं। वे भारत समेत दुनिया के कुछ देशों के वैज्ञानिको को अपने यहां आने के लिए दिए जाने वाले एच-1 वीजा में और कटौती की कोशिश कर रहे हैं। वे इससे पहले सूचना तकनीक की कंपनियों जैसे इंफोसिस समेत ज्यादा आवेदनकर्ता कंपनियों को अमेरिका जाकर काम करने वले भारतीयो को वीजा दिए जाने में कटौती कर चुके हैं।

ट्रंप के हटने के बाद अगर नया अमेरिकी प्रशासन इस सख्त रवैए में थोड़ा लचीलापन लाता है तो भारतीयो को इसका लाभ ही पहुंचेगा।अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखे तो सोने की बढ़ती कीमत के कारण तमाम निवेशक डालर की और ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। अगर ट्रंप के इस्तीफे के बाद दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल होती है तो उसका प्रभाव पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इससे जहां डालर मजबूत होगा वहीं रूपया उसके मुकाबले कमजोर हो जाएगा। भारत द्वारा बड़ी मात्रा में आयात किए जाने वाला तेल काफी महंगा हो जाएगा व इससे महंगाई बढ़ेगी और देश की आर्थिक वृद्धि दर प्रभावित होगी।

रूपया सस्ता होने के कारण यहां से होने वाले निर्यात का सामान सस्ता हो जाएगा व साफ्टवेयर एक्सपोर्टर जैसे इंफोसिस, टीसीएस व बड़ी ट्रक निर्माताओं जैसे भारत फोर्ज का निर्यात बढ़ेगा क्योंकि उनका सबसे बड़ा ग्राहक अमेरिका है। हालांकि यहां यह याद दिलाना जरूरी होता है कि अमेरिका ने पहले ही भारत के आटोमोबाइल व रसायनिक सामान को काली सूची में डाल रखा है जिसके कारण उसका इस क्षेत्र का सामान पर्याप्त मात्रा में अमेरिकी बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

इसके जवाब में भारत ने भी 28 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है इनमें बादाम भी शामिल है जो कि अमेरिका का मुख्य निर्यात है। उसके द्वारा स्टील व एल्यूमिनियम पर आयात शुल्क बढ़ाने के कारण भारत को यह नुकसान हो रहा है। हालांकि ट्रंप भारत के साथ होने वाले व्यापार को लेकर समय-समय पर घोषणाएं करते आए हैं उन्होंने इस साल सितंबर माह में कहा था कि वे भारत के साथ एक नया व्यापार समझौता करने वाले हैं। मगर आज तक कुछ नहीं किया।

उन्होंने हमारे यहां से होने वाली दवाईयों के आयात को जरूर प्रभावित किया। वहां काफी तादाद में दवाओं का आयात होता है। वहां के फेडरल ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने पेटेंट दवाओं की तुलना में जेनरिक दवाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। अमेरिका में पेटेंट दवाएं सस्ती हो गई है। इसलिए वहां पेटेंट दवाएं सप्लाई करने वाली भारतीय कंपनियों का लाभ काफी कम हो गया है। अगर ट्रंप सत्ता में बने रहते हैं तो यह नुकसान भी जारी रहेगा। दुनिया में अमेरिका व चीन के बीच चल रहा व्यापारिक तनाव जगजाहिर है। इसका प्रभाव यह है कि इंटरनेशनल मुद्रा कोष के अनुसार इस साल आर्थिक विकास दर घट कर 3.3 फीसदी रह जाने की आशंका है।

अगर ट्रंप सत्ता से दूर जाते हैं तो नया आने वाला राष्ट्रपति यह तय करेगा कि चीन के साथ चल रहे उसका व्यापारिक युद्ध कैसा रहता है। तब ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट (अमेरिका पहले) की बयानबाजी गायब हो जाएगी। करीब चार दशको से अमेरिका चीन के कारण काफी परेशान रहा है। ऐसा माना जाता है कि अगर भारत ने इस हाल में अपने पत्ते ठीक से खेले तो वह दुनिया के बाजारों में चीन के विकल्प के रूप में उभर सकता है और यहां निवेश बढ़ने के साथ उसका निर्यात बढ़ सकता है। महाभियोग की कार्रवाई के चलते शेयर व ब्रांड मार्किट को दुनिया भर में भारी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।

ट्रंप शुरू से ही दोहरी बयानबाजी करते आए हैं। एक और वे कहते हैं कि भारत एक महान देश है व दूसरी और वह यह ऐलान करते हैं कि वे भारत से अपनी नौकरियां वापस लाएंगे। इसका सीधा मतलब यह है कि अमेरिका मे भारतीयो को काम करने के अवसर और कम हो जाएंगे। अगर वे अपने वादे के मुताबिक कारपोरेट टैक्स 35 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी करने में सफल हो जाते है तो फोर्ट, माइक्रोसॉफ्ट सरीखी अमेरिकी कंपनियां अपने देश वापस चली जा सकती हैं।

वे जम्मू कश्मीर मामले में खास दिलचस्पी लेते रहे हैं व माना जाता है कि मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने का प्रावधान समाप्त किए जाने के पीछे उनकी अनकहीं सहमति रही है। अंतत प्रवासी भारतीयों के वोटो के प्रति उनकी मुख्य जरूर भारत व अमेरिकी रिश्तो को थोड़ी मजबूती दे सकती हैं वरना तो वे चाहे हारे या जीते। मुझे अपने मित्र छोटे के पापाजी की एक बात याद आती रहती है। एक बार जब दशको पहले किसी ने उनके पास दौड़कर आकर कहा कि चौराहे पर किसी बदमाश ने पुलिसवाले को गोली मार दी है तो उन्होंने पलट कर पूछा कि क्या इससे चीनी सस्ती हो गई है।

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here