झगड़ा कांग्रेस में और बदलाव भाजपा में

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यह कमाल पिछले कई महीनों से हो रहा है। पिछले कई महीने से कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री बदले जाने की चर्चा चल रही है। कभी राजस्थान को लेकर घमासान छिड़ता है तो कभी पंजाब और छत्तीसगढ़ को लेकर। पिछले करीब दो महीने से पंजाब और छत्तीसगढ़ को लेकर घमासान चल रहा है। इसे लेकर कांग्रेस के नेतृत्व खास कर राहुल गांधी के ऊपर कई सवाल भी उठे। लेकिन कांग्रेस का कई सीएम नहीं बदला गया उलटे भाजपा ने पिछले छह महीने में पांच मुख्यमंत्री बदल दिए। भाजपा ने सबसे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया और उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया। इसके चार महीने बाद ही तीरथ सिंह को हटा कर उनकी जगह पुष्कर सिंह धामी को सीएम बना दिया गया। उधर असम में पार्टी ने चुनाव मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में लड़ा, लेकिन चुनाव के बाद उनकी जगह हिमंता बिस्वा सरमा को सीएम बनाया गया। कर्नाटक में बतौर मुख्यमंत्री दो साल पूरा करते ही बीएस येदियुरप्पा को हटा दिया गया। और अब पांच साल पूरा करने के एक महीने बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को हटाया गया है। इस तरह मार्च 2021 से लेकर 11 सितंबर 2021 के बीच छह महीने में भाजपा ने पांच मुख्यमंत्री बदले हैं।

यह नहीं कहा जा सकता है कि ये सिलसिला यहीं थमने वाला है। जल्दी ही कुछ और मुख्यमंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। मनोहर लाल खट्टर अभी तक अपवाद दिख रहे हैं, जिनको मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल काम करने के बाद भी दूसरा कार्यकाल मिला है। बाकी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के केंद्र में भाजपा की कमान संभालने के बाद मुख्यमंत्रियों को पांच साल से ज्यादा काम करने का मौका नहीं मिल रहा है। मुख्यमंत्रियों की कमान में पार्टी खुद ही चुनाव हार जा रही है या चुनाव से पहले या बाद में मुख्यमंत्री बदल दिए जा रहे हैं। तर्क के लिए कहा जा सकता है कि शिवराज सिंह चौहान 12 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद फिर मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन असल मोदी और शाह के कमान संभालने के बाद वे 2020 में पहली ही बार मुख्यमंत्री बने हैं। इसलिए उनके बारे में अभी आकलन नहीं किया जा सकता है। राज्य में 2023 में चुनाव हैं और उससे पहले या होता है, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन उनके अलावा कोई मुयमंत्री पांच साल से ज्यादा नहीं चला है। विजय रुपाणी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर अगस्त में ही पांच साल पूरे किए थे और 11 सितंबर को उनका इस्तीफा हो गया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के रूप में चार साल पूरे किए थे और उसके तुरंत बाद उनकी विदाई हो गई थी।

सर्बानंद सोनोवाल ने पांच साल पूरे किए और अगला चुनाव जीतने के बाद उनकी जगह हिमंता बिस्वा सरमा सीएम बना दिए गए। देवेंद्र फडऩवीस और रघुवर दास पार्टी के चुनाव हारने के बाद सीएम नहीं बन पाए। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा तो दो साल ही मुख्यमंत्री रह पाए। गोवा में प्रमोद सावंत के मुख्यमंत्री बने अभी ढाई साल हुए हैं। इसलिए उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन पांच साल पूरे होने पर क्या होगा, यह नहीं कहा जा सकता है। इस लिहाज से अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव के बाद सबसे ज्यादा नजर उत्तर प्रदेश पर रहेगी। यह देखने वाली बात होगी कि वहां हरियाणा का फॉर्मूला लगता है या असम का? अगले साल सातों राज्यों में भाजपा के अलावा जो पार्टी चुनाव लड़ती या चुनाव लडऩे की तैयारी करती दिख रही है वह आम आदमी पार्टी है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में जोर लगा रहे हैं लेकिन वहां से बाहर बाकी राज्यों में उनका कोई आधार नहीं है और न वे लडऩे में रूचि दिखा रहे हैं। अगर चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की बात मानें तो अगले साल सात राज्यों में होने वाला विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के रूप में एक नए राष्ट्रीय दल का उदय देखेगा।

अभी पार्टी कुल तीन पदाधिकारियों के संगठन से चल रही है, जबकि भाजपा के प्रदेश संगठन 184 पदाधिकारी हैं। स्थानीय निकाय चुनाव में हारने के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता ने इस्तीफा दिया हुआ है और पार्टी उस पर कोई फैसला नहीं कर पाई है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी सिर्फ सूरत में स्थानीय निकाय के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर पाई थी लेकिन उसने माहौल ऐसा बना दिया है, जैसे वह मुय विपक्षी है। इसी तरह हाल के मीडिया सर्वेक्षणों में पंजाब में आम आदमी पार्टी के जीतने की संभावना जताई गई है। सी-वोटर के सर्वे में वह सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरती दिख रही है। उत्तराखंड में भी मुफ्त बिजली-पानी का दांव केजरीवाल ने चला था और साथ ही उसे हिंदू धर्म की आध्यात्मिक राजधानी बनाने का ऐलान किया, जिसके बाद पार्टी का ग्राफ बढ़ा है। केजरीवाल ने सेना से रिटायर अधिकारी अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री का दावेदार भी घोषित कर दिया है। इसी तरह गोवा में भी कांग्रेस के मुकाबले आप की तैयारियां बेहतर हैं। यानी चुनाव से पहले का मुख्य विपक्षी दल ।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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