जान और जहान दोनों जा रहे हैं !

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कोरोना के बढ़ते संक्रमण और उस संक्रमण से रिकार्ड संख्या में हो रही मौतों के बीच पिछले तीन दिन में अर्थव्यवस्था से जुड़ी तीन खबरें आई हैं, जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था के भयावह संकट की तस्वीर साफ दिखने लगी है। कोरोना और उसे रोकने के नाम पर किए गए लॉकडाउन की वजह से जिस आर्थिक तबाही का अंदेशा जताया जा रहा था वह इन आंकड़ों से सच होता दिखने लगा है। सरकार ने पहले लोगों की जान बचाने के लिए लॉकडाउन किया था और बाद में लॉकडाउन में ढील देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि जान भी बचानी है और जहान भी बचाना है। पर अफसोस की बात है कि भारत में लोगों की न जान बच रही है और न जहान बचने की संभावना दिख रही है। मंगलवार को पहली बार एक दिन में कोरोना संक्रमण से 11 सौ के करीब लोगों की जान गई।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की विकास दर का आंकड़ा अभी नहीं आया है। अप्रैल से जून के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था में कितनी गिरावट आएगी यह वास्तविक आंकड़ा आने के बाद पता चलेगा परंतु 17 अगस्त को भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट, इकोरैप में बताया कि पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 16.5 फीसदी की कमी आ सकती है। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त के महीने में कोरोना के कुल 54 फीसदी मामले देश के ग्रामीण जिलों में आए हैं। इसका मतलब है कि महानगरों और शहरों से निकल कर कोरोना का वायरस गांव-गांव तक पहुंच गया है और अब वहां चल रही छोटी-छोटी आर्थिक गतिविधियां भी पूरी तरह से ठप्प होने वाली हैं। इस रिपोर्ट की मानें तो अब जिन ग्रामीण जिलों में कोरोना पहुंचा है उनका राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीएसडीपी में दो से चार फीसदी हिस्सा होता है।

इससे दो बातें जाहिर होती हैं। पहली तो यह कि दूसरी तिमाही में यानी जुलाई से सितंबर के बीच हालात और बिगड़ेंगे क्योंकि राज्यों में जीडीपी की गिरावट देश के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर पर बड़ा असर डालेगी। खुद स्टेट बैंक ने कहा है कि पहली तिमाही में भारत की जीडीपी में साढ़े 16 फीसदी की जो गिरावट होगी, उसमें शीर्ष दस राज्यों का हिस्सा 73 फीसदी से ज्यादा है। उसमें भी 32 फीसदी हिस्सा सिर्फ तीन राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश का है। इन तीन राज्यों में जुलाई-अगस्त में कोरोना का प्रसार और भयावह हुआ है। सो, दूसरी तिमाही, जिसमें कई जानकार अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरने की उम्मीद कर रहे थे, उसमें और गिरावट आएगी। दूसरी बात, यह है कि ग्रामीण जिलों में कोरोना के तेजी से फैलने से गांवों में भी वैसे हालात पैदा होंगे, जैसे शहरों में पिछले छह महीने से हैं।

जीडीपी को लेकर स्टेट बैंक का आकलन आने के एक दिन बाद 18 अगस्त को सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई ने रोजगार का आंकड़ा पेश किया। सीएमआईई ने बताया कि सिर्फ जुलाई के महीने में 50 लाख वेतनभोगियों की नौकरी गई है। जून में रोजगार के परिदृश्य में थोड़ा से सुधार हुआ था पर वह जुलाई में खत्म हो गया। सीएमआईई के मुताबिक कोरोना का संकट शुरू होने के बाद यानी मार्च से अब तक एक करोड़ 90 लाख वेतनभोगियों की नौकरी जा चुकी है। अब सोचें उन एक करोड़ 90 लाख परिवारों के बारे में, जिनके घर में हर महीने बंधा-बंधाया वेतन आता था और अब नहीं आ रहा है! आगे भी कोई उम्मीद नहीं है कि निकट भविष्य में कहीं नौकरी लगेगी। उनकी आर्थिक और मानसिक दोनों स्थितियों का अनुमान लगाना परेशान करने वाला है।

दो करोड़ के करीब नौकरी जाने का आंकड़ा वेतनभोगियों का है, रोजगार गंवाने वालों की संख्या 12 करोड़ से ऊपर है। भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में बताया है कि देश में वित्त वर्ष 2020-21 में प्रति व्यक्ति 27 हजार रुपए का नुकसान हुआ है। तमिलनाडु, गुजरात, तेलंगाना, दिल्ली, हरियाणा और गोवा में प्रति व्यक्ति नुकसान 40 हजार रुपए है। प्रति व्यक्ति अगर 27 हजार रुपए का नुकसान है तो 130 करोड़ आबादी के नुकसान का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। देश के इस नुकसान में वेतनभोगियों का भी नुकसान शामिल है और रोजगार करने वालों का भी। इनमें से किसी के लिए भी निकट भविष्य में राहत की उम्मीद नहीं दिख रही है।

अर्थव्यवस्था को लेकर आई तीसरी रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में, भारत के शीर्ष बैंकों ने 19 हजार करोड़ रुपए के कर्ज को बट्टेखाते में डाला है यानी राइट ऑफ किया है। अकेले स्टेट बैंक ने 46 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज बट्टेखाते में डाला है। तीन महीने में 19 हजार करोड़ रुपए का लोन राइट ऑफ करना अपने आप में इस बात का सबूत है कि भारत के बैंकों में एनपीए किस हिसाब से बढ़ रहा है और उनकी आने वाले दिनों में क्या हालत होने वाली है। कुछ दिन पहले ही रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बैंकों का एनपीए बढ़ने की चेतावनी दी थी। पिछले छह साल में केंद्र की सरकार साढ़े छह लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज बट्टेखाते में डाल चुकी है और बैंकों को रिकैपिटलाइजेशन के लिए इसका आधा यानी करीब सवा तीन लाख करोड़ रुपए करदाताओं के पैसे में से दिया गया है। इससे भी बैंकों की बिगड़ी हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऊपर से सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित राहत पैकेज में कर्ज देने की जो अभूतपूर्व घोषणाएं की हैं उनसे बैंकों की हालत और बिगड़ने वाली है।

कुल मिला कर भारत की अर्थव्यवस्था की जिस बुनियाद के मजबूत होने का दावा किया जा रहा था उसकी पोल खुल गई है। अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिलने लगी है। बैंक दिवालिया होने की ओर बढ़ रहे हैं। रोजगार का बड़ा संकट पैदा हो गया है। प्रति व्यक्ति आमदनी में आठ फीसदी तक की कमी आने का अनुमान है, जीडीपी में साढ़े 16 फीसदी की कमी आने का अनुमान है। इस तरह की स्थिति कमोबेश दुनिया के हर देश की हो गई है। पर दुनिया के देश अपने नागरिकों की मदद के लिए खड़े हैं। उन्होंने लोगों की मदद के लिए खजाना खोला है पर भारत में इसका उलटा हो रहा है। भारत में आम लोगों की मदद करने की बजाय आपदा में अवसर बना कर खास लोगों को कोल ब्लॉक्स, हवाईअड्डे, रेलवे स्टेशन, ट्रेनें, सरकारी कंपनियां आदि बांटी जा रही हैं। बुधवार को ही जयपुर, गुवाहाटी और तिरूवनंतपुरम हवाईअड्डे 50 साल के लिए अडानी समूह को दिए गए। अहमदाबाद, लखनऊ, मेंगलुरू का हवाईअड्डा भी अडानी समूह ने खरीद लिया है। अभी आगे-आगे देखते जाइए दोस्तों को और क्या क्या मिलता है?

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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