रात खोल बैठे जिन्दगी के किताब
उसने दबी अवाज में पुछ डाले कई सवाल
कितने दिन बाद तुमने मुझे खोला है यार
क्या तुमको है इसका जरा भी हिसाब
किताब का न था मेरे पास कोई जवाब
उसने कहा देखों जरा मुझे
कैसी थी मैं, अब क्या है मेरा हाल
मैं असहाय सा उसे देखता रहा
अपने आप को कोसता रहा
अपने पर दोष मड़ता रहा
किताब का बुहत बुरा था हाल
जिससे निकल चुके थे कई पन्नों के हिसाब
वो पन्ने जिसे पाकर हम हो जाते थे निहाल
वो पन्ने अब नहीं थे उसके पास
शायद जिन्दगी के बहाव में
वह पन्ने कहीं बह गए
हम बस जिन्दगी का जिल्द संवारने में व्यस्थ रहे
और जिन्दगी के पन्ने बिखर गए…
I enjoy, lead to I discovered exactly what I used to be looking for. You have ended my four day long hunt! God Bless you man. Have a great day. Bye